डा. दीपकुमार शुक्ल
निर्बाध गतिसे बढ़ती जनसंख्या किसी भी देशके विकासकी सबसे बड़ी बाधा है। भारत भी ऐसा ही एक देश है। संयुक्त राष्ट्रकी जनसंख्या रिपोर्टके अनुसार २०२१ में भारतकी जनसंख्या १२१ करोड़ है। जबकि जनसंख्या वृद्धि दर सम्बन्धी आंकड़ोंपर नजर रखनेवाली वेबसाईट वल्र्डोमीटरके अनुसार भारतकी आबादी अबतक १३९ करोड़ हो चुकी है। देशमें जनसंख्या नियन्त्रणकी महती आवश्यकता बहुत पहलेसे महसूस की जा रही है। अधिक जनसंख्याके चलते सरकारी सिस्टम कैसे धड़ाम होता है, इसका कटु अनुभव कोरोनाकी दूसरी लहरमें हम सब देख चुके हैं। इससे सबक लेते हुए उत्तर प्रदेशकी योगी सरकार जनसंख्या नियन्त्रण कानून बनाने जा रही है। इस हेतु राज्यके विधि आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश पॉपुलेशन (कण्ट्रोल, स्टेबलाइजेशन एण्ड वेलफेयर) बिलका प्रारूप तैयार किया गया है। इस प्रारूपके उजागर होते ही पूरे देशमें इसको लेकर बहस छिड़ गयी है। क्योंकि इसके कुछ प्रावधान बहुत अधिक सख्त हैं। यहांतक कि भाजपाकी प्रमुख घटक विश्व हिन्दू परिषद्को भी इसके कई प्रावधानोंपर आपत्ति है।
परिषद्के प्रमुख अलोक कुमारका कहना है कि दो बच्चे रखनेपर इंसेंटिव दिये जानेवाली बातसे राज्यकी डेमोग्राफी प्रभावित हो सकती है। इससे समाजमें आबादीका असन्तुलन पैदा होनेकी भी सम्भावना है। वहीं मुस्लिम शिक्षण संस्था दारुल देवबन्द इस नीतिको समाजके सभी वर्गोंके खिलाफ बता रही है। देवबन्दके कुलपति मुफ्ती अबुल कासिम नौमानीके अनुसार जिनके दोसे अधिक बच्चे हैं उन्हें सुविधाओंसे वंचित करनेका मतलब उन बच्चोंके साथ नाइंसाफी होगी। योगी सरकारका तर्क है कि राज्यकी जनसंख्या जिस गतिसे बढ़ रही है उससे लोगोंको स्वास्थ्य सहित अन्य सेवाएं देनेमें समस्या आ रही है। इसलिए जनसंख्यापर नियन्त्रण लगाना आवश्यक है। इससे आम जनको सुविधाएं देने और संसाधनोंके बेहतर इस्तेमालमें मदद मिलेगी। राजनीतिक विश्लेषक इस बिलको भाजपाका चुनावी स्टंट बता रहे हैं। उनके अनुसार यदि यह बिल कानूनका रूप लेता है तो भाजपा मुस्लिम और दलित वोटरोंका धु्रवीकरण करनेमें सफल हो जायेगी। जिसका लाभ उसे २०२२ के चुनावमें मिल सकता है। प्रस्तावित कानूनमें दोसे अधिक बच्चोंवाले दम्पत्तिको स्थानीय निकाय तथा पंचायत चुनाव लडऩे, सरकारी नौकरीमें आवेदन करने और यदि पहलेसे सेवारत हैं तो प्रमोशन लेनेपर रोक लगानेकी बात कही गयी है। साथ ही ऐसे लोगोंको अन्य अनेक सरकारी योजनाओं तथा सुविधाओंसे वंचित रखनेका भी प्रस्ताव बिलमें रखा गया है। साथ ही राशन सिर्फ घरके चार सदस्योंको मिलेगा। वहीं दो बच्चोंके नियमका पालन करनेवालोंको सरकारी सेवामें दो अतिरिक्त इन्क्रीमेंट दिये जायेंगे। महिलाओंको मां बननेपर और पुरुषोंको पिता बननेपर पूरे वेतन और भत्तोंके साथ १२ महीनेकी छुट्टी मिलेगी।
नेशनल पेंशन स्कीमके तहत नियोक्ताके अंशदानमें तीन प्रतिशतकी वृद्धि होगी। जो दम्पत्ति एक बच्चेके बाद ही नसबन्दी करा लेंगे, उन्हें बेटेके लिए ८० हजार तथा बेटीके लिए एक लाख रुपयेकी आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी। ऐसे अनेक प्रावधान बिलके मसौदेमें समाहित हैं। परन्तु प्रारूपके पृष्ठ १२ से १५ में बहुविवाह करनेवालोंके लिए कानूनकी शर्तोंको काफी विस्तारसे समझाया गया है। भारतमें इस्लामके अतिरिक्त अन्य किसी भी धर्मके व्यक्तिको एकसे अधिक विवाह करनेकी कानूनी इजाजत नहीं है। अत: स्पष्ट है कि बहु विवाहको लेकर बिलमें दी गयी शर्तें मुस्लिम समुदायको ध्यानमें रखकर ही बनायी गयी हैं। इसी कारण समाजवादी पार्टी सहित विभिन्न राजनीतिक दल बिलकी मंशापर सवाल उठा रहे हैं। परन्तु इन शर्तोंको पूर्णतया अनुचित कहना सही नहीं है। हिन्दू विवाह अधिनियम एक पत्नी या पतिके रहते दूसरे विवाहकी इजाजत नहीं देता है परन्तु पति या पत्नीकी मृत्यु हो जानेके बाद दूसरे विवाहकी अनुमति सभीके लिए है। अत: प्रस्तावित प्रारूपमें बहुविवाहकी शर्तें अन्य धर्मोंपर स्वत: लागू हो जायेंगी। उत्तर प्रदेश विधि आयोगके अध्यक्ष जस्टिस ए.के. मित्तलके अनुसार अगस्त माहमें विधेयकको अन्तिम रूप देकर सरकारको सौंपनेका प्रयास किया जा रहा है। उनका कथन है कि प्रस्तावित कानून लाभार्थीकी स्वेच्छासे ही लागू किया जायेगा। अर्थात्ï यदि आप कानूनका पालन नहीं करते हैं तो आपपर कोई आपराधिक वाद नहीं चलेगा। बस आपको विधेयकमें वर्णित लाभोंसे वंचित कर दिया जायेगा। यह बात जितनी सरलतासे कही जा सकती है क्या उतनी ही सरलतासे व्यावहारिक धरातलपर भी खरी उतरेगी। यह अपने आपमें यक्ष प्रश्न है। पहला तथ्य यह है कि जिन माता-पिताके पहले ही दोसे अधिक बच्चे हैं उनपर यह कानून भला कैसे और क्यों लागू होगा। क्योंकि उनके तीसरे या चौथे बच्चेके जन्मके समय इस तरहका कोई कानून ही नहीं था।
दूसरा सबसे अहम पहलू यह है कि यदि यह कनून लागू हुआ तो कन्या भ्रूण हत्याके मामले तेजीसे बढ़ेंगे। जिसे रोकनेके लिए अबतक किये गये सभी प्रयास लगभग विफल ही कहे जा सकते हैं। इससे देशका लिंगानुपात और भी अधिक घटेगा।
२०११ की जनगणनाके अनुसार उत्तर प्रदेशमें प्रति १००० पुरुषोंपर ९१२ स्त्रियां हैं। अर्थात्ï उत्तर प्रदेशका लिंगानुपात ९१२ है। जबकि पूरे देशका लिंगानुपात ८७९ है, जो पहले ही चिन्ताका विषय है। लोग सरकारी नौकरी तथा अन्य सुविधाओंके लालचमें अधिकसे अधिक गर्भपात करायेंगे। उसमें भी पुत्रकी कामनाके चलते कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध करनेसे भी गुरेज नहीं करेंगे। लाख जागरूकताके बावजूद आम आदमी पुत्र-पुत्रीके बीच भेद करनेवाली मानसिकताका परित्याग नहीं कर पा रहा है। यदि कुछ जागरूक हो भी तो दहेजकी बढ़ती कुवृत्ति तथा बेटियोंके प्रति बढ़ते अपराध उसे अजन्मी पुत्रीके प्रति निष्ठुर बना देते हैं। प्रस्तावित कानून लागू होनेके बाद पुत्रकी कामना, सरकारी नौकरी तथा विभिन्न सुविधाओंका मोह आम जनको और अभी अधिक निष्ठुर बनायेगा।