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जैश्मीन शाह मामले में केजरीवाल और राज्यपाल आमने सामने, मामला पहुंचा राष्ट्रपति के पास


नई दिल्ली। उपराज्यपाल कार्यालय ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस आदेश को अवैध बताया है जिसे उन्होंने योजना विभाग को दिया था, जिसमें जैस्मीन शाह के समर्थन में कहा था कि जैस्मीन शाह को सभी सुविधाएं बहाल की जाएं। उपराज्यपाल कार्यालय ने कहा है कि जैस्मीन शाह के मामले को पहले ही कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जा चुका है।

बता दें कि उपराज्यपाल के निर्देश पर पिछले 17 नवंबर को योजना विभाग ने दिल्ली संवाद एंव विकास आयोग के उपाध्यक्ष के पद के तहत शाह को मिलने वाली सभी सुविधाओं को रोक दिया था। एलजी ने शाह को पद से हटाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखा था।

सुविधाएं ली गईं थी वापस

वहीं पिछले महीने उपराज्यपाल के एक आदेश के बाद उन्हें दी जा रही सुविधाओं को वापस ले लिया गया था। सिविल लाइन्स के एसडीएम ने गत 17 नवंबर को जस्मिन शाह के दफ़्तर को सील कर दिया था। जस्मिन शाह ने इस कदम के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है।

क्या कहा सीएम केजरीवाल ने?

शाह को हटाने और उनके विशेषाधिकार वापस लेने का प्रशासनिक आदेश भी 17 नवंबर को एलजी सक्सेना के निर्देश के बाद योजना विभाग द्वारा जारी किया गया था, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सीएम ने आदेश में लिखा है कि इस मुद्दे पर कोई अधिकार उनके पास नहीं है। केजरीवाल ने आदेश में कहा है कि डीडीसी उपाध्यक्ष को कैबिनेट के एक फैसले से नियुक्त किया गया था और केवल आयोग के अध्यक्ष की मंजूरी से ही उन्हें हटाया जा सकता है, यह अधिकार केवल मुख्यमंत्री के पास है।

भाजपा सांसद ने की थी शिकायत

भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा की शिकायत पर योजना विभाग ने 17 अक्टूबर को शाह को कथित तौर पर सरकारी संसाधनों और सार्वजनिक कार्यालय का दुरुपयोग करने के लिए एक राजनीतिक दल के प्रवक्ता के रूप में काम करने के आरोप में नोटिस दिया था। योजना विभाग की रिपोर्ट और शाह द्वारा प्रस्तुत जवाब के आधार पर एलजी ने मुख्यमंत्री को डीडीसी उपाध्यक्ष के रूप में जस्मिन शाह को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने और कार्यालय से जुड़े किसी भी विशेषाधिकार और सुविधाओं का उपयोग नहीं करने देने का निर्देश दिया था। सीएम के अपने आदेश में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जून 1951 और अक्टूबर 1958 में जारी किए गए कार्यालय ज्ञापनों (ओएम) का हवाला देते हुए कहा है कि यह काफी हद तक स्पष्ट है कि सीसीएस (आचरण) नियम केवल उन लोगों पर लागू होते हैं, जिन्हें सिविल सेवा में नियुक्त किया गया हो।

शाह ने कोई उल्लंघन नहीं किया

केजरीवाल ने अपने आदेश में कहा कि उन्होंने भाजपा सांसद वर्मा द्वारा उपराज्यपाल को दी गई शिकायत और सक्सेना के 17 नवंबर के आदेश की जांच की और वह इस बात से संतुष्ट हैं कि डीडीसीडी के उपाध्यक्ष शाह ने ऐसा कोई उल्लंघन नहीं किया है, जिससे उन्हें पद से हटाया जा सके या अन्य दंडात्मक कार्रवाई की जा सके।

उन्होंने कहा है कि 1951 का ओएम भी कहता है कि ऐसे व्यक्तियों को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने से रोकने के लिए नियम लागू नहीं होंगे। केजरीवाल ने अपने आदेश में ओएम के खंड का जिक्र करते हुए कहा कि मानद कार्यकर्ता जो सार्वजनिक या राजनीतिक जीवन में प्रमुख थे राजनीतिक दलों के साथ उनके आजीवन संबंध को समाप्त करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है और सरकारी सेवकों के आचरण के नियमों को उनके खिलाफ लागू नहीं होते हैं।

उन्होंने कहा है कि शाह के खिलाफ कार्रवाई का मूल आधार एक सरकारी कर्मचारी के रूप में नियुक्त होने के बाद उनका कुछ टीवी चैनलों पर बहसों में भाग लेना बताया गया है और कहा गया है कि डीडीसीडी के कार्यालय का शाह ने दुरुपयोग किया है, सीएम ने कहा है कि यह गलत तर्क है।