Latest News नयी दिल्ली

नांबी नारायणन: ISRO के वो वैज्ञानिक जिन पर लगे जासूसी के आरोप.लेकिन फिर बने देशभक्ति की मिसाल


हाल ही में आप सभी लोगों ने एक फिल्‍म, रॉकेटरी: द नांबी इफेक्‍ट का ट्रेलर देखा है. ये फिल्‍म इंडियन स्‍पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) के वैज्ञानिक नांबी नारायणन की असल जिंदगी पर आधारित है. नांबी नारायणन इसरो के वो वैज्ञानिक हैं जिन पर जासूसी का झूठा आरोप लगा था. कई वर्षों तक उन्‍होंने अपने लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ी थी. नांबी पर आरोप लगाया गया था कि उन्‍होंने कई करोड़ रुपयों की लालच में दुश्‍मन देश पाकिस्‍तान को देश के राज बेच डाले थे. नांबी पर जासूसी के तमाम आरोप झूठे और बेबुनियाद साबित हुए थे. ये केस अभी तक सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.

जो तकनीक बनी ही नहीं उसकी जासूसी

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि नारायणन को जबरन गिरफ्तार किया गया, उनका शोषण किया गया और उन्‍हें मानसिक क्रूर‍ता का शिकार बनाया गया है. नांबी का नाम जब-जब आता है साल 1994 का इसरो जासूसी कांड मे भी जेहन में ताजा हो जाता है. पूरे केस में जो बात सबसे ज्‍यादा हैरान करती थी वो ये थी जिस तकनीक की वजह से नांबी पर झूठे आरोप लगे, उस तकनीक को भारत ने पहली बार साल 2017 में टेस्‍ट किया था. नांबी नारायणन उस तकनीक को विकसित करने के लिए अहम कड़ी साबित हुए थे जिसकी मदद से विकास इंजन को तैयार किया गया था. इसी इंजन की मदद से भारत ने पहले पीएसएलवी को तैयार किया था.

1994 में हुई शुरुआत

इस पूरे जासूसी कांड की शुरुआत अक्‍टूबर 1994 से हुई थी. उस समय मालदीव की मरियम नाशिदा को तिरुवंतपुरम से गिरफ्तार किया गया था. मरियम पर आरोप थे कि उनके पास इसरो के रॉकेट इंजन के कुछ चित्र है जिसे वह पाकिस्‍तान को बेचने जा रही थी. इस पूरे केस में जब इसरो के क्रायोजेनिक इंजन प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक नांबी नारायणन को नवंबर में गिरफ्तार किया गया तो खलबली मच गई. नारायणन के साथ इसरो के डिप्‍टी डायरेक्‍टर डी शशिकुमारन को भी गिरफ्तार किया गया था. इन दोनों के अलावा रूस की स्‍पेस एजेंसी में भारतीय प्रतिनिधि के चंद्रशेखर, लेबर कॉन्‍ट्रैक्‍टर एसके शर्मा और नाशिदा की दोस्‍त फौसिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया था.

पहली बार में केस झूठा करार

जनवरी 1995 में इसरो वैज्ञानिकों और सभी बिजनेसमेन को जमानत मिल गई. लेकिन मालदीव की दोनों नागरिकों को जेल में ही रखा गया. साल 1996 में सीबीआई ने केरल की कोर्ट में रिपोर्ट फाइल करके इस जासूसी केस का झूठा करार दिया और फिर सभी आरोपी रिहा हो गए. लेकिन इसी वर्ष जून में केरल की सरकार ने फैसला किया कि वह केस की जांच दोबारा करेगी. इंटेलीजेंस ब्‍यूरो के तत्‍कालीन डायरेक्‍टर और बाकी अधिकारी जब-जब नारायणन से पूछताछ करते, वह हर बार इस बात से इनकार कर देते कि उन्‍होंने कोई जानकारी पाकिस्‍तान को उपलब्‍ध कराई है.

बार-बार इनकार करते रहे नारायणन

नारायणन जिस प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहे थे वह काफी अहम था. साल 1994 में भारत सरकार की ओर से क्राइयोजेनिक अपर स्‍टेज (सीयूएस) प्रोजेक्‍ट को लॉन्‍च किया था. इस प्रोजेक्‍ट का बजट 300 करोड़ था. नारायणन पर आरोप लगा कि वह नाशिदा से मिले थे और उसके जरिए उन्‍होंने रॉकेट के लिए काफी अहम इस तकनीक को पाकिस्‍तान को बेचा था. नारायणन बार-बार इस बात से इनकार करते रहे. उन्‍होंने पूछताछ करने वाले अधिकारियों को बताया भी कि जिस तकनीक को बेचने के आरोप वह उन पर लगा रहे हैं, वह तो अभी भारत में ही डेवलप नहीं हुई है.अगर पाकिस्‍तान या दूसरे देशों को य‍ह टेक्निक हासिल हो भी गई तो भी बिना भारत की मदद के इसे ऑपरेट नहीं किया जा सकेगा. लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी.

सीबीआई ने कहा-केस झूठा

नारायणन के मेमोयर के मुताबिक एक अधिकारी ने उन्‍हें यह भी बताया कि शशिकुमारन ने अपने गुनाह कुबूल कर लिए हैं. इसके अलावा अधिकारियों ने यह भी कहा कि अगर नांबी अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को स्‍वीकार नहीं करते हैं तो फिर फौसिया को वहां लेकर आएंगे और वह उन्‍हें चप्‍पल से मारेंगी. भारत ने साल 1990 में रूस की एजेंसी ग्‍लावकोसोम्‍स के साथ इंजन के लिए एक डील साइन की थी. इस इंजन का प्रयोग रॉकेट की तीसरी स्‍टेज में होना था. लेकिन अमेरिकी सरकार ने रूस पर प्रतिबंध लगा रखे थे और इस वजह से यह डील कैंसिल कर दी गई. इस पूरे एपिसोड में केरल पुलिस के अलावा आईबी का रोल भी काफी संदिग्‍ध रहा. आईबी और पुलिस ने इसे एक जासूसी केस बताया जबकि सीबीआई ने इस केस को झूठा करार दे दिया था.

दोबारा जांच की मांग ठुकराई

नांबी नारायणन पूरी तरह से बेकसूर थे तभी सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1995 में केस की दोबारा जांच की मांग को ठुकरा दिया था. मई 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्‍य सरकार से नारायणन और बाकी आरोपियों को एक लाख रुपए मुआवजा अदा करने को कहा. इसके बाद साल 1999 में नारायणन ने राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में अपील की और मानसिक कष्‍ट के लिए हर्जाना देने की मांग की. मार्च 2001 में एनएचआरसी ने उनकी अपील को स्‍वीकार किया और 10 लाख रुपए के हर्जाने का आदेश दिया. सरकार ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी और नारायणन को 10 लाख रुपए हर्जाना दिया गया.

टॉर्चर की वजह से हुए बेहोश

नारायणन ने 50 दिन जेल में बिताए थे और उन्‍होंने कहा था कि इंटेलीजेंस ब्‍यूरो के अधिकारियों के साथ मिलकर उनके खिलाफ झूठा केस बनाना चाहते हैं. अपने अधिकारियों के खिलाफ झूठा बयान देने से इनकार करने पर उन्‍हें इस हद तक टॉर्चर किया गया कि वो बेहोश हो गए. इस घटना के बाद उन्‍हें हॉस्पिटल में एडमिट कराना पड़ गया था. नांबी नारायणन को इस बात से बहुत तकलीफ थी कि उनके संगठन इसरो ने भी उनकी मदद नहीं की. तत्‍कालीन इसरो चेयरमैन कृष्‍णास्‍वामी कस्‍तूरीरंगन ने यह कहकर पल्‍ला झाड़ लिया कि ये एक कानूनी मसला है और वो इसमें हस्‍तक्षेप नहीं कर सकते हैं.

2019 में मिला पद्मभूषण

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नारायणन को 5,000,000 करीब 70,000 डॉलर मुआवजा अदा करने का फैसला किया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केरल की सरकार आठ हफ्तों के अंदर यह जुर्माना अदा करे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अलग केर की सरकार ने उन्‍हें 1.3 करोड़ रुपए बतौर मुआवजा देने का फैसला किया था. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अगुवाई में मामले की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई. इस कमेटी को जिम्‍मेदारी सौंपी गई कि वो उन पुलिस ऑफिसर्स की जांच करें जिन्‍होंने नांबी को गिरफ्तार किया था. साल 2019 में नांबी नारायणन को देश के तीसरे सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान पद्मभूषण से सम्‍मानित किया गया था.