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जागरण विश्लेषण: आधा फीसदी मत हासिल करने वाली AIMIM को यूपी में मुस्लिमों ने नकारा,


नई दिल्ली, । बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर मुस्लिम बहुत सीमांचल के इलाकों में पांच सीटें जीतने वाली एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसी फार्मूले का इस्तेमाल किया और उन्होंने बाबू सिंह कुशवाहा और भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन का निर्माण किया। जन अधिकारी पार्टी और बामसेफ भी इस गठबंधन में शामिल हुई। गठबंधन के बाद ओवैसी ने बिहार वाली रणनीति की तरह उत्तर प्रदेश में उन सीटों को निशाना बनाते हुए अपने उम्मीदवार उतारे, जहां मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता है। कुल 100 सीटों पर उम्मीदवारों के साथ यूपी चुनाव लड़ने वाले ओवैसी को मुस्लिम मतदाताओं ने नकार दिया है।

एआईएमआईएम के लिए चुनाव परिणाम बड़ा झटका

403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 399 सीटों पर आए रुझान के आधार पर एआईएमआईएम को इस बार आधा फीसदी से भी कम मत मिलता हुआ नजर आ रहा है, नोटा पर पड़े वोट के मुकाबले बेहद कम है। उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में जुटे ओवैसी के लिए 2022 के चुनाव परिणाम किसी झटके से कम नहीं है। इन चुनावों में एआईएमआईएम वहीं खड़ी नजर आ रही है, जहां वह 2017 के चुनाव में थी। पिछले विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इनमें से 37 सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। पार्टी को कुल 0.24 फीसदी मत मिले थे, जिसमें इस बार मामूली रूप से इजाफा हुआ है।

प्रादेशिक पार्टियों में बटा मुस्लिम वोट

2017 के नतीजों के बाद पोस्ट पोल सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा यानी करीब 45 फीसदी समाजवादी पार्टी के हिस्से में गया, जबकि बसपा और कांग्रेस के खाते में करीब 19-19 फीसदी मत गए। बचा हुआ 17 फीसदी मत ही एआईएमआईएम समेत अन्य दलों के खाते में गया।

यूपी में ओवैसी कुछ भी कर पाने में नाकाम

2011 के जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश की 20 करोड़ आबाादी में करीब 20 फीसदी यानी चार करोड़ मुसलमान है और ओवैसी ने चुनाव के दौरान लगातार सत्ता में मुस्लिमों की भागीदारी को मुद्दा बनाया। ओवैसी लगातार यूपी में चुनाव प्रचार कर रहे थे और तब कई विश्लेषकों ने यह कहा था कि उनके यूपी में आने से बीजेपी को फायदा होगा और अन्य विपक्षी दलों को नुकसान। हालांकि नतीजे बता रहे हैं कि ओवैसी ऐसा कुछ भी कर पाने में नाकाम रहे हैं।

पहले से ज्यादा सतर्क दिखा मुस्लिम मतदाता

यूपी के मुस्लिम मतदाता इस बार मतों के बिखराव को लेकर काफी सजग दिखे और ऐसा लग रहा है कि उनके मतों का बिखराव पहले के मुकाबले बेहद कम रहा है। बेहद न्यूनतम मत का ही कुछ हिस्सा बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम के खाते में आया है।