सम्पादकीय

तीसरी लहरकी आशंका


कोरोनाकी दूसरी लहरने फिर तेज गति पकड़ ली है। गुरुवारको सरकारने जो आंकड़ा जारी किया है, उसने अबतकके सभी रिकार्ड तोड़ दिया है। पिछले २४ घण्टेके दौरान चार लाख १२ हजारसे अधिक संक्रमणके नये मामले आये और इसी अवधिमें ३९८० लोगोंकी मौतें भी हुईं। यह अत्यन्त ही भयावह स्थिति है। मृतकोंकी संख्या सर्वाधिक है। वहीं नये संक्रमितोंका आंकड़ा भी चिन्ताजनक है। सरकारने यह भी कहा है कि कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार उन राज्योंमें शामिल हैं जहां दैनिक मामलोंमें तेजीकी प्रवृत्ति बनी हुई है। २४ राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशोंमें संक्रमणकी दर १५ प्रतिशतसे अधिक है, जो हालातकी गम्भीरताको व्यक्त करती हैं। दूसरी लहरकी कहरके बीच अब तीसरी लहरकी भी आशंका व्यक्त की गयी है। तीसरी लहरको ‘अपरिहार्यÓ बताया गया है। देशके प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवनका कहना है कि तीसरी लहरका आना तो तय है लेकिन यह स्पष्टï नहीं है कि कब आयगी और वह किस स्तरकी होगी। हमें इसके लिए पूरी तरहसे तैयार रहना होगा। तीसरी लहरमें वायरससे मुकाबला करनेके लिए मौजूदा टीकेको भी अपडेट करते रहनेकी आवश्यकता है। इसके लिए विश्वके वैज्ञानिकोंको एकजुट होकर काम करनेकी जरूरत है। राघवनने यह भी स्वीकार किया है कि कोरोनाकी दूसरी लहरका हमें अन्दाजा नहीं था। इतनी भीषण और लम्बी कहरके बारेमें पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था। एम्स दिल्लीके निदेशक रणदीप गुलेरियाने भी तीसरी लहरकी आशंकापर सहमति जतायी है। इसके लिए अस्पतालोंके बुनियादी ढांचोंको मजबूत करना होगा और टीकाकरणमें तेजी लानी होगी। तीसरी लहर बच्चोंके लिए प्राणघातक हो सकती है। पहली लहरमें बुजुर्ग अधिक संक्रमित हुए और दूसरी लहरमें युवा आबादी गिरफ्तमें आ गयी। निश्चित रूपसे तीसरी लहरका सामना करनेके लिए हमें अभीसे तैयारी शुरू करनी होगी। सर्वोच्च न्यायालयने तीसरी लहरपर गम्भीर चिन्ता जतायी है और कहा है कि यदि बच्चे संक्रमित होंगे तो माता-पिता क्या करेंगे। इसके लिए केन्द्र सरकार अभीसे योजना और रणनीति बनाये। यह सत्य है कि दूसरी लहरके दौरान चिकित्सा सेवाका बुनियादी ढांचा ही चरमरा गया जिससे लोगोंको काफी परेशानी उठानी पड़ी। तीसरी लहरमें इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। सभी आवश्यक संसाधनोंकी पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। जनताको डरनेकी जरूरत नहीं है, बल्कि मजबूत मनोबलके साथ हमें उसका मुकाबला करना होगा।

आरक्षणपर उचित फैसला

सर्वोच्च न्यायालयने महाराष्टï्रमें मराठोंके लिए १६ प्रतिशत आरक्षण देनेके राज्य सरकारके निर्णयको निरस्त कर आरक्षणकी निर्धारित सीमाका अतिक्रमण न करनेका राज्योंको बड़ा सन्देश दिया है। न्यायालयने स्पष्टï किया है कि शिक्षा और नौकरियोंमें ५० प्रतिशतकी सीमा पार करके किसीको आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमन्त गुप्त और न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भटकी पांच सदस्यीय पीठने ५० प्रतिशत आरक्षणकी सीमा लांघनेको समानताके मौलिक अधिकारके खिलाफ बताते हुए कहा है कि पिछड़ोंके बारेमें सिर्फ एक ही केन्द्रीय सूची होगी जो राष्टï्रपति अधिसूचित करेंगे। यानी राज्य और केन्द्रकी पिछड़ा वर्गकी अलग-अलग सूची नहीं होगी। कोर्टने आरक्षणकी राजनीतिको प्रभावित करनेवाला दूरगामी फैसला सुनाया है लेकिन इसके बावजूद आरक्षणको लेकर जारी बहस और कानूनी लड़ाई फिलहाल थमनेवाली नहीं है, क्योंकि ज्यादातर राज्योंने आरक्षणकी तय सीमाका अतिक्रमण किया है। आरक्षणका उद्देश्य पिछड़े और दबे लोगोंके उत्थानका था, लेकिन वोट बैंककी राजनीतिने उसके उद्देश्य ही भटका दिया है। राजनीतिक स्वार्थपूर्तिके लिए आरक्षणका इस्तेमाल देशके लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, जबकि शीर्ष न्यायालय आरक्षणमें क्रीमीलेयर लागू करनेकी व्यवस्था दे चुका है। इसके बावजूद इसपर अभीतक राज्योंने कोई पहल नहीं की है जिससे उसी वर्गके अनेक लोग आज भी आरक्षणके लाभसे वंचित हैं, जबकि वर्ग विशेषको अपनी ओर करनेके लिए आरक्षणका प्रलोभन दिया जाता है। ऐसेमें सर्वोच्च न्यायालयका यह मानना भी उचित है कि मराठा समुदायके लोगोंको शैक्षणिक और सामाजिक रूपसे पिछड़ा करार नहीं दिया जा सकता है। ऐसेमें उन्हें आरक्षणके दायरेमें लाना सही नहीं होगा। सामाजिक न्यायके लिए जरूरी है कि कोई पात्र वंचित न रहे और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलनेवाला आरक्षणपर गम्भीरतासे विचार किया जाय। ऐसेमें सर्वोच्च न्यायालयका फैसला राज्योंके लिए अनुकरणीय है।