सम्पादकीय

आंतरिक संरचना


ओशो

अपनी आंखें बंद कर लो और अपनी रीढ़को आंखोंके सामने लाओ। रीढ़को एकदम सीधा रखो। इसका निरीक्षण करो। इसके बीचोंबीच एक तंतुको देखो, कमलके तंतु जैसा नाजुक, तुम्हारी रीढ़के खंभेमेंसे गुजर रहा है। रीढ़में बीचोंबीच एक रुपहला धागा  है, एक अत्यंत नाजुक मज्जा तंतु। यह शारीरिक तंतु नहीं है। इसे खोजनेके लिए आपरेशन करोगे तो नहीं पाओगे। लेकिन गहरे ध्यानमें इसे देखा जाता है। इस धागेके जरिये शरीरसे जुड़े हो और उसी धागेसे अपनी आत्मासे भी जुड़े हो। पहले रीढ़की कल्पना करो। पहले अजीब लगेगा। प्रयास करते रहो तो वह सिर्फ  तुम्हारी कल्पना नहीं रहेगी वरन अपने रीढ़के खंभेको देख पाओगे। आदमी अपने शरीरकी संरचनाको भीतरसे देख सकता है। हमने कभी कोशिश नहीं की, क्योंकि यह जुगुप्सा पैदा कर सकता है। जब अपनी हड्डियां, रक्त, शिराएं देखोगे तो तुम डर जाओगे। असलमें हमने अपने मनको भीतर देखनेसे रोक रखा है। हम अपने शरीरको बाहरसे देखते हैं। तुम अपने शरीरको बाहरसे देखते हो मानो तुम कोई और हो जो तुम्हारे शरीरको देख रहा है। तुमने अपने शरीरको भीतरसे नहीं देखा है। योगपर जो भारतीय किताबें हैं वे शरीरके बारेमें बहुत-सी बातें कहती हैं, जिन्हें आधुनिक वैज्ञानिक खोजने एकदम सही पाया है और विज्ञान इसका स्पष्टीकरण नहीं दे सकता। वे लोग कैसे जान पाये। शल्यक्रिया और और मानवीय शरीरकी आंतरिक संरचनाके बारेमें खोजें तो हालमें पैदा हुई हैं। वह आंतरिक नसों, केंद्रों और संस्थानोंको कैसे जान पाये। वह आधुनिक खोजोंके बारेमें भी जानते थे, उन्होंने उनके बारेमें चर्चा की है, उनपर काम किया है। योग हमेशा शरीरके संबंधमें मूलभूत बातोंको जानता है। लेकिन वह शरीरका विच्छेदन नहीं करते थे, फिर वे कैसे जान पाये। दरअसल शरीरको देखनेका एक और तरीका है भीतरसे। यदि ध्यान करो तो अचानक भीतरकी पर्त दिखनी शुरू हो जायगी। अपनी आंखें बंद करो और शरीरको महसूस करो। शिथिल हो जाओ। रीढ़के खंभेपर चित्तको एकाग्र करो। यह सूत्र बहुत सहजतासे कहता है, ऐसा करके रूपांतरित हो जाओगे। ध्यानसे पहले शरीरकी सभी हलचलोंपर ध्यान दें और उसका निरीक्षण करें। ध्यानसे आपकी चेतना केंद्रित होने लगती है और आप बहुत कुछ अनुभव करते हैं। बाह्य चेतना खोने लगती है और आप मनकी गहराइयोंमें लीन हो जाते हैं।