पटना

पटना: उपशास्त्री से आचार्य तक की पढ़ाई पर संकट के बादल


मध्यमा में छात्र-छात्राओं की संख्या घटने का असर संस्कृत कॉलेजों पर

(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। राज्य के संस्कृत स्कूलों में मध्यमा पढऩे वाले छात्र-छात्राओं की संख्या घटने से संस्कृत कॉलेजों में उपशास्त्री से लेकर आचार्य तक की शिक्षण व्यवस्था संकट में पड़ गयी है। मध्यमा मैट्रिक के समतुल्य है, तो उपशास्त्री इंटरमीडिएट के। इसी प्रकार शास्त्री स्नातक के समतुल्य है, तो आचार्य स्नातकोत्तर के। शास्त्री और आचार्य डिग्रीधारियों की सामाजिक प्रतिष्ठा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शास्त्री योग्यताधारी शास्त्री जी कह कर और आचार्य योग्यताधारी आचार्य जी कह कर संबोधित किये जाते रहे हैं।

मध्यमा की पढ़ाई संस्कृत हाई स्कूलों में होती है। मध्यमा की पढ़ाई और परीक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के जिम्मे है। इससे इतर उपशास्त्री, शास्त्री एवं आचार्य की पढ़ाई और परीक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के जिम्मे है। यह राज्य में संस्कृत की शिक्षा का एकलौता विश्वविद्यालय है। संस्कृत माध्यम से मध्यमा पास करने वाले छात्र-छात्रा आगे की पढ़ाई के लिए उपशास्त्री में और उपशास्त्री पास करने वाले छात्र-छात्रा आगे की पढ़ाई के लिए  शास्त्री में दाखिला लेते हैं। इसी प्रकार शास्त्री करने वाले उसके आगे आचार्य की पढ़ाई करते हैं।

मतलब यह कि मध्यमा की शिक्षा उपशास्त्री से लेकर आचार्य तक की शिक्षा व्यवस्था की नींव है। राज्य में वर्ष 1981 में बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड की स्थापना के बाद मध्यमा की पढ़ाई और परीक्षा के प्रति ऐसा आकर्षण बढ़ा कि यह मैट्रिक का विकल्प बन गयी। यही वजह रही कि वर्ष 1990 में मध्यमा की परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों की संख्या सवा दो लाख पर पहुंच गयी। तब, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की मैट्रिक की परीक्षा में बैठने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या पांच लाख के करीब थी। यानी, जितने छात्र-छात्रा मैट्रिक की परीक्षा में बैठे थे, उससे आधे छात्र-छात्रा मध्यमा की परीक्षा में।

बिहार से झारखंड के अलग होने के बाद भी मध्यमा का आकर्षण बरकरार रहा। वर्ष 2007 में परीक्षार्थियों की संख्या दो लाख थी। लेकिन, उसके बाद से परीक्षार्थियों की संख्या इसलिए घटनी शुरू हो गयी, क्योंकि प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों से छात्र-छात्राओं के सीधे परीक्षा फॉर्म भरने पर रोक लगा दी गयी। प्रस्तावित संस्कृत स्कूलों के लिए बोर्ड द्वारा यह प्रावधान किया गया कि उसके छात्र-छत्राओं के परीक्षा फॉर्म प्रस्वीकृत संस्कृत स्कूलों के माध्यम से भरे जायेंगे। इससे तकरीबन 650 प्रस्वीकृत संस्कृत स्कूलों में तकरीबन 272 ही मध्यमा स्तर तक की पढ़ाई वाले रह गये। इनमें भी तकरीबन 100 स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं।

जब शिक्षक ही नहीं होंगे, तो भला बच्चे क्यों आयेंगे। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2018 से मध्यमा में छात्र-छात्राओं की संख्या अप्रत्याशित रूप से घटने लगी। वर्ष 2018 में मध्यमा में परीक्षार्थियों की संख्या घट कर 12000 पर पहुंच गयी। यह संख्या बढ़ कर वर्ष 2019 और 2020 में क्रमश: 22000 और 23000 पर पहुंची। लेकिन, वर्ष 2021 में परीक्षार्थियों की संख्या घट कर मात्र 8600 पर आ गयी।

इसका असर संस्कृत कॉलेजों में उपशास्त्री की पढ़ाई पर पड़ रहा है। संस्कृत कॉलेजों में उपशास्त्री में छात्र-छात्राओं की संख्या उसी हिसाब से घटी है, जिस हिसाब से मध्यमा में। और, उपशास्त्री में छात्र-छात्राओं की संख्या घटी, तो भला शास्त्री में कैसे नहीं घटेगी। सो, शास्त्री पढऩे वालों की संख्या भी घटनी शुरू हो गयी। ऐसे में जाहिर सी बात है कि आचार्य कहां से आयेंगे।