सम्पादकीय

नयी सार्वजनिक इकाइयोंकी जरूरत


डा. भरत झुनझुनवाला         

कोविड के इस कालमें वर्तमान चालू खर्चोंको सरकार पोषित नहीं कर पा रही है। यद्यपि वर्तमान वर्ष २०२१-२०२२ के बजट में केंद्र सरकार ने पूंजी खर्चोंमें लगभग ३५ प्रतिशतकी वृद्धिकी है और वर्तमान वर्ष में ५.५ लाख करोड़ रुपएका पूंजी खर्च करनेका प्रस्ताव है परंतु यह फ लीभूत होगा कि नहीं यह निश्चित नहीं है। इस निवेशमें नई तकनीकोंका क्या हिस्सा है यह भी स्पष्ट नहीं है। सच यह है कि आने वाले समयमें तकनीकों का ही बोलबाला होगा जिस देश के पास आधुनिकतम तकनीके होंगी वही विजयी होगा। हम देख चुके हैं कि किस प्रकार अमेरिकाकी आधुनिक पैट्रियोट मिसाइलोंने सद्दाम हुसैन के इराककी सेनाको चंद दिनोंमें ही ध्वस्त कर दिया था। इसलिए हमें तकनीकों में भारी निवेश करना होगा। प्रश्न है कि इसके लिए रकम कहां से आए सरकारी इकाइयां तीन प्रकार की हैं। पहली इकाईयां सार्वजनिक सुविधाओं को प्रदान करने वाली है। जैसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हर जिलेमें क्लीयरिंग हाउस चलाता है अथवा जैसे सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन द्वारा पूरे देशके विद्यालयों को नियमित किया जाता है। इस प्रकार की सार्वजनिक इकाइयों को बनाए रखना जरूरी है।

इन कार्योंको निजी हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता है। दूसरी इकाइयां वह है जिनके समकक्ष निजी इकाइयां वर्तमान में सफ ल है जैसे स्टेट बैंकको छोड़कर अन्य बैंकके सामने कोटक महिंद्रा आदि प्राइवेट बैंक सफ ल है। जैसे एयर इंडियाके सामने इंडिगो एवं स्पाइस जेट एयरलाइन सफ ल है अथवा जैसे तेल कंपनियोंमें इंडियन ऑयलके सामने रिलायंस सफ ल है। इन क्षेत्रोंमें सार्वजनिक इकाइयोंको बनाए रखनेका औचित्य नहीं है क्योंकि इन सेवाओंको निजी उद्यमी उपलब्ध करा सकते हैं। यह सही है कि निजी उद्यमियों द्वारा जनता से अधिक रकम वसूल कर मुनाफ ाखोरी की जा सकती है लेकिन इस समस्या को नियंत्रण व्यवस्था सुदृढ़ करके संभाला जा सकता है। जैसे ट्राईने मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली निजी कंपनियोंपर नियंत्रण कर देशमें सस्ती मोबाइल सेवाएं उपलब्ध करायी हैं। इसी प्रकार रिजर्व बैंक द्वारा निजी बैंकोंके नियंत्रणसे सस्ती बैंकिंग सेवाएं प्रदान करायी जा सकती हैं। इस प्रकार की तमाम इकाइयोंका निजीकरण किया जा सकता है जिनके द्वारा प्रदत्त सेवाएं निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध करायी जा सकी हैं।

वर्तमानमें सार्वजनिक इकाइयोंका ‘मार्केट कैपिटललाइजेशनÓ यानी उनके शेयरोंकी बाजारमें कीमत लगभग २० लाख करोड़ है। इसके सामने वर्तमान वर्ष २०२१-२०२२ सरकार द्वारा कुल पूंजी खर्च केवल ५.५ लाख करोड़ रुपए किया जा रहा है। अत: यदि वर्तमान सार्वजनिक इकाइयों का निजीकरण कर दिया जाए तो हमें २० लाख करोड़ की विशाल रकम मिल सकती है। इसमें यदि एक-चौथाई इकाइयां जैसे स्टेट बैंकको मान लें जिनका निजीकरण नही करना चाहिएय तो हमें लगभग १५ लाख करोड़ रूपएकी विशाल रकम मिल सकती है। इस विशाल रकम को हमें नयी तकनीकोंके सृजनमें तत्काल निवेश करना चाहिए। जैसे एक इकाई आर्टिफि शियल इंटेलिजेंसको बढ़ावा देने के लिए बनायी जा सकती है। वर्तमान में मेडिकल आदि क्षेत्रोंमें आर्टिफि शियल इंटेलिजेंसकी सहायता से डाक्टरों द्वारा पर्चे आसानी से लिखे जा रहे हैं और रोगियोंको लाभ मिल रहा है। आर्टिफि शियल इंटेलिजेंस द्वारा रोगी के तमाम टेस्टका अध्ययन करके डाक्टर को सुझाव दिया जाता है। इससे डाक्टर के लिए तमाम टेस्ट रिपोर्ट को स्वयं देखना आवश्यक नहीं रह जाता है। दूसरे, छठी पीढ़ी के इंटरनेटके सृजनके लिए हमें निवेश करना चाहिए। तीसरे इंटरनेट, ऑफ थिंग्स जैसे इंटरनेटके माध्यमसे किसी दफ्तरकी सुरक्षा व्यवस्थाको संचालित करना, एयर कंडीशनिंग को नियंत्रित करना इत्यादिमें निवेश करनेमें बहुत संभावनाएं हैं।

चौथा आने वाले समयमें जेनेटिक जीन परिवर्तन से नयी दवाएं इत्यादि बनाई जा रही हैं जिसपर भी हमें निवेश करना चाहिए। जैसे आलू की प्रजातिमें सुधार करके उसके माध्यम से विटामिन परोसा जा सकता है। पांचवा आयुर्वेद, यूनानी एवं होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक दवाओं के विस्तार के लिए हमें इकाई बनानी चाहिए जोकि इन उपचार व्यवस्थाओंका अंतरराष्ट्रीय प्रचार करें और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार इनपर शोध करें इत्यादि छठवां अमेरिका की वर्जिन गैलेक्टिक कंपनीने अंतरिक्षमें वाणिज्य यान भेजनेका ऐलान किया है इसी प्रकार भारत सरकार भी एक इकाई बना सकती है। वर्तमान में इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन द्वारा दुसरे देशों के सेटॅलाइटको अंतरिक्ष में पहुंचाया जा रहा है। यही कार्य एक अलग इकायी द्वारा किया जा सकता है। चीन ने मंगल ग्रह पर अपना यान उतारा है। भारत भी वाणिज्यिक स्तर पर अंतरिक्ष एवं दूसरे ग्रहोंमें यान भेज सकता है।

इन तमाम तकनीकी संभावनाओंको फ लीभूत करने के लिए जरूरी है कि देश वर्तमान की तुलना में नयी तकनीकों के सृजन में १० गुना निवेश बढ़ाए। सरकारके वर्तमान बजटके अंतर्गत यह संभव नहीं है। इसलिए सरकारको कठोर कदम उठाते हुए स्टेट बैंक को छोड़कर अन्य सरकारी बैंकों, एयर इंडिया, तेल कंपनियों आदि का निजीकरण कर देना चाहिए और मिली हुई रकम को नयी तकनीकोंके अविष्कारमें निवेश करना चाहिए। इस सुझावके विपरीत कहा जा सकता है कि जो सार्वजनिक इकाई के समीप हैं उनके हितोंको संरक्षित करनेके लिए इनका निजीकरण नहीं होना चाहिए। यह तर्क नहीं ठहरता है क्योंकि इकाईका निजीकरण किया जा रहा है, कर्मचारियोंको सेवानिवृत्ति नहीं किया जा रहा है जो भी उद्यमी इन इकाइयोंको खरीदेगा उसे भी कर्मचारीकी जरूरत होती है यदि कर्मचारी ईमानदारीसे काम करेंगे तो उन्हें वह निकालें ऐसी कोई जरूरत नहीं है। अत: इस समय सार्वजनिक इकाइयोंके श्रमिकोके हित साधनेके स्थानपर सरकारको देशके तकनिकी भविष्य साधना चाहिए और तमाम गैर आवश्यक सार्वजनिक इकाइयोंका निजीकरण करके उस मिली रकमको नयी तकनीकोंके आविष्कारमें लगाना चाहिए।