सम्पादकीय

न्याय एवं सदाचारके प्रतीक श्रीराम


योगेश कुमार सोनी 

इस वर्ष फिरसे बढ़ते कोरोना संक्रमणके चलते श्रीराम जन्मोत्सवका आयोजन ज्यादा धूमधामसे मनाये जानेकी संभावना कम ही रहेगी लेकिन भीड़-भाड़से बचकर लोग अपने घरमें भी अपने आराध्य देवके जन्मोत्सवको श्रद्धापूर्वक मना सकते हैं। विभिन्न हिन्दू धर्मग्रंथोंमें कहा गया है कि श्रीरामका जन्म नवरात्रके अवसरपर नवदुर्गाके पाठके समापनके पश्चात् हुआ था और उनके शरीरमें मां दुर्गाकी नवीं शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युगमें इसी दिन अयोध्याके महाराजा दशरथकी पटरानी महारानी कौशल्याने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामको जन्म दिया था। वाल्मीकि रामायणके अनुसार भगवान श्रीराम चन्द्रमाके समान अति सुंदर, समुद्रके समान गंभीर और पृथ्वीके समान अत्यंत धैर्यवान थे तथा इतने शील सम्पन्न थे कि दुखोंके आवेशमें जीनेके बावजूद कभी किसीको कटु वचन नहीं बोलते थे। माता-पिताके प्रति कर्तव्य पालन एवं आज्ञा पालनकी भावना तो उनमें कूट-कूटकर भरी थी।

श्रीरामका चरित्र बेहद उदार प्रवृत्तिका था। उन्होंने उस अहिल्याका भी उद्धार किया, जिसे उसके पतिने देवराज इन्द्र द्वारा छलपूर्वक उसका शीलभंग किये जानेके कारण पतित घोषित कर पत्थरकी मूर्त बना दिया था। जिस अहिल्याको निर्दोष मानकर किसीने नहीं अपनाया, उसे भगवान श्रीरामने अपनी छत्रछाया प्रदान की। लोगोंको गंगा नदी पार करानेवाले एक मामूलीसे नाविक केवटकी अपने प्रति अपार श्रद्धा एवं भक्तिसे प्रभावित होकर भगवान श्रीरामने उसे अपने छोटे भाईका दर्जा दिया और उसे मोक्ष प्रदान किया। अपनी परम भक्त शबरी नामक भीलनीके झूठे बेर खाकर शबरीका कल्याण किया। महारानी केकैयीने महाराजा दशरथसे जब रामको १४ वर्षका वनवास दिये जाने और अपने लाड़ले पुत्र भरतको रामकी जगह राजगद्दी सौंपनेका वचन मांगा तो दशरथ गंभीर धर्मसंकटमें फंस गये थे। वह बिना किसी कारण रामको १४ वर्षके लिए वनोंमें भटकनेके लिए भला कैसे कह सकते थे और श्रीराममें तो वैसे भी उनके प्राण बसते थे। दूसरी ओर वचनका पालन करना रघुकुलकी मर्यादा थी। ऐसेमें जब श्रीरामको माता केकैयी द्वारा यह वचन मांगने और अपने पिता महाराज दशरथके इस धर्मसंकटमें फंसे होनेका पता चला तो उन्होंने खुशी-खुशी उनकी यह कठोर आज्ञा भी सहज भावसे शिरोधार्य की और उसी समय १४ वर्षका वनवास भोगने तथा छोटे भाई भरतको राजगद्दी सौंपनेकी तैयारी कर ली। श्रीराम द्वारा लाख मना किये जानेपर भी उनकी पत्नी सीताजी और अनुज लक्ष्मण भी उनके साथ वनोंमें निकल पड़े।

वनवासकी यात्राकी शुरुआत श्रृंगवेरपुर नामक स्थानसे प्रारंभ कर वहांसे वह भारद्वाज मुनिके आश्रममें चित्रकूट पहुंचे। उसके बाद विभिन्न स्थानोंकी यात्राके दौरान पंचवटीमें उन्होंने अपनी कुटिया बनानेका निश्चय किया। यहींपर रावणकी बहन शूर्पणखांकी नाक काटे जानेकी घटना हुई। उसी घटनाके कारण वहां खर-दूषण सहित १४००० राक्षस राम-लक्ष्मणके हाथों मारे गये। यहींसे श्रीराम एवं लक्ष्मणकी अनुपस्थितिमें लंकाका राजा रावण माता सीताका अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया। कहा जाता है कि जब सीताका विरह श्रीरामसे नहीं सहा गया तो उन्होंने साधारण मनुष्यकी भांति विलाप किया। इसी दौरान उनकी भेंट श्रीरामके अनन्य भक्त हनुमानसे हुई, जिन्होंने राम-लक्ष्मणको वानरराज बालीके छोटे भाई सुग्रीवसे मिलाया। श्रीरामने बालीका वध करके सुग्रीव तथा बालीके पुत्र अंगदको किष्किंधाका शासन सौंपा और उसके बाद सुग्रीवकी वानरसेनाके नेतृत्वमें लंकापर आक्रमण कर रावणका वध कर सीताको उसके बंधनसे मुक्त कराया और लंकाका शासन रावणके छोटे भाई विभीषणको सौंप दिया। वास्तवमें विधिके विधानके अनुसार रामको दुष्ट राक्षसोंका विनाश करनेके लिए ही वनवास मिला था। उन्होंने अपने मानव अवतारमें उन्होंने सृष्टिके समक्ष अपने क्रियाकलापोंके जरिये ऐसा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसकी वजहसे उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।

जहांतक राम-रावणके बीच हुए भीषण युद्धकी बात है तो वह सिर्फ दो राजाओंके बीचका सामान्य युद्ध नहीं था, बल्कि दो विचारधाराओंका संघर्ष था, जिसमें एक मानव संस्कृति थी तो दूसरी राक्षसी संस्कृति। एक ओर क्षमादानकी भावनाको महत्व देनेवाले एवं जनताके दुख-दर्दको समझने एवं बांटनेवाले वीतरागी भाव थे तो दूसरी ओर दूसरोंका सब कुछ हड़प लेनेकी राक्षसी प्रवृत्ति। रावण अन्याय, अत्याचार एवं अनाचारका प्रतीक था तो श्रीराम सत्य, न्याय एवं सदाचारके। यही नहीं, सीता जीके अपहरणके बाद भी श्रीरामने अपनी मर्यादाओंको कभी तिलांजलि नहीं दी। उन्होंने इसके बाद भी रावणको एक महाज्ञानीके रूपमें सदैव सम्मान दिया और यह इससे साबित भी हुआ कि रावणकी मृत्युसे कुछ ही क्षण पूर्व श्रीरामने लक्ष्मणको रावणके पास ज्ञान अर्जनके लिए भेजा था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामकी प्रजा वात्सल्यता, न्यायप्रियता और सत्यताके कारण ही उनके शासनको आज भी आदर्श शासनकी संज्ञा दी जाती है। रामराज्य यानी सुख, शांति एवं न्यायका राज्य। रामनवमी पर्व वास्तवमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामकी गुरु सेवा, माता-पिताकी सेवा एवं आज्ञापालन, जात-पातके भेदभावको मिटाने, क्षमाशीलता, भ्रातृप्रेम, पत्नीव्रता, न्यायप्रियता आदि विभिन्न महान् आदर्शों एवं गुणोंको अपने जीवनमें अपनानेकी प्रेरणा देता है।