सदानन्द शास्त्री
सनातन धर्मके विभिन्न ग्रंथोंमें अनेक रहस्य छिपे हैं। भविष्यका दूसरा नाम है संघर्ष, हृदयमें आज इच्छा होती है और यदि पूर्ण नहीं होती तो हृदय भविष्यकी योजना बनानेमें लग जाता है भविष्यमें इच्छा पूरी होगी ऐसी कल्पना करता रहता है किंतु जीवन न तो भविष्यमें न तो अतीतमें है जीवन तो इस क्षणका नाम है, अर्थात्ï इस क्षणका अनुभव ही जीवन है परन्तु हम यह जानते हुए भी इतना-सा सच समझ नहीं पाते या तो हम बीते हुए समयके स्मरणोंको घेर कर बैठे रहते हैं या फिर आनेवाले समयके लिए हम योजनाएं बनाते रहते हैं और जीवन बीत जाता है एक सत्य यदि हम जीवनमें उतार लें कि न हम भविष्य देख सकते हैं, न ही निर्मित कर सकते हैं, हम तो केवल धैर्य और साहससे भविष्यको आलिंगन दे सकते हैं, स्वागत कर सकते हैं भविष्यका तो क्या जीवनका हर पल जीवनसे नहीं भर जायगा। कभी-कभी कोई घटना मनुष्यके जीवनकी योजनाओंको तोड़ देती हैं और मनुष्य उस आघातको अपने जीवनका केंद्र मान लेता है परन्तु क्या भविष्य मनुष्यकी योजनाओंपर निर्भर करता है, जी नहीं, जिस प्रकार किसी ऊंचे पर्वतपर सर्वप्रथम चढऩेवाला उस पर्वतकी तलाईमें बैठकर जो योजना बनाता है, क्या वही योजना उसे उस पर्वतकी चोटीपर पहुंचाती है, नहीं वास्तवमें वह जैसे-जैसे ऊपर चढ़ता है उसे नयी-नयी चुनौतियांका सामना करना पड़ता है, प्रत्येक पगपर योजना बदलता है। जब मनुष्य किसी एक चुनौतीको अपने जीवनकी गतिको ही रोक लेता है तो वह अपने जीवनमें असफल तो होता ही है साथ ही सुख शांति भी खो बैठता है। जीवनका हर क्षण निर्णयका क्षण होता है, जीवनके हर पथपर दूसरे पथके विषेयमें निर्णय करना पड़ता है। आज किये गये निर्णय भविष्यमें सुख अथवा दुख निर्मित करते हैं, न केवल अपने लिए, बल्कि अपने परिवारके लिए, बल्कि आनेवाली पीढिय़ोंके लिए भी। जब कोई दुविधा सामने आती है मन व्याकुल हो जाता है, निर्णयका वह क्षण युद्ध बन जाता है और मन युद्धभूमि। अधिकतर निर्णय हम दुविधाका उपाय करनेके लिए नहीं, बल्कि मनको शांत करनेके लिए लेते हैं। परन्तु क्या कोई दौड़ते हुए भोजन कर सकता है। नहीं तो क्या युद्धसे जूझता हुआ मन कोई योग्य निर्णय ले पायगा। वास्तवमें जब कोई शांत मनसे निर्णय करता है तो सुखद भविष्य बनाता है। किंतु जो व्यक्ति मनको शांत करनेके लिए कोई निर्णय लेता है तो वह अपने भविष्यको कांटोंभरा वृक्ष लगाता है। जीवनमें आनेवाले संघर्षोंके लिए जब मनुष्य खुदको योग्य नहीं मानता, जब उसे अपनी योग्यताओंपर विश्वास नहीं रहता, तब सद्गुणोंको त्यागकर दुर्गुणोंको अपनाता है, वस्तुत: मनुष्यके जीवनमें दुर्जनता जन्म ही तब लेती है जब उसके भीतर आत्मविश्वास नहीं रहता। आत्मविश्वास ही अच्छाईको धारण करता है। आत्मविश्वास है क्या जब मनुष्य ये मानता है कि जीवनका संघर्ष उस दुर्बल बनाता है तो उसे ऊपर आत्माविश्वास नहीं रहता तो उसे अपने ऊपर विश्वास नहीं रहता वह संघर्षके पार जानेके बदले उससे छूटनेके उपाय सोचने लगता है किंतु जब वह यह समझने लगता है कि ये संघर्ष उसे अधिक शक्तिशाली बना दे, ठीक जैसे व्यायाम करनेसे देहकी शक्ति बढ़ती है, तब प्रत्येक संघर्ष करनेके साथ उसका उत्साह बढऩे लगता है अर्थात आत्मविश्वास और कुछ भी नहीं मनकी स्थिति है, जीवनको देखनेको दृष्टिकोण मात्र है और जीवनका दृष्टिकोण तो मनुष्यके अपने वशमें होता है।