पेट्रोल और डीजलकी कीमतोंमें अप्रत्याशित भारी वृद्धिसे चिन्तित केन्द्र सरकार भी इनके मूल्योंको कम करनेकी दिशामें सोचने लगी है जिससे कि आम जनताके आक्रोशको शांत किया जा सके। केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने कहा है कि केन्द्र और राज्य सरकारोंको एक साथ मिलकर कोई ऐसा तरीका ढूंढऩा होगा जिससे कि तेलकी कीमतोंको नीचे लाया जा सके। चेन्नईमें सिटिजन फोरममें बजटपर चर्चाके दौरान उन्होंने यहांतक कह दिया कि पेट्रोल-डीजलके दाम बढऩा अफसोसजनक मुद्दा है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण सुझाव यह भी दिया कि हम पेट्रोलियमको वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) के दायरेमें लानेकी बात सोच सकते हैं। सम्भव है इस समस्याका यही एक हल हो। जीएसटी कौंसिलको स्लैबको तर्कसंगत बनानेके बारेमें सोचना चाहिए। निर्मला सीतारमणका यह कहना भी पूरी तरहसे उचित और प्रासंगिक है कि इस अफसोसजनक मुद्देका जवाब कीमतें कम करनेके अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता है। उन्होंने ‘ओपेकÓ और उसके साथी देशोंकी ओरसे तेल उत्पादनमें की जा रही कटौतीका भारतमें खुदरा कीमतोंपर पडऩेवाले प्रभावोंकी भी बात कही और कर ढांचेकी बारीकियोंको भी समझाया। साथ ही यह भी कहा कि इसका सही जवाब पेट्रोल और डीजलको जीएसटीके दायरेमें लानेसे ही निकल सकता है। करोंमें एक समानता आनेसे इसकी कमियां दूर हो सकेंगी। इसके लिए केन्द्र और राज्य सरकारोंको बात करनी होगी। केन्द्र सरकार एक्साइज ड्यूटी वसूलती है, जो अब बढ़कर पेट्रोलपर ३२.९८ रुपये और डीजलपर ३१.८३ रुपये हो गया है। राज्य सरकारोंने भी वैट बढ़ा दिया है। केन्द्र और राज्य सरकारोंको एक साथ बैठकर वार्ता करनी होगी और कीमतोंको एक वाजिब स्तरपर लाना होगा। इस मुद्देपर जीएसटी कौंसिलमें चर्चा करनेकी जरूरत है। यदि जीएसटीपर सहमति बन जाती है तो पूरे देशमें पेट्रोल और डीजल एक दरपर ही उपलब्ध होंगे। निर्मला सीतारमणने जो बातें कही हैं वह पूरी तरह सही हैं। उन्हें आम उपभोक्ताओंकी पीड़ाके साथ ही सरकारके राजस्वकी भी चिन्ता है। यह होना भी चाहिए लेकिन जनताकी पीड़ा ज्यादा महत्वपूर्ण है। पेट्रोल और डीजलको जीएसटीके दायरेमें लानेकी बात लम्बे समयसे की जा रही है लेकिन अभीतक इसपर कोई सहमति नहीं बन पायी। इसके लिए कौन जिम्मदार है, इसका जवाब भी जनता जानना चाहती है। वैसे केन्द्र सरकार यदि इस दिशामें दृढ़ इच्छाशक्तिके साथ आगे बढ़े और राज्य सरकारें भी सहयोग करें तो इस मुद्देपर सहमति अवश्य बन सकती है। पेट्रोलियम पदार्थ सस्ते होनेसे जनताको राहत मिलेगी और इससे आर्थिक व्यापारिक गतिविधियां बढ़ेंगी और अर्थव्यवस्थाको भी गति मिलेगी।
प्याजकी मूल्यवृद्धि
पेट्रो उत्पादके मूल्योंमें भारी उछालसे आम आदमीके जीवनसे सम्बन्धित जरूरतकी चीजोंकी कीमतोंमें वृद्धि स्वाभाविक है। पेट्रोल-डीजलकी कीमतोंमें वृद्धिका असर माल भाड़ापर भी पड़ता है जिससे महंगीका बोझ उठानेके लिए उपभोक्ता विवश है। महंगीकी मार झेल रहे आम आदमीको प्याजकी कीमतोंमें आयी तेजीकी कडुुवाहट रुला रही है। पेट्रोल-डीजलकी बढ़ती कीमतोंकी राहपर अग्रसर प्याजकी कीमत देशके कई हिस्सोंमें एक बार फिर ६० रुपये किलोके पार पहुंच गयी है। लगन और त्योहारी सीजन न होनेके बावजूद पिछले दस दिनोंमें इसके दाममें बीस रुपये प्रतिकिलोकी तेजी आयी है जो उपभोक्ताओंकी परेशानी बढ़ानेवाली है। फुटकरमें छोटे दुकानोंपर इसे ६० से ७० रुपये प्रतिकिलोतक बेचा जा रहा है जो अत्यन्त चिन्ताका विषय है। प्याजकी कीमतोंमें बेतहाशा वृद्धिके कारणोंपर नजर डालें तो महाराष्टï्रमें बेमौसम बरसात और ओले पडऩेसे बड़ी मात्रामें प्याजकी फसलोंका बर्बाद होना है। आम तौरपर सितम्बरसे नवम्बर माहतक प्याजके दाममें वृद्धि होती है लेकिन इस वर्ष नयी फसलसे पहले ही दाममें तेजी चौंकानेवाली है। इसके लिए महाराष्टï्रसे आनेवाली नयी फसलमें देरी और डीजलके दाममें वृद्धिको कारण माना जा रहा है। इसके साथ ही केन्द्र सरकारकी ओरसे जनवरीमें प्याजके निर्यातसे रोक हटाना भी एक प्रमुख कारण है। रोक हटनेके बादसे प्याजका जमकर निर्यात हो रहा है जिससे मंडियोंमें प्याजकी आवक कम हुई है। मंडियोंमें जहां पहले २० से ३० ट्रक प्याज आती थी वहीं अब मात्र दस ट्रक आ रही है। इस कमीको पूरा करनेके लिए प्याजके निर्यातपर रोक लगानेकी जरूरत है। दिनोंदिन इसकी बढ़ती कीमतको देखते हुए जमाखोर भी बहती गंगामें हाथ धोनेसे पीछे नहीं हैं। जनहितमें जमाखोरी रोकनेके लिए सरकारको कड़े कदम उठाना समयकी मांग है। खाद्य वस्तुओंकी जमाखोरी संज्ञेय अपराध है। इसपर अंकुश लगाना राज्य सरकारोंकी जिम्मेदारी है ताकि उपभोक्ताओंको उचित दरपर जरूरतकी वस्तुएं उपलब्ध हो सकें।