पटना

दो वर्ष बाद चालू हुआ नालंदा डेयरी का मिल्क पाउडर प्लांट


      • प्रतिदिन 75 हजार लीटर दूध का बनाया जा रहा पाउडर जो मांग बढ़ने पर आपूर्ति में होगा मददगार
      • कोविड के साथ ही वर्ष 2020 की शुरुआत से ही मिल्क पाउडर प्लांट दूध की कम आपूर्ति के कारण हुआ था बंद

बिहारशरीफ। दो वर्ष बाद एक बार फिर कंफेड में सरप्लस दूध आना शुरू हुआ है। इसके साथ ही नालंदा डेयरी का बंद पड़ा मिल्क पाउडर प्लांट चल पड़ा है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो चालू वर्ष में नालंदा डेयरी सहित बिहार कंफेड को दूसरे राज्यों से वैसे समय में जब दूध का उत्पादन कम होगा तो दूध नहीं मंगाना होगा। पाउडर से दूध बनाकर मांग के अनुरूप बाजार में आपूर्ति की जा सकेगी।

कोविड के साथ ही पूरे राज्य में दूध का उत्पादन कमा था। वजह चाहे जो भी रहा हो लेकिन कंफेड में दूध आना कम हो गया था। ऐसी स्थिति में बिहार के कई डेयरी को बाजार के मांग के अनुरूप दूध मुहैया कराने के लिए गुजरात सहित कई प्रदेशों से दूध मंगाना पड़ा था। नालंदा डेयरी में पूर्व भारत का सबसे बड़ा मिल्क पाउडर प्लांट लगा है, लेकिन दूध की कमी के कारण लगभग दो वर्षों से यह प्लांट बंद पड़ा था। डेयरी द्वारा सिर्फ रखरखाव के लिए इसे चालू किया जा रहा था। वजह यह थी कि सरप्लस दूध नहीं हो पा रहा था।

कंफेड द्वारा नालंदा डेयरी में मिल्क पाउडर प्लांट लगाने का उद्देश्य बस इतना था कि जब सीजन में अधिक दूध आये तो बिहार के सभी डेयरी अतिरिक्त दूध को इस प्लांट में भेजेगा और यहां उसका पाउडर बनाकर संबंधित डेयरी को वापस करेगा ताकि पीक सीजन में जब दूध की मांग बढ़े तो अतिरिक्त दूध की आपूर्ति मिल्क पाउडर से हो सके।

कोविड शुरू होने के साथ ही लगभग मार्च 2020 से नालंदा डेयरी स्थित मिल्क प्लांट लगभग बंद था। यहां सिर्फ नालंदा डेयरी सिर्फ व्हाइटनर पाउडर बना रही थी, जिसकी आपूर्ति आंगनबाड़ी केंद्रों में करनी थी, लेकिन सरप्लस दूध के अभाव में मिल्क पाउडर नहीं बन रहा था, जिससे नालंदा डेयरी का आय भी घटना था।

नालंदा डेयरी के सीईओ प्रमोद कुमार सिन्हा ने इस संदर्भ में बताया कि इस महीने में सरप्लस दूध आना शुरू हो चुका है। नालंदा डेयरी के पास लगभग 15 हजार लीटर अतिरिक्त दूध आ रहा है, जबकि 60 हजार लीटर दूध भोजपुर डेयरी से मिल रहा है। इस प्रकार मिल्क पाउडर प्लांट के लिए प्रतिदिन 75 हजार लीटर अतिरिक्त दूध मिल रहा है, जिससे मिल्क पाउडर बनाने का काम चल रहा है। उन्होंने बताया कि जिस डेयरी से जितना दूध प्राप्त हुआ है उसका पाउडर बनाकर संबंधित डेयरी को लौटाना है और अपने अतिरिक्त दूध को पाउडर बनाकर रखा जायेगा ताकि पीक सीजन में जब दूध की आपूर्ति कम होगी और मांग अधिक रहेगा या फिर लगन आदि में इससे बाजार की मांग को पूरा की जा सकेगी।

बताते चले कि कोविड काल में दुग्ध उत्पादक कृषकों के समक्ष हरा चारा के साथ-साथ पशुओं के लिए पौष्टिक आहार की कमी हुई थी और इसी वजह से लगातार दूध का उत्पादन कम हुआ था। तब कंफेड ने किसानों के दूध की कीमत 2 से 3 रुपये प्रति लीटर तक बढ़ाई थी। निश्चित तौर पर पशुपालक इस अतिरिक्त आय से मवेशियों के खाना-दाना पर अतिरिक्त ध्यान दिये होंगे और अब कंफेड में दूध आने की मात्रा बढ़ रही है।