Latest News नयी दिल्ली राष्ट्रीय

देश में अपराध मुक्त राजनीति की कवायद, लोकतंत्र की गरिमा के लिए संसद का दागमुक्त होना जरूरी


  1. पीयूष द्विवेदी। बीते दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बिकरू कांड के आरोपित पुलिसवालों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए राजनीति के अपराधीकरण के संबंध में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। न्यायालय ने कहा कि देश में राजनीतिक दलों में यह आम चलन है कि वे अपराधियों का स्वागत करते हैं और वे उस पार्टी के लिए संगठित अपराध करने को तैयार रहते हैं। अपराध करने पर राजनीतिक दल उन्हें समर्थन देकर बचाते हैं। न्यायालय ने कहा कि सभी दल मिलकर यह तय करें कि अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण और चुनाव में टिकट नहीं देंगे।

वैसे सभी राजनीतिक दल स्वच्छ राजनीति की बात करते नजर आते हैं, लेकिन जब टिकट देने की बात आती है, तो उनकी कथनी-करनी में समानता नहीं दिखती। शुचितारहित राजनीति की यह स्थिति जितनी चिंतित नहीं करती, उससे अधिक चिंता इसके प्रति देश की सरकारों की उदासीनता को देखकर होती है।

भारतीय राजनीति को दागीमुक्त करने के लिए कोई ठोस पहल करने की इच्छाशक्ति किसी सरकार ने अब तक नहीं दिखाई है। अनेक बड़े और ऐतिहासिक फैसले लेने वाली भाजपा सरकार भी दागीमुक्त राजनीति की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा सकी है।

मौजूदा वक्त में गंभीर मामलों में आरोपित दागी जनप्रतिनिधियों के दोषी सिद्ध होने पर सदस्यता जाने तथा अगले छह वर्षो तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य सिद्ध होने का प्रविधान है। लेकिन दागियों के संबंध में यह दंडात्मक व्यवस्था आसानी से लागू हो गई हो, ऐसा भी नहीं है। वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले के तहत दागी सांसदों के दोषी सिद्ध होने पर सदस्यता खो देने की व्यवस्था का एलान किया था, जिसको पलटने के लिए तत्कालीन संप्रग सरकार अध्यादेश ले आई। मगर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस अध्यादेश को पुनíवचार के लिए जब सरकार को वापस कर दिया और जनता के बीच से भी विरोध की आवाजें उठने लगीं तो संप्रग सरकार को अपनी भूल का अहसास हुआ। फिर राहुल गांधी द्वारा सरेआम इस अध्यादेश को ‘बकवास’ बताने का नाटक हुआ और सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया तथा सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू हो गया। मगर इस पूरे प्रकरण ने दागियों को लेकर तत्कालीन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के लगाव को जगजाहिर कर दिया था।