कोरोना महामारीके खिलाफ जंगमें सबसे बड़ा संकट संसाधनोंका है। आक्सीजनकी आपूर्ति बढ़ानेकी दिशामें अवश्य सुधार हुआ है लेकिन पूरे देशमें टीकेका गम्भीर संकट बना हुआ है। इससे टीकाकरण अभियान प्रभावित हुआ है और टीकेके लिए पात्र लोगोंमें भी असन्तोष है। अनेक टीकाकरण केन्द्रोंपर कार्य ठप हो गया है। इस मुद्देपर केन्द्र और राज्योंके बीच तकरारकी भी स्थिति बनी हुई है। १८ वर्षसे ऊपरके लोगोंका टीकाकरण काफी प्रभावित हुआ है। इस विषम स्थितिसे उबरनेके लिए केन्द्र सरकारकी ओरसे अनेक प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन इतना जल्दी यह संकट दूर होनेवाला नहीं है। केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन और केन्द्रीय रसायन और उर्वरकमंत्री मनसुख मंडावियाने बड़ा भरोसा दिया है कि जूनसे अधिक टीके मिलने लगेंगे। स्वास्थ्यमंत्रीका यह भी कहना है कि मईमें कोरोना टीकेका कुल उत्पादन आठ करोड़ डोजकी तुलनामें जूनमें सिर्फ एक करोड़ बढ़ पायगा। जुलाईमें इसमें तेजी आयगी। सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेकने अगस्तसे १७.८ करोड़ डोज टीकेके उत्पादनका भरोसा दिया है। उस समयतक रूसके स्पुतनिक-वी टीकेका भी भारतमें बड़े पैमानेपर उत्पादन प्रारम्भ हो जायगा। दूसरी ओर राज्यमंत्री मनसुख मंडावियाका कहना है कि टीकेका उत्पादन बढ़ानेके लिए केन्द्र सरकार स्वदेशी टीके कोवैक्सीनके निर्माणके लिए अन्य कम्पनियोंको अनुमति देनेके लिए तैयार हैं। अनेक टीका निर्माताओंसे बातचीत की जा रही है। टीका निर्माता कम्पनीके पास यदि आवश्यक ढांचा और संसाधन है तो उसे तत्काल अनुमति दे दी जायगी। कोवैक्सीन स्वदेशी टीका है इसलिए इसमें कोई दूसरा अवरोध नहीं आयगा। डेढ़ महीनेके बाद टीकेकी उपलब्धता काफी बढ़ जायगी। भारतकी विशाल आबादीको देखते हुए टीकेका पर्याप्त उत्पादन सुनिश्चित करनेके लिए काफी संख्यामें ऐसी कम्पनियोंको अनुमति दी जानी चाहिए जिनके पास आवश्यक संसाधन है। सरकार स्वयं एक कार्यबलका गठन करे। विभिन्न क्षेत्रकी अग्रणी कम्पनियोंको टीका उत्पादनकी अनुमति दे। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कोरोना महामारीकी तीसरी लहरका भी खतरा मंडरा रहा है। जिन लोगोंको दो डोज लग चुके हैं उन्हें तीसरी डोज लगानेकी आवश्यकता पड़ सकती है। साथ ही बच्चोंकी सुरक्षाके लिए भी टीकाकरण आवश्यक है। जबतक टीकेकी पर्याप्त उपलब्धता नहीं होगी तबतक पूरे देशमें टीकाकरण अभियानका उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता है। इसलिए टीका उत्पादन बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है।
पेट्रोल-डीजलके बढ़ते मूल्य
एक ओर पूरा देश जहां कोरोना महामारीके संकटसे जूझ रहा है तो वहीं दूसरी ओर पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंमें लगातार वृद्धि लोगोंकी दिक्कतें और बढ़ा रही है। भले ही खुदरा महंगीकी दर कुछ कम हुई है, लेकिन पेट्रोलियम पदार्थोंकी मूल्यवृद्धि महंगी बढ़ानेवाली है, क्योंकि पेट्रोल-डीजलके दाम बढऩेका असर सभी क्षेत्रोंपर पड़ता है। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी जो देशकी अर्थव्यवस्थाके लिए ठीक नहीं है। पांच राज्योंके चुनावके दौरान तो पेट्रोल-डीजलके दाम यथावत रहे लेकिन चुनाव खत्म होते ही उनके दामोंके बढऩेका सिलसिला एक बार पुन: शुरू हो गया है। पिछले दस दिनोंमें पेट्रोल और डीजलके दाम सात बार बढ़ाये गये जिससे इनकी कीमत रेकार्ड स्तरपर पहुंच गयी हैं। महाराष्टï्र सहित अनेक राज्योंमें पेट्रोलकी कीमत सौ रुपयेके पार चली गयी है। हालांकि गुरुवारको तेल कम्पनियोंने पेट्रोल-डीजलके मूल्यमें कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन इनके दाम कम होने या राहत मिलनेकी उम्मीद नहीं के बराबर है, क्योंकि अमेरिका, चीन जैसी बड़ी आर्थिक शक्तियोंकी स्थिति सुधरने और उनकी अर्थव्यवस्थामें तेजी आनेसे कच्चे तेलकी मांगमें लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे कच्चे तेलका दाम और ऊपर जानेका अनुमान है जो भारतकी और मुसीबत बढ़ानेवाला है। पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंमें सबसे बड़ा हिस्सा टैक्सका होता है इसलिए पेट्रोल और डीजलकी बढ़ती कीमतोंसे राहत देनेका काम सिर्फ सरकार ही कर सकती है। इसके लिए केन्द्रको जहां उत्पाद करमें कुछ कमी करनी होगी, वहीं राज्योंको वैट कम कर लोगोंको राहत पहुंचानेका काम करना होगा। कोरोनाकी मारसे मध्यम वर्गके करोड़ों लोग गरीबी रेखाके नीचे आ गये हैं। ऐसेमें पेट्रोल-डीजलके मूल्यमें वृद्धि उनकी मुसीबत बढ़ानेवाली है। राष्टï्रहितके साथ जनताका हित भी सर्वोपरि है इसलिए सरकारको पेट्रोल और डीजलको जीएसटीके दायरेमें लानेपर गम्भीरतासे विचार करना होगा।