सम्पादकीय

टीकाकरणका विस्तार


देशमें कोरोनाके बढ़ते कहरके बीच सरकारने टीकाकरणके विस्तारका निर्णय किया है, जो आवश्यक और स्वागतयोग्य है। कोरोनाके खिलाफ जंगमें टीकाकरण बड़ा सुरक्षा कवच है और देशका हर नागरिक इसके दायरेमें है, उसकी उम्र और आर्थिक स्थिति चाहे जो भी हो। सरकारी केन्द्रोंपर नि:शुल्क टीकाकरणका अभियान पूर्ववत चलता रहेगा। निजी अस्पतालोंमें भी निर्धारित २५० रुपये शुल्कके साथ टीके लगाये जाते रहेंगे। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने सोमवारको कोरोनाकी स्थितिके सन्दर्भमें लगातार कई बैठकोंके बाद टीकाकरणके तीसरे चरणको आगामी एक मईसे प्रारम्भ करनेकी घोषणा की, जिसमें १८ वर्षसे अधिक उम्रके लोगोंको भी टीका लगाया जायगा। सरकारने कहा है कि विश्वके सबसे बड़े टीकाकरण अभियानके तीसरे चरणमें टीकोंकी खरीद और टीका लगवानेकी पात्रतामें ढील दी जा रही है। स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रण्ट लाइन कार्यकर्ताओंके बाद ६० वर्षसे अधिक उम्रवालों और उसके बाद ४५ वर्षसे अधिक उम्रवालोंको टीका लगानेकी स्वीकृति प्रदान की गयी। सरकारका यह प्रयास है कि अधिकतम लोगोंको टीका लगाया जाय। ४५ वर्षसे अधिक उम्रके लोगोंके साथ ही प्राथमिकतावाले समूहोंको दूसरी खुराक देनेमें प्राथमिकता दी जायगी। सरकारने यह भी व्यवस्था की है कि कम्पनियां ५० प्रतिशत टीके केन्द्र सरकारको बेचेंगी और शेष ५० प्रतिशत राज्य सरकारों, कारपोरेट हाउस या खुले बाजारमें बेच सकेंगी। इसके लिए मूल्य पहलेसे ही घोषित करना होगा। लेकिन सरकारका यह भी दायित्व है कि खुले बाजारमें बिक्री होनेवाले टीकोंके मूल्यपर वह नजर रखे जिससे कि उसकी कालाबाजारी नहीं हो सके। इस समय कोरोनासे सम्बन्धित दवाओं और सुईकी कालाबाजारी हो रही है। इसलिए मनमाने मूल्य वसूलनेकी छूट किसीको नहीं दी जा सकती है। टीका निर्माता कम्पनियोंको अपना उत्पादन बढ़ाना होगा जिससे कि देशके हर क्षेत्रमें इसकी पर्याप्त उपलब्धता बनी रहे। साथ ही टीकाकरणके अभियानमें व्यवस्थागत खामियोंको भी दूर करना होगा। टीकाका सर्वसुलभ होना बहुत जरूरी है तभी टीकाकरण अभियान सफल हो सकता है। कोरोनाका संक्रमण बहुत तेजीसे बढ़ रहा है और संक्रमितों तथा मृतकोंके आंकड़े प्रतिदिन नये रिकार्ड बना रहे हैं। ऐसी स्थितिमें टीकाकरणमें काफी तेजी लानेकी जरूरत है जिससे कि हर पात्र नागरिकको टीके लगाये जा सकें। टीकाकरणको जनान्दोलनका रूप देना होगा।

चीन फिर बेनकाब

पूरी दुनियाके सामने भारतके साथ सम्बन्ध सुधारनेका दिखावा करनेवाले धुर्त चीनका असली चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। पूर्वी लद्दाखमें लगभग एक सालसे जारी सैन्य गतिरोध खत्म होता नहीं दिख रहा है। इसका प्रमुख कारण है चीनकी कथनी और करनीमें जमीन-आसमानका अन्तर। विवाद समाप्त करनेके लिए दोनों देशोंके बीच अबतक ११ दौरकी वार्ता हो चुकी है जिसमें दोनों देशोंकी सेनाओंके पीछे हटनेपर सहमति बनी थी। इसके कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आये। इसी वर्ष फरवरी महीनेमें भारत और चीनकी सेनाएं पैंगोंग झील और कैलाश रेंजसे पीछे हटी थीं और अन्य विवादित क्षेत्रोंको लेकर बातचीतसे विवाद सुलझानेपर सहमति जतायी गयी थी। इस मुद्देपर वार्ता तो हुई लेकिन परिणाम आशाके विपरीत रहा। विगत नौ अप्रैलको हुई कोर कमाण्डर स्तरकी ताजा बातचीतमें चीनने लद्दाखमें हाटस्प्रिंग और गोगरा इलाकेसे अपनी सेनाको पीछे हटानेसे इनकार कर दिया जो उसकी नीयतको परिभाषित करती है। इतना ही नहीं, उसने भारतको चेतावनी देते हुए कहा है कि चीनका पैंगोंग इलाकेमें पीछे हटना भारतके लिए काफी है। चीनने जिन विवादित पेट्रोलिंग प्वाइंटसे हटनेपर सहमति जतायी थी उससे न सिर्फ मुकर गया है, बल्कि वहां प्लाटून स्तरकी सैन्य तैनाती की गयी है जो पहले कम्पनी स्तरकी थी। चीनकी इस कुटिल चालसे भारतको सतर्क रहना होगा और उसकी गतिविधियोंपर पैनी नजर रखनी होगी। भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणेका बयान काफी महत्व रखता है जिसमें कहा गया है कि सीमा विवाद वार्तासे और आपसी सहमतिसे हल होना चाहिए, न कि एकतरफा पहलसे। निश्चित रूपसे विवादका समाधान एकमात्र वार्ता ही है। वार्तापर सहमति अच्छी बात है लेकिन इसपर ईमानदारीसे अमल होनी चाहिए। विवादके निस्तारणपर बनी सहमतिकी सार्थकता तभी है जब उसका सुखद परिणाम जमीनपर दिखायी दे।