सम्पादकीय

आत्मतत्वकी खोज


श्रीराम शर्मा

किसीकी यह धारणा सर्वथा मिथ्या है कि सुखका निवास किन्हीं पदार्थोंमें है। यदि ऐसा रहा होता तो वह सारे पदार्थ जिन्हें सुखदायक माना जाता है, सबको समान रूपसे सुखी और संतुष्ट रखते अथवा उन पदार्थोंके मिल जानेपर मनुष्य सहज ही सुख संपन्न हो जाता। संसारमें ऐसे लोगोंकी कमी नहीं है, जिन्हें सारे पदार्थ प्रचुर मात्रामें उपलब्ध हैं। किंतु ऐसे संपन्न व्यक्ति भी असंतोष, अशांति, अतृप्ति अथवा शोक संतापोंसे जलते देखे जाते हैं। उनके उपलब्ध पदार्थ उनका दु:ख मिटानेमें जरा भी सहायक नहीं हो पाते। वास्तविक बात यह है कि संसारके सारे पदार्थ जड़ होते हैं। जड़ तो जड़ ही है। उसमें अपनी कोई क्षमता नहीं होती। न तो जड़ पदार्थ किसीको स्वयं सुख दे सकते हैं और न दु:ख। क्योंकि उनमें न तो सुखद तत्व होते हैं और न दु:खद तत्व और न उनमें सक्रियता ही होती है, जिससे वह किसीको अपनी विशेषतासे प्रभावित कर सकें। यह मनुष्यका अपना आत्मतत्व ही होता है, जो उससे संबंध स्थापित करके उसे सुखद या दु:खद बना लेता है। आत्म तत्वकी उन्मुखता ही किसी पदार्थको किसीके लिए सुखद और किसीके लिए दु:खद बना देती है। जिस समय मनुष्यका आत्मतत्व सुखोन्मुख होकर पदार्थसे संबंध स्थापित करता है, वह सुखद बन जाता है और जब आत्मतत्व दु:खोन्मुख होकर संबंध स्थापित करता है, तब वही पदार्थ उसके लिए दु:खद बन जाता है। यह मनुष्यका अपना आत्मतत्व ही होता है, जो संबंधित होकर उनको दु:खदायी अथवा सुखदायी बना देता है। यह धारणा कि सुखकी उपलब्धि पदार्थों द्वारा होती है, सर्वथा मिथ्या और अज्ञानपूर्ण है। किंतु खेद है कि मनुष्य अज्ञानवश सुख-दु:खके इस रहस्यपर विश्वास नहीं करते और सत्यकी खोज संसारके जड़ पदार्थोंमें किया करते हैं। पदार्थोंको सुखका दाता मानकर उन्हें ही संचय करनेमें अपना बहुमूल्य जीवन बेकारमें गंवा देते हैं। केवल इतना ही नहीं कि वह सुख आत्मामें नहीं करते, बल्कि पदार्थोंके चक्करमें फंसकर उनका संचय करनेके लिए अकरणीय कार्यतक किया करते हैं। झूठ, फरेब, मक्कारी, भ्रष्टाचार, बेईमानी आदिके अपराध और पापतक करनेमें तत्पर रहते हैं। सुखका निवास पदार्थोंमें नहीं आत्मामें है। उसे खोजने और पानेके लिए पदार्थोंकी ओर नहीं, आत्माकी ओर उन्मुख होना चाहिए। मनुष्यको अपने अंतर्मनकी गहराइयोंमें झांक कर सुखका अनुभव करना चाहिए। संसारी वस्तुओंमें लिप्त होकर कोई भी सुखको नहीं पा सकता। अपनी आत्माको उस ईश्वरके साथ जोड़कर ही हम असली सुखको प्राप्त कर सकते हैं। दुनियाके विकारोंको त्याग कर, एक उस सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्माके साथ साक्षात्कार करके ही हम आत्मतत्वको पा सकते हैं।