सम्पादकीय

ज्ञानकी महत्ता 


श्रीश्री रविशंकर

ज्ञानीके पास जो कुछ है, उससे वह खुश है तथा जो कुछ नहीं है, उससे भी वह प्रसन्न है। मूर्खके पास जो भी है, उससे वह नाखुश है और जो कुछ नहीं है, उसके लिए अप्रसन्न। कोई व्यक्ति हमें दुख नहीं देता, न ही जीवनमें कोई वस्तु हमारे क्लेशका कारण होती है। यह तुम्हारा अपना मन है, जो तुम्हें दुखी बनाता है एवं तुम्हारा खुदका मन ही तुम्हें प्रसन्न और उत्साहित बनाता है। यदि तुम्हारे पास जो कुछ भी है, उससे तुम पूरी तरहसे तृप्त हो तब जीवनमें कोई चाह नहीं होती। यह महत्वपूर्ण है कि आकांक्षाएं हों परंतु यदि अपनी महत्वाकांक्षाके बारेमें तुम ज्वरग्रस्त हो, वह अपने आपमें एक अवरोध बन जाता है। नलकी बहुत तेज धारके नीचे जब प्यालेको रखा जाता है तो वह कभी नहीं भर सकेगा। नलके पानीको सही रफ्तारसे बहाओगे तब प्याला भर पायगा। यही होता है उन लोगोंके साथ जो बहुत अधिक महत्वाकांक्षी या ज्वरग्रस्त हैं। बस संकल्प रखो मैं यही चाहता हूं और जाने दो। तुम्हारा पूरा जीवन, हर सांस जो तुम लेते हो उपासनाका एक रूप है। भक्तिका अर्थ है आदर एवं सम्मानके साथ प्रेम करना। महज आराधना भक्ति नहीं है। आराधनाका अर्थ है किसी व्यक्तिके खास गुणोंके कारण उनसे प्रेम करना। सत्य सदैव सहज होता है एवं वह सृष्टिके सरलतम रूपोंमें परिव्याप्त है। परिवर्तनको जानो और अपरिवर्तनशीलको देखो। जो बदल रहा है, उसे जानो और अचानक ही तुम जीवंत हो उठोगे और इसके साथ ही तुम जड़ता या मृत्युपर काबू पा सकोगे। मृत्युसे परे हटकर परिवर्तनशील सृष्टि तुम्हें आकर्षित करती है, अपरिवर्तनशील सृष्टि तुम्हें अमरताकी झलक दिखाती है। ईशावास्योपनिषदके पंद्रहवें पदमें एक प्रार्थना है, हे पालनकर्ता, यह पर्दा उठाइये। प्रार्थना यह है कि सत्यका चेहरा एक पर्देसे ढका हुआ है। कृपया उस पर्देको उठाइये ताकि मैं सत्यको देख सकूं। जीवनमें हम बाह्य आवरणमें फंसे रह जाते हैं। इस अद्भुत उपहारको हमने अभीतक खोला भी नहीं है। यदि मैं अपने आप सत्यको खोज सकूं, तब वह सत्य है ही नहीं, क्योंकि सर्वोच्चको केवल कृपासे प्राप्त किया जा सकता है। उसतक मेरे द्वारा नहीं पहुंचा जा सकता और फिर आत्मानुभूतिका एक पद है। तुम्हें यह बोध करानेके लिए कि मैं वह हूं। सर्वप्रथम चेतनाके सभी गुणोंको रास्ता देना होगा। चेतनाके विभिन्न पहलू मनको अनुभव करने या अनुभव न करनेमें समर्थ बनाते हैं। जो कुछ भी तुम्हें मिलता है उसीमें संतुष्ट हो जाना बहुत बड़ी बात है। ज्ञानीके लिए यह सब बहुत आसान होता है, किंतु हमारे लिए यह असंभव-सा लगता है। यही फर्क होता है ज्ञानी और मूर्खके बीच।