सम्पादकीय

चुनौतियोंसे निबटनेकी तैयारी


आर.के. सिन्हा     

कोरोना वायरसकी दूसरी लहरने कुछ ही दिनोंमें देशको हिलाकर रख दिया है। इसने अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, कोई भेदभाव नहीं किया। इसने हर घर जाकर अपना असर दिखाया। लेकिन अब दूसरी लहर कमजोर पडऩे लगी है। कोरोना वायरससे संक्रमित रोगियोंकी तादाद प्राय: हर जगह घट रही है। यह संतोषका विषय तो हो सकता है, परन्तु अब कुछ बातोंको गांठमें बांध लेना भी जरूरी है। पहली बात तो यह है कि कोरोना वायरस हमारे बीचमें अब लम्बे समयतक रहनेवाला है। यही नहीं, इसकी तीसरी लहर आनेके भी संकेत मिलने लगे हैं या कहा जाय कि वह कभी भी आ सकती है।

सबसे बड़ी चिन्ताका विषय है कि तीसरी लहर दूसरीकी तुलनामें अधिक मारक हो सकती है। तब रोगियोंकी संख्या भी दूसरी लहरकी तुलनामें कहीं अधिक होगी। यह वास्तवमें एक डरानेवाली स्थिति है। आईआईटी दिल्लीने जारी अपनी एक रिपोर्टमें दावा किया है कि तीसरी लहरमें अकेले दिल्लीमें ही रोजाना ४५ हजार नये मामले आ सकते हैं। यह सुनकर भी रूह कांप उठती है। ऐसेमें रोजाना करीब नौ हजार रोगियोंको अस्पतालमें भर्ती करनेकी जरूरत पड़ेगी। दिल्लीको इसके लिए तैयार रहना होगा। यदि यह हालात बनते हैं तो इससे निबटनेके लिए दिल्लीमें अस्पतालों और रीफिलिंगके लिए कुल मिलाकर प्रतिदिन ९४४ मीट्रिक टन आक्सीजनकी जरूरत पड़ेगी। इतनी अधिक मात्रामें आक्सीजनकी व्यवस्था करना कोई आसान काम नहीं है। जाहिर है यदि हम तीसरी लहरपर सारे देशकी स्थितिपर बात करें तो हालात तो अकल्पनीय रूपसे खराब हो सकते हैं। भगवान करे कि यह न हो। अब दुनियाको और आघात न सहन पड़ें। परन्तु किसीने कहां सोचा था कि कोरोना वायरसकी दूसरी लहर देखते ही देखते अपने शिकंजेमें सारे देशको ही ले लेगी। इसलिए युद्ध स्तरपर आगेके लिए तैयारी करना तो लाजिमी है।

चूंकि देशमें संक्रमणकी दर कम हो रही है इसलिए सरकारों और मेडिकलकी दुनियासे जुड़े लोगोंको अभी आराम करनेके मोडमें तो कतई नहीं आना चाहिए। हमें अभी भविष्यमें आनेवाली चुनौतियोंसे निबटनेके लिए समुचित एवं त्वरित कदम उठाते ही रहने चाहिए। सबको पता है कि कोरोनाकी दूसरी लहरमें आक्सीजनकी कमीसे देशभरमें हजारों जानें गयीं। अब यह हालात नहीं होने चाहिए। कोरोनाके रोगियोंके बीच आक्सीजनकी भारी कमीको देखा गया। उसे देखते हुए अब सब राज्योंको आक्सीजन उत्पादन, स्टोरेज और उसके वितरणमें सुधार करनेकी तुरंत आवश्यकता है। सभी अस्पतालोंको आक्सीजन निस्तारण प्रक्रियाके लिए आवश्यक सभी प्रकारके नोजल, एडेप्टर्स और कनेक्टर्स मुहैया कराने चाहिए। सभी सरकारें और स्थानीय निकायें ऐसा अबतक ही कर भी रही होंगी। प्रधान मंत्री तो सबकी मददके लिए दिन-रात खड़े हंै ही।

किसे नहीं पता कि अप्रैल महीनेमें जब कोरोनाकी दूसरी लहरका पीक था तब सैकड़ों धनी-संपन्न लोगोंतकको अस्पतालोंमें बेड नसीब नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि राजधानी दिल्लीके एक मशहूर सेंट लॉरेस स्कूलके संस्थापक और कारोबारी गिरिश मित्तलको लाख चाहनेके बाद भी बेड नहीं मिला। अंतमें उन्हें फरीदाबादके एक अस्पतालमें भर्ती करवाया गया। वहां उनकी मृत्यु हो गयी। इसी प्रकार प्रख्यात गीतकार डा. कुंवर बेचैन और प्रसिद्ध कवि पदमश्री डा. रवीन्द्र राजहंसको भी नोएडाके प्राइवेट अस्पतालमें बचाया न जा सका। जब हर लिहाजसे सक्षम लोगोंका यह हाल हुआ है तो समझ लें कि बाकीके साथ क्या हुआ होगा। इसीलिए देशके हर छोटे-बड़े शहरोंके अस्पतालोंमें आक्सीजनवाले बेडोंकी संख्या भी बढ़ानी होगी।

इसके साथ ही अब देशको यह भी देखना होगा कि कोरोनाके कारण किसी बच्चेके सिरसे उसके माता-पिताका साया न उठे। कोरोनाकी दूसरी लहरके कारण न जाने कितने मासूम बच्चे अनाथ हो गये। इन बच्चोंके लिए मुफ्त पढ़ाई और आर्थिक मदद जैसी अनेक घोषणाएं राज्य और केंद्र सरकारोंने की हैं। परन्तु अभी इन बच्चोंके सामने कुछ और दिक्कतें आ सकती हैं। याद रखें कि कोरोनासे मृत्युका प्रमाण पत्र मिलना अत्यंत कठिन है। सैकड़ों लोग अस्पतालोंके दरवाजोंपर मर गये और बहुतसे लोग तो घरपर ही मर गये। बीचमें ऐसे भी दिन आये कि टेस्ट होनेका नम्बर ही नहीं आया और लोग मर गये। अब यह अनाथ बच्चे कहां जायेंगे प्रमाण पत्र बनवानेके लिए। सरकारी दफ्तरोंकी कठिन प्रक्रियासे कैसे गुजरेंगे। जिनके खाते बैंकोंमें हैं वह मर गये और उनके नॉमिनी भी मर गये अब बच्चे रह गये हैं उनका पैसा बैंकोंसे कैसे निकलेगा। इन सवालोंके हल सरकारोंको तुरंत तलाश करने होंगे। वर्ना घोषणाएं जमीनपर लागू करना कठिन होगा। बच्चोंकी मददमें सरकार और संस्थाएं खुद आगे नहीं बढ़ेंगी तो यह तमाम घोषणाएं जबानी जमा खर्च बनकर रह जायेंगी। यह सच है कि बहुतसे लोग केदारनाथ जैसी आपदाओंमें मारे जाते हैं और उनका बैंक एकाउंट लावारिस हो जाता है। बच्चे दर-दर भटकते रहते हैं और पैसा बैंकोंमें पड़ा रहता है। यह अनाथ हुए बच्चे न मदद मांग पायेंगे, न कागजी काररवाई पूरी कर पायेंगे। सरकार और समाजको खुद इनकी मददको आगे आना होगा और नियमोंमें कुछ शिथिलता देनी होगी।

कोरोनासे आगे भी बचे रहनेके बाकी उपाय वही हैं। जैसे कि मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाये रखना और हाथोंको बार-बार साबुनसे अच्छी तरहसे धोना। यह तो सभी नागरिकोंसे कमसे कम अपेक्षित है ही। हालांकि दूसरी लहरके बाद देखनेमें आ रहा है कि अब पहलेवाली लापरवाही तो ज्यादा लोग नहीं कर रहे हैं। वह कमसे कम मास्क तो पहन ही रहे हैं। अब उन्हें कोरोनाकी भयावहताका अंदाजा भी लग चुका है। जो लापरवाही करेगा, वही फंसेगा। वह अपने साथ अपनोंको भी मरवानेका रास्ता साफ करेगा। इसलिए मास्क तो बड़े पैमानेपर पहने जाने लगे हैं और कोरोनासे बचावके लिए वैक्सीन लेना भी अनिवार्य है, यह लोग समझने लग गये हैं। दुनियाके अनेक देशोंने अपनोंको कोरोन से लडऩेके लिए तैयार कर लिया है। वहांपर तेजीसे सब वैक्सीन लगवा रहे हैं। यही हमें भी करना होगा। हमें भी फिलहाल भीड़-भाड़ और बड़े आयोजनोंसे बचना होगा। अब पहलेवाली दुनिया तो नहीं रहनेवाली। यह बात लोगोंको जितनी जल्दी समझ आ जाय उतना ही अच्छा रहेगा।