नई दिल्ली : इंडियाबुल्स हाउसिंग एंड फाइनेंस लिमिटेड (आइएचएफएल) और इसके कर्मचारियों के खिलाफ चल रही धन शोधन निवारण अधिनियम(पीएमएलए)- 2002 की कार्यवाही को रद करते हुए कहा कि आरोपित के खिलाफ प्राथमिकी रद करने के बाद पीएमएलए की कार्यवाही नहीं हो सकती है।
विजय मदनलाल चौधरी बनाम केंद्र सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति अनीश दयाल और न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की पीठ ने आइएचएफएल के कर्मचारियों के विरुद्ध आगे कोई भी कठोर कार्यवाही न करने का निर्देश दिया। साथ ही उनके खिलाफ जारी लुक आउट सर्कुलर को भी रद कर दिया।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का हवाला दिया। जिसमें शीर्ष अदालत ने माना था कि पीएमएलए के तहत अधिकारी किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मनी लांड्रिंग के लिए इस धारणा पर कार्रवाई का सहारा नहीं ले सकते हैं कि उनके द्वारा बरामद की गई संपत्ति अपराध की आय होनी चाहिए।
दूसरे शब्दों में पीएमएलए के तहत कोई कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि उसके लिए एक अपराध का एक आधार न हो। जो कानूनी रूप से एक मौजूदा (निरस्त नहीं) आपराधिक शिकायत/पूछताछ के रूप में मौजूद होना चाहिए।
अदालत ने कार्यवाही को यह कहते हुए रद कर दिया कि बाम्बे हाई कोर्ट ने उक्त अपराध को रद कर दिया था जिसके आधार पर प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज किया गया था और पीएमएलए के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था। पीठ ने कहा कि बाम्बे हाई कोर्ट का आदेश अंतिम था।
याचिकाकर्ताओं ने बाम्बे हाई कोर्ट द्वारा दर्ज विधेय अपराध को रद करने के बाद भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा ईसीआइआर के संबंध में कार्यवाही जारी रखने को जारी रखने को चुनौती दी थी।याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि ईसीआइआर के तहत ईडी द्वारा विभिन्न याचिकाकर्ताओं को जारी किए गए समन को रद किया जा सकता है।
वहीं, ईडी ने तर्क दिया कि प्राथमिकी अभी भी मौजूद है क्योंकि इसे सिर्फ बाम्बे हाई कोर्ट ने रद किया है। यह पूर्ण रूप से रद नहीं हुई है।पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आइएचएफएल व इसके कर्मचारियों के खिलाफ जारी पीएमएलए की कार्यवाही को रद कर दिया।