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पंजाब : कलह में घिरे कैप्टन, मुख्यमंत्री के खिलाफ ऊंचे हुए बागी सुर


“चुनाव की बेला नजदीक आते ही मुख्यमंत्री के खिलाफ ऊंचे हुए बागी सुर”

करीब तीन महीने पहले 17 मार्च को अपनी सरकार की चौथी वर्षगांठ के समय पंजाब की कांग्रेस शासित कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार आत्मविश्वास से लबरेज थी कि 2022 के विधानसभा चुनाव में उसके सामने कोई चुनौती नहीं हैं। लेकिन महीने भर बाद 10 अप्रैल को पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के एक फैसले के बाद कांग्रेस के नेताओं ने ही अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। हाइकोर्ट ने 2015 में शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान कोटकपूरा और बहिबल कलां में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी मामले की पिछले तीन साल से जांच कर रही एसआइटी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और नए सिरे से जांच के आदेश दे दिए। इससे कैप्टन अमरिंदर सिंह निजी तौर पर भी सवालों के घेरे में आ गए हैं।

सरकार की किरकिरी से अपनी खाल बचाने के लिए कांग्रेसी नेताओं ने पंथ और धार्मिक भावनाओं की दुहाई देते हुए इस्तीफे तक दिए। पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ और कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर रंधावा के इस्तीफे भले कैप्टन ने मंजूर नहीं किए मगर इससे असंतुष्टों को नया मोर्चा खोलने का मौका मिल गया। इन असंतुष्ट सांसदों-विधायकों में प्रताप बाजवा, रवनीत बिट्टू, नवजोत सिंह सिद्धू्,परगट सिंह और चरणजीत चन्नी ने कैप्टन पर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर बादल को बेअदबी के मामलों में बचाने के लिए मिलीभगत के आरोप लगाए। ये असंतुष्ट आवाजें इतनी जोर से उठीं कि कांग्रेस आलाकमान को दखल देना पड़ा।

नवजोत सिंह सिद्धू का कहना है, मैंने पंजाब की आवाम की आवाज पार्टी आलाकमान तक पहुंचाई है, जो जमीन फाड़कर निकल रही है

दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में प्रदेश प्रभारी हरीश रावत और जयप्रकाश अग्रवाल की कमेटी के साथ हफ्तेभर चली मैराथन बैठकों में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कांग्रेस के सभी 80 विधायक, सांसद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हाजिर हुए। दिल्ली दरबार में हाजिरी के एक दिन पहले तीन जून को कैप्टन ने आम आदमी पार्टी के तीन विधायकों सुखपाल खैहरा, पिरमल सिंह और जगदेव सिंह को कांग्रेस में शामिल करा लिया और पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत का संदेश दे दिया।