सम्पादकीय

जीवन मूल प्रवृत्तिसे सकारात्मकताका भाव


डा. जगदीश सिंह दीक्षित

आज जिस तरहसे कोरोना वायरससे उत्पन्न हुई महामारीके कारण पूरी मानवता खतरेमें पड़ गयी है, उसे देखकर लोगोंका मन काफी विचलित हो रहा है। लोगोंमें इसके बढ़ते प्रभाव और उससे उत्पन्न खतरेके कारण स्वाभाविक रूपसे भय और मानसिक तनावकी स्थिति उत्पन्न हो रही है। कुछ लोगोंका आत्मविश्वास मजबूत है और उनमें जिजीविषा शक्तिका अकूत भण्डार है तो उनके पास कभी भी यह कोरोना वायरस फटक नहीं सकता है। यह जिजीविषा शक्ति और आत्मविश्वास किस तरहसे लोगोंके अंदर काम करता है। फ्रायडकी मान्यता है कि व्यक्ति द्वारा किया जानेवाला प्रत्येक व्यवहार मानसिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्धारित किया जाता है। उन्होंने मनके तीन स्तरोंकी बात किया है, जिन मानसिक अनुभूतियोंका हमें बोध रहता है उसे चेतन मन कहते हैं। जिन मानसिक अनुभूतियोंको हम आसानीसे अपने मनके चेतन स्तरपर लानेमें सफल हो जाते हैं उसे अवचेतन या अद्र्धचेतन कहते हैं। जिन मानसिक अनुभूतियोंको हमें मनके चेतन स्तरपर लानेमें काफी कठिनाई होती है या यूं कहें कि उन्हें हम अपने बोध स्तरपर ला ही नहीं पाते हैं, उनके अचेतन मनका स्तर कहते हैं। लेकिन यह अचेतन मनकी अनुभूतियां उपयुक्त अवसर आनेपर चेतन स्तरपर आ जाती हैं। फ्रायडका मत है कि जब व्यक्तिके मनके अचेतन स्तरपर जितना अधिक अन्तद्र्वन्द्व होगा तो निश्चित रूपसे उसमें तनाव और प्रतिबल भी उतना ही अधिक होगा। आज ही तनाव और प्रतिबल इस कोरोना वायरससे उत्पन्न हुई महामारीके कारण लोगोंमें भयंकर रूपसे उत्पन्न हो रहा है। इसके कारण लोगोंमें जीवनके प्रति नकारात्मकताका भाव पैदा कर रहा है।

फ्रायडका मानना है कि व्यक्तिके अंदर जो मूल प्रवृत्तियां होती हैं वही उसमें मानसिक शक्तिके रूपमें कार्य करती हैं। इनका एक विचार यह भी है कि इन मूल प्रवृत्तियोंका मुख्य उद्देश्य यह भी है कि यह व्यक्तिमें उत्पन्न उत्तेजना और असंतुलनको समाप्त करके उनमें सामान्य स्थिति उत्पन्न करना होता है। इनका मत यह भी है कि यह मूल प्रवृत्तियां तनाव और प्रतिबलको भी व्यक्तिमें कम करनेका कार्य करती हैं। यह मूल प्रवृत्तियां तनाव और प्रतिबलको कैसे कम करती हैं और व्यक्तिके अंदर सकारात्मक सोचको उत्पन्न करती हैं इसके पीछे यह दो मूल प्रवृत्तियां कार्य करती हैं। यह हैं जीवन मूल प्रवृत्तियां और मृत्यु मूल प्रवृत्तियां। फ्रायड मानते हैं कि व्यक्तिका व्यवहार किसी एक मूल प्रवृत्ति द्वारा नहीं प्रभावित होता है, बल्कि दोनों ही मूल प्रवृत्तियोंमें जो अंत:क्रिया होती है उसके द्वारा निर्धारित होती है। अर्थात्ï यह मानव व्यवहार इन दोनों ही मूल प्रवृत्तियोंका परिणाम होता है। अत: व्यक्ति कब कैसा व्यवहार करेगा यह इस बातपर निर्भर करता है कि उसके अंदर किस समयपर प्रबलताके साथ कौन-सी मूल प्रवृत्ति कार्य करती है। जब व्यक्तिके अंदर जीवन मूल प्रवृत्ति कार्य करती है तब उसमें रचनात्मक एवं सकारात्मकताका भाव पैदा होता है। इससे उसमें जिजीविषा शक्ति और आत्मविश्वासका भाव पैदा होता है और फिर उसमें जीनेकी इच्छाशक्तिका संचार होता है। वहीं जब मृत्यु मूल प्रवृत्ति उसमें कार्य करने लगती है तब नकारात्मक सोच उत्पन्न होने लगती है और धीरे-धीरे जीनेकी इच्छाशक्ति समाप्त होने लगती है।

उदाहरण है कि एक शिक्षकके पिताजी जो शिक्षा विभागमें वरिष्ठ अधिकारी थे। वे बहुत कर्मठ एवं ईमानदार थे। अवकाश प्राप्त करनेके बाद वे गांवपर ही दूर स्थित सीवानमें डेरा बनाकर रहते थे। उम्र लगभग ८४ वर्षके आसपास थी। उनकी तबीयत खराब हुई तो बेटेने उन्हें अपने शहरके मकानपर लाया। ज्यादा तबीयत खराब हुई तो एक ग्रामीण क्षेत्रके अस्पतालमें इलाजके लिए बेटा ले गया। वह एक दिनके बाद बेटेसे बोले कि तुम मुझे यहांसे घर ले चलो। घर जानेपर एक-दो दिन बाद वह परलोक सिधार गये। जब दो-तीन दिन बाद यह बात उनके पिताजी जो करीब १०४ वर्षके थे तो उनका कहना था कि अरे यह मेरेसे पहले चला गया। उनमें यह नकारात्मक सोच इस तरह प्रबल रूपसे उत्पन्न हुई कि वह भी दो-तीन दिन बाद चल बसे। कहनेका मतलब यह है कि जब नकारात्मक सोच उत्पन्न होने लगती है तो जीनेकी इच्छाशक्ति कम होने लगती है। व्यक्ति तनाव और प्रतिबलका शिकार होने लगता है।

एक सकारात्मक सोचका उदाहरण यह है कि एक महिला गंभीर रूपसे बीमार होकर चारपाईपर पड़ गयी। उसके खिड़कीमें कांच लगा हुआ था। उस खिड़कीके सामने एक छोटा-सा पेड़ था। प्रतिदिन कुछ न कुछ उसकी पत्तियां गिरती थीं। इन पत्रोंके गिरनेको देखकर उस महिलामें नकारात्मक सोच उत्पन्न होने लगी। जब उस पेड़पर दो ही पत्तियां रह गयीं तो उसमें इतना तेजीसे मृत्यु प्रवृत्ति काम करने लगी कि वह अपने जीवनसे निराश हो गयी। लोगोंने उसे बहुत समझानेकी कोशिश किया कि पतझड़का मौसम है पत्तियां जो पुरानी हैं वह तो गिरेंगी ही। परन्तु उसमें नयी पत्तियां भी तो निकल रही हैं। तुम ठीक हो जाओगी। लेकिन उसे उन दो पत्तियोंके गिरनेका इन्तजार था। यह बात जब एक चित्रकारको पता चली तो उसने उस कांचपर जहां उन दो पत्तियोंकी छाया पड़ती थी उसी जगह वैसी ही दो पत्तियोंके चित्र बना दिये। जब-जब उस महिलाकी दृष्टि वहां जाती तो वह दोनों ही पत्तियां वैसे ही दिखाई देतीं। अब उसमें अबतक जो नकारात्मक सोच मृत्यु मूल प्रवृत्तिके कारण विकसित हुई थी वह अब जीवनके प्रति सकारात्मक सोचमें बदलने लगी। अर्थात्ï अब उस महिलामें जीवन मूल प्रवृत्ति कार्य करने लगी। धीरे-धीरे उसमें जिजीविषा शक्ति और आत्मविश्वासका भाव पैदा होने लगा। कुछ दिन बाद उस एक मनोवैज्ञानिक बदलावने उसमें जीवनके प्रति जीनेकी इच्छाशक्ति ही बढ़ा दिया। इस तरह यह संकटके बादल कुछ ही दिनोंके लिए हैं। आयगा एक हवाका झोंका उस संकटके बादलको उड़ा ले जायगा। आप अपने मनको मजबूत रखें। आत्मविश्वास मत डगमगाने दीजिए। अपनी जिजीविषा शक्तिको प्रबल बनाये रखें। मनको हारने मत दीजिए। कहावत है न-मनके हारे हार है, मनके जीते जीत। इस हारको जीतमें बदल दीजिए। निश्चित रूपसे इस कोरोना वायरसका हम सब मिलकर खात्मा कर देंगे।