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जीवनरक्षक बनी कोरोना वैक्सीन


परे देशके लोगोंमें कोरोनाके कारण भयका माहौल व्याप्त हो रहा है। दूसरे प्रदेशोंमें रोजी-रोटी कमानेके लिए गये लोग भी फिरसे लाकडाउन लगनेकी आशंकासे अपने घरोंको लौटने लगे हैं। देशमें कोरोना वैक्सीन लगानेका काम तेजीसे चल रहा है। कोरोना वैक्सीन लगना प्रारम्भ होनेके तीन माह बाद भी अभीतक देशकी मात्र दस फीसदी आबादीको ही कोरोनाके टीके लग पाये हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीने सभी राज्य सरकारोंसे आह्वïान किया था कि देशमें कोरोना वैक्सीन लगानेकी रफ्तार बढ़ाकर प्रतिदिन ५० लाख टीकोतक पहुंचायी जाय। यदि कोरोना संक्रमितोंकी वर्तमान रफ्तार कायम रही तो आनेवाले कुछ दिनोंमें ही देशमें स्थिति बेकाबू होनेकी आशंका व्यक्त की जाने लगी है। आज भी बहुतसे प्रदेशोंमें लोगोंके उपचारके लिए उपर्युक्त स्वास्थ्य सुविधाओंकी कमी महसूस की जा रही है। आये दिन बड़ी संख्यामें जलती चिताओंकी फोटो आ रही है। जिनको देखकर लोगोंका मन विचलित हो रहा है। सरकारने जीवनरक्षक माने जानेवाली रेमडेसिवर इंजेक्शनका उत्पादन कई गुना बढ़ा दिया है तथा इसके दामोंमें भी बड़ी कटौती की है, ताकि लोगोंको कम दामोंपर पर्याप्त मात्रामें यह जीवनरक्षक इंजेक्शन मिल सके।
देशमें कोविड वैक्सीनकी कमीके बीच केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री डा. हर्षवर्धनने कहा है कि शीघ्र ही कोविड वैक्सीनका उत्पादन दस गुनातक बढ़ाया जायगा। कोरोनाके खिलाफ लड़ाईमें भारतमें बने वैक्सीनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक द्वारा बनायी गयी कोवैक्सीन नामक वैक्सीन अबतक स्वदेशमें तैयार हुई एकमात्र वैक्सीन है। वहीं भारतमें कोरोनाके हालातको देखते हुए मोदी सरकारने अब इस स्वदेशी वैक्सीनकी उत्पादन क्षमता बढ़ानेके लिए कदम बढ़ाया है। भारत बायोटेकके बेंगलुरु स्थित नये केंद्रके लिए सरकारने ६५ करोड़ रुपयेकी राशि जारी की है। वैक्सीनके प्रोडक्शनमें तेजी लानेके लिए तीन अन्य सरकारी उपक्रमोंको सहायता देनेका फैसला किया है। इसके तहत महाराष्ट्र सरकारकी सरकारी कम्पनी हाफकिन बायोफार्मास्यूटिकल कोरपोरेशन लिमिटेडको भी ६५ करोड़ रुपये अनुदानके रूपमें देनेका फैसला किया गया है। कम्पनीको छह महीनेमें अपना उत्पादन शुरू करनेको कहा गया है। पूरी तरह उत्पादन शुरू होनेपर कम्पनी एक महीनेमें दो करोड़ डोज बनानेकी क्षमता हासिल कर लेगी। हैदराबाद स्थित और नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्डके तहत काम करनेवाली कम्पनी इंडियन इम्यूनोलोजिकल्स लिमिटेड और बुलंदशहर स्थित भारत सरकारके बायोटेक्नोलॉजी विभागकी सार्वजनिक क्षेत्रकी कम्पनी भारत इम्युनोलोजिकल्स एंड बायोलॉजिकल्स लिमिटेडको भी वित्तीय सहायता दी जायगी। एक बार उत्पादन शुरू होनेके बाद दोनों कम्पनियां अगस्त-सितम्बरतक हर महीने डेढ़ करोड़ वैक्सीनका उत्पादन कर सकेंगी।
कोरोना महामारीकी बेकाबू रफ्तारके बीच रूसमें बने स्पूतनिक-वी टीकेको देशमें इमरजेंसी उपयोगकी मंजूरी मिल गयी है। रूसके गमालेया रिसर्च इंस्टीट्यूटने इस टीकेके ९१.६ प्रतिशत असरदार होनेका दावा किया है। इस टीकेको आठ डिग्री सेल्सियस फ्रिजके तापमानपर दो महीनेतक रखा जा सकता है। वैज्ञानिकोंकी कोशिश इसे छह माह करनेकी है। इसे रूसने पिछले साल अगस्तमें इस्तेमालके लिए मंजूरी दी थी। इसे सर्बिया, अर्जेंटीना, वॉलिविया समेत ६० से अधिक देशोंमें इस्तेमालकी मंजूरी मिल चुकी है। भारतमें रूसके राजदूत निकोलाय कुदासेवने स्पूतनिक-वीके इस्तेमालकी सिफारिश किये जानेको सही ठहराते हुए कहा कि यह कदम निश्चित रूपसे कोविड-१९ महामारीका मुकाबला करनेके लिए भारत सरकारके प्रयासोंमें योगदान देगा। स्वास्थ्य मंत्रालयने हालमें एक गाइडलाइंस जारी की है। इसमें आवेदन मिलनेके तीन दिनके अंदर विदेशमें बनी कोरोनाकी वैक्सीनको मंजूरी मिल जायगी। माना जा रहा है कि सरकारने देशमें टीकाकरणकी रफ्तार बढ़ानेके लिए यह फैसला लिया है। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन उन वैक्सीनके आपातकालीन इस्तेमालके लिए आवेदन स्वीकार करेगी। जिन्हें अमेरिका, यूरोप, इंग्लैंड और जापानके नियामकोंकी मंजूरी मिल चुकी है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संघटनकी इमर्जेंसी यूज लिस्टमें शामिल वैक्सीन भी भारतमें एप्रूवलके लिए आवेदन कर सकेंगी। ऐसेमें भारतमें जल्द ही कई विदेशी वैक्सीन आ सकती हैं। विदेशमें नियामकोंकी मंजूरीवाली वैक्सीनको भारतमें क्लिनिकल या ब्रिजिंग ट्रायलकी जरूरत नहीं होगी। नीति आयोगके सदस्य और वैक्सीनपर बने राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूहके अध्यक्ष डा. वीके पॉलने साफ किया कि विदेशी वैक्सीनको भारतमें ट्रायलसे छूट सिर्फ कोरोना संक्रमणके मौजूदा हालातको देखते हुए दी गयी है।दरअसल देशमें सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक फिलहाल प्रतिदिन लगभग २३ लाख डोज तैयार कर रही हैं। जबकि प्रतिदिन औसतन ३५ लाख टीके लगाये जा रहे हैं। इसकी तुलनामें उत्पादन बहुत कम है। इस कमीको दूर करनेके लिए सरकार कई स्तरोंपर काम कर रही है। एक तरफ भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूटसे उत्पादन बढ़ानेके लिए बातचीत चल रही है। दूसरी ओर विदेशी वैक्सीनके लिए भारतके दरवाजे खोल देना गेम चेंजर हो सकता है। जॉन्सन एंड जॉन्सनकी वैक्सीन, फाइजरकी एमआरएन, कोविड-१९ वैक्सीन, अमेरिकी दवा कंपनी मॉडर्नाकी वैक्सीन, अमेरिकी वैक्सीन कंपनी नोवाकी कोवोवैक्स जल्द भारत आ सकती है। अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुछ देशोंमें मंजूर और विश्व स्वास्थ्य संघटन द्वारा स्वीकृत विदेशी वैक्सीनके देशमें इमरजेंसी इस्तेमालकी अनुमति देनेके बावजूद वैक्सीनकी सप्लाईमें तत्काल वृद्धिकी कोई उम्मीद नहीं है। मईमें आयातित स्पुतनिक-वीकी सप्लाई शुरू हो जायेगी। लेकिन उसकी मात्रा भी सीमित होगी। इसके अलावा भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूटका उत्पादन भी जूनसे ही बढ़नेकी उम्मीद है।
माना जा रहा है कि तमाम कोशिशोंके बावजूद मईतक वैक्सीनकी सप्लाई सीमित रहेगी। स्पुतनिक-वीके भारतमें उत्पादनके लिए रसियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंडने तीन भारतीय कम्पनियोंके साथ सालाना ८५ करोड़ डोजके उत्पादनका समझौता किया है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो भारतीय कम्पनियोंमें जूनतक स्पुतनिक-वीका उत्पादन शुरू हो जायगा। इसी तरह भारत बायोटेकने भी जूनमें अपनी उत्पादन क्षमता हर महीने ७० लाख डोजसे बढ़ाकर एक करोड़ ४० लाख करनेका भरोसा दिलाया है। वहीं सीरम इंस्टीट्यूटने अगस्ततक हर महीने ११ करोड़ डोजकी उत्पादन क्षमता हासिल करनेका दावा किया है। फिलहाल भारतमें कोरोनाकी दूसरी लहर कहर बरपा रही है। रोजाना आनेवाले नये मामलोंकी संख्या बढ़कर तीन लाखको पार करनेवाली है। यदि समय रहते कोरोनापर पर काबू नहीं पाया गया तो फिर आगे स्थितिको संभाल पाना मुश्किल हो जायेगा।