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जौनपुर में आजाद हिंद फौज के सिपाही बनारसी राम का निधन, राजकीय सम्‍मान के साथ गार्ड आफ ऑनर


आजाद हिंद फौज में सिपाही रह चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनारसी राम (93) का बुधवार की रात जौनपुर के एक निजी चिकित्सालय में निधन हो गया। तीन दिन पहले वह घर में गिर कर घायल हो गए थे और उनका उपचार जौनपुर के ही निजी चिकित्सालय में चल रहा था।

जौनपुर, । जंगे आजादी के सिपाही और आजाद हिंद फौज में सिपाही रह चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनारसी राम (93) का बुधवार की रात जौनपुर के एक निजी चिकित्सालय में निधन हो गया। तीन दिन पहले वह घर में गिर कर घायल हो गए थे और उनका उपचार जौनपुर के ही निजी चिकित्सालय में चल रहा था। उनके निधन की खबर सुनते ही उनके घर पर शोक संवेदना व्यक्त करने वालों का सैलाब उमड़ा पड़ा। बुधवार को पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका रामघाट पर अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के पूर्व जफराबाद थानाध्यक्ष विजय बहादुर ने फोर्स के साथ पहुंचकर गार्ड ऑफ ऑनर दिया और तहसीलदार सदर ने उनके शव पर माल्यार्पण किया। इस दौरान वहां पर भारत माता की जय और वंदे मातरम के लोगों ने नारे भी लगाये गए।

14 अगस्त 2020 को दैनिक जागरण को दिए एक इंटरव्यू में बनारसी राम ने बताया था कि 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज में सिपाहियों की भर्ती हो रही थी। बनारसी जियावाड़ी स्थित आजाद हिंद फौज के सेंटर पहुंच गये। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने उन्हें नाबालिग बताते हुये भर्ती करने से मना कर दिया। इस पर वह रोने लगे। उनकी देशभक्ति का जज्बा देखकर नेताजी को तरस आ गया और सेना में भर्ती कर फौजियों की सेवा में लगा दिया। वर्ष 1945 में जब युद्ध के दोरान बमबारी होने लगी तो इस दौरान बनारसी के सिर पर चोट आ गयी थी। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और रंगून की टांगो जेल में बंद कर दिया। छह माह तक जेल में बंद रहने के बाद उन्हें रिहा किया गया था।

दो बेटे और एक बेटी का भरा पूरा परिवार पीछे छोड़ गए बनारसी राम

किरतापुर गांव निवासी बनारसी राम आजाद हिंद फौज के सेनानी थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में उन्होंने आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनके दो पुत्र सुभाष और संतोष और एक बेटी बेचना देवी हैं। तीनों की शादी हो चुकी है और उनका भरा पूरा अपना परिवार है। बनारसी राम के निधन के बाद अब जिले में केवल एक ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जीवित बचे हैं। उनके निधन के बाद गणमान्य लोगों ने अपने शोक संवेदना व्यक्त करते हुए बताया कि बनारसी राम के जाने से जो बड़ा शून्य पैदा हुआ है उसको कभी भरा नहीं जा सकता है। उनके बताए हुए रास्ते पर चलकर के ही इस देश और समाज का भला किया जा सकता है।