Latest News उत्तराखण्ड

तीरथ सिंह रावत: उत्तराखंड की सियासी उठापटक से उठे अहम सवालों के जवाब


  • उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनते ही लगातार अपने विवादित बयानों से मीडिया में सुर्खियॉं बटोरने वाले तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार को महज़ अपने 114 दिनों के कार्यकाल के बाद पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. ऐसा कर उन्होंने उत्तराखंड बनने के तक़रीबन 21 सालों में 11वॉं नया मुख्यमंत्री चुने जाने का रास्ता खोला है.

9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आए उत्तराखंड में अब तक 10 मुख्यमंत्री बदल चुके हैं. इनमें से केवल नारायण दत्त तिवारी ही अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को उत्तराखंड में शासन के लिए तक़रीबन 10-10 सालों का वक़्त मिला है जिसमें कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के 3 चेहरे दिए तो भाजपा अब तक 6 मुख्यमंत्री के चेहरे उतार चुकी है और अब सातवें की तैयारी है.

बीजेपी ने अपने पॉंच-पॉंच साल के दो शासनकालों में तीन-तीन मुख्यमंत्रियों को बदला है.

तीरथ सिंह रावत नेक्यों दिया इस्तीफ़ा?

तीरथ सिंह रावत के इस इस्तीफ़े का कारण जनप्रतिनिधि क़ानून 1951 की धारा 151 ए के तहत बन गई एक संवैधानिक संकट की स्थित को बताया गया है, लेकिन जानकारों की राय है कि असल में बीजेपी ने यह क़दम संवैधानिक नहीं बल्कि एक राजनीतिक संकट के चलते उठाया है.

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत कहते हैं, ”बीजेपी एक अनुभवी पार्टी है, और ऐसा नहीं है कि जिस संवैधानिक स्थिति का हवाला देते हुए अब कहा जा रहा है कि उपचुनाव संभव नहीं, इसके बारे में पहले उसे जानकारी नहीं थी.

पहले भी ओडिशा, नागालैंड और कुछ राज्यों में ऐसी स्थिति में उपचुनाव हुए हैं और यहॉं भी यह संभव हो सकता था.

बीजेपी ने क्यों किया ये फ़ैसला?

असल में बीजेपी के सामने उपचुनाव में मुख्यमंत्री की हार का डर एक बड़ा राजनीतिक संकट था. इसका असर 2022 के चुनावों पर भी सीधा पड़ सकता था.”

पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के इस्तीफ़े के बाद 10 मार्च को पौड़ी गढ़वाल के सांसद तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. संविधान के मुताबिक़ पद पर बने रहने के लिए उन्हें 6 महीने के भीतर यानी 10 सितंबर से पहले राज्य विधानसभा का सदस्य बनना था.

उत्तराखंड विधानसभा की दो सीटें वर्तमान में खाली हैं, गंगोत्री और हल्द्वानी. गंगोत्री की सीट बीजेपी विधायक गोपाल सिंह रावत की मृत्यु हो जाने और हल्द्वानी की सीट नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की मृत्यु हो जाने के कारण रिक्त है. इन सीटों से मुख्यमंत्री के उपचुनावों की दावेदारी संभव थी.

जय सिंह कहते हैं, ”हल्द्वानी सीट मुख्यमंत्री के लिए इस लिए चुनौतीपूर्ण होती क्योंकि एक तो वह इंदिरा हृदयेश की मज़बूत पकड़ वाली सीट थी और उनके विकल्प के तौर पर जो भी कॉंग्रेस का प्रत्याशी होता सिम्पैथी वोटों के चलते उसे हरा पाना बीजेपी के लिए संभव नहीं होता. वहीं बीजेपी सरकार की ओर से देवस्थानम बोर्ड बना देने के चलते गंगोत्री और यमुनोत्री के इलाक़ों में लोगों के बीच काफ़ी आक्रोश है. साथ ही कोरोना महामारी के दौरान सरकार की नाकामी से भी लोग नाराज़ हैं.”

जय सिंह कहते हैं कि 2022 के चुनाव से ठीक पहले अगर मुख्यमंत्री ख़ुद चुनाव हार जाते तो यह अगले चुनावों के लिए भाजपा का रास्ता बेहद मुश्किल हो जाता.

पद संभालते ही तीरथ रावत ने महिलाओं के फटी जीन्स पहनने को लेकर एक विवादित बयान दिया था जिसके बाद राष्ट्रीय मीडिया में उनकी कड़ी आलोचना हुई थी. लेकिन उनके विवादित बयानों का सिलसिला यहीं नहीं थमा. ‘अमेरिका ने भारत को 200 साल तक ग़ुलाम बनाया’ और ‘परिवार नियोजन’ पर उनके विवादित बयान जारी रहे.

वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी कहते हैं कि इन राजनीतिक हालातों के पीछे सत्ता को लेकर बीजेपी की अंदरूनी खींचतान है.

वे कहते हैं, ”त्रिवेंद्र रावत सरकार के ख़िलाफ़ लोगों के बीच पनपे असंतोष को शांत करने के लिए मार्च में जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें इस्तीफ़ा दिलवाकर नए मुख्यमंत्री का चुनाव किया तो बीजेपी के चुने गए 57 विधायकों में से किसी को ना चुन कर सांसद तीरथ रावत को मुख्यमंत्री के तौर पर लाया गया.”

”उसके पीछे विधायकों के आपसी कलह को सतह पर ना आने देने की रणनीति थी. लेकिन तीरथ सिंह रावत के पद संभालते ही दिए विवादित बयानों ने बीजेपी नेतृत्व को यह समझा दिया कि उनसे बड़ी चूक हो गई है. इसके बाद बीजेपी का यह क़दम एक डैमेज कंट्रोल की क़वायद है.”

क्यों हैं एनडी तिवारी पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र सीएम?

उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी ही मुख्यमंत्री के बतौर अपना 5 साल पूरा कार्यकाल निभा पाए थे.

चारु तिवारी इसकी वजह उनके पॉलिटिकल क़द और लीडरशिप की क्षमता को बताते हैं, ”नारायण दत्त तिवारी की राजनीतिक हैसियत अक्रॉस दि पार्टीज़ उत्तराखंड के सबसे बड़े लीडर के तौर पर रही थी. वह उत्तराखंड के एक ऐसे राष्ट्रीय नेता थे जिसका क़द कांग्रेस अध्यक्ष के बराबर ही था. उत्तराखंड में कांग्रेस के भीतर तो वह सर्वमान्य नेता थे ही साथ ही विपक्ष में भी उनकी वही स्वीकार्यता थी. उत्तर प्रदेश की जटिल राजनीति में इतना बड़ा क़द बना सकने वाले अनुभवी नेता के लिए एक नए राज्य में 5 साल का कार्यकाल पूरा करना कोई चुनौती भरा काम नहीं था.”

एन डी तिवारी के बाद सबसे लंबा 3 साल 357 दिनों का शासन काल पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का रहा, जिसकी वजह चारु तिवारी संघ से उनकी नज़दीकी को मानते हैं.

उत्तराखंड में क्यों बदलते रहते हैं मुख्यमंत्री?

चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने की रणनीति उत्तराखंड की सत्ता में क़ाबिज़ रहीं दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां अपनाती रही हैं.

जय सिंह रावत इसकी एक वजह पार्टिंयों के भीतरी सत्ता संघर्ष को भी मानते हैं, ”उत्तराखंड की राजनीति की यह विडंबना है कि किसी भी पार्टी के नेता आपस में ही एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं करते. आप बीते 20 सालों का इतिहास देखें तो बीजेपी के नेताओं को बीजेपी के ही नेताओं से ख़तरा है और कांग्रेस के नेताओं को कांग्रेस के नेताओं से. ऐसे में दोनों ही पार्टियों के नेतृत्व को मुख्यमंत्री बदल-बदल कर इन्हें संतुष्ट करना पड़ता है ताकि इनकी आपसी कलह सतह पर ना आ जाए.”

कांग्रेस ने भी उत्तराखंड में 2013 की आपदा के बाद बने हालातों से पनपे असंतोष से ध्यान हटाने के लिए ऐसा ही क़दम उठाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को हटा हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया था. जिसके बाद से पनपी नाराज़गी के चलते आखिरकार बहुगुणा ने कॉंग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का साथ थाम लिया था. नए मुख्यमंत्री की ही नहीं बल्कि नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद से कांग्रेस की अंदरूनी कलह के चलते उत्तराखंड नेता प्रतिपक्ष की भी राह देख रहा है.