पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI पर प्रतिबंध जारी रहेगा। कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को PFI पर केंद्र सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच मामले की सुनवाई की। 28 नवंबर को कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। PFI के प्रदेश अध्यक्ष ने संगठन पर लगाए गए बैन को चुनौती दी थी। फिलहाल पाशा न्यायिक हिरासत में है।केंद्र सरकार ने 28 सितंबर को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI को 5 साल के लिए बैन कर दिया था। PFI के अलावा 8 और संगठनों पर कार्रवाई की गई। गृह मंत्रालय ने इन संगठनों को बैन करने का नोटिफिकेशन जारी किया। इन सभी के खिलाफ टेरर लिंक के सबूत मिले थे। केंद्र सरकार ने यह एक्शन (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) UAPA के तहत लिया। सरकार ने कहा, PFI और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं।केंद्र सरकार ने UAPA के तहत PFI और उससे जुड़े 8 संगठनों पर 5 साल का प्रतिबंध लगाया था। ये कदम एजेंसियों की जांच के बाद उठाया गया। PFI और इससे जुड़े संगठन देश में आतंकवाद का समर्थन कर रहे थे।PFI और इससे जुड़े संगठन गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। ये गतिविधियां देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इनकी गतिविधियां भी देश की शांति और धार्मिक सद्भाव के लिए खतरा बन सकती हैं। ये संगठन चुपके-चुपके देश के एक तबके में यह भावना जगा रहा था कि देश में असुरक्षा है और इसके जरिए वो कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहा था।क्रिमिनल और टेरर केसेस से जाहिर है कि इस संगठन ने देश की संवैधानिक शक्ति के प्रति असम्मान दिखाया है। बाहर से मिल रही फंडिंग और वैचारिक समर्थन के चलते यह देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गया है। PFI खुले तौर पर तो सोशियो-इकोनॉमिक, एजुकेशनल और पॉलिटिकल ऑर्गनाइजेशन है पर ये समाज के खास वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के अपने सीक्रेट एजेंडा पर काम कर रहा है। ये देश के लोकतंत्र को दरकिनार कर रहा है। ये संवैधानिक ढांचे का सम्मान नहीं कर रहा है।PFI ने अपने सहयोगी और फ्रंट बनाए, इसका मकसद समाज में युवाओं, छात्रों, महिलाओं, इमामों, वकीलों और कमजोर वर्गों के बीच पैठ बढ़ाना था। इस पैठ बढ़ाने के पीछे PFI का एकमात्र लक्ष्य अपनी मेंबरशिप, प्रभाव और फंड जुटाने की क्षमता को बढ़ाना था। इन संगठनों की बड़े पैमाने पर पहुंच और फंड जुटाने की क्षमता का इस्तेमाल PFI ने अपनी गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ाने में किया। यही सहयोगी संगठन और फ्रंट्स PFI की जड़ों को मजबूत करते रहे।बैंकिंग चैनल्स, हवाला और डोनेशन आदि के जरिए PFI और इससे जुड़े संगठनों के लोगों ने भारत और विदेशों से फंड इकट्ठा किया। यह उनके सुनियोजित आपराधिक षडयंत्र का ही एक हिस्सा था। इस फंड के छोटे-छोटे हिस्सों को कई एकाउंट्स में ट्रांसफर किया गया और ऐसा दिखलाया गया कि यह लीगल फंड है। लेकिन, इसका इस्तेमाल आपराधिक, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों में किया गया।PFI की ओर से जिन जरियों से बैंक अकाउंट्स में पैसा ट्रांसफर किया गया, वह अकाउंट होल्डर के प्रोफाइल से भी मैच नहीं करता। इस फंड के जरिए PFI जिन गतिविधियों को अंजाम देने का दावा करता है, वह भी नहीं किया गया। इसके बाद इनकम टैक्स ने PFI और रेहाब इंडिया फाउंडेशन का रजिस्ट्रेशन कैंसल कर दिया। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात सरकार ने भी PFI को बैन करने की सिफारिश की थी।
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