पटना

पटना: विश्वविद्यालय सेवा आयोग से होगी प्रधानाचार्यों की बहाली


बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग संशोधन अधिनियम लागू

      • विश्वविद्यालयों से छिना थर्ड ग्रेड के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार
      • अब 10 साल तक एक ही कॉलेज में रह सकेंगे प्रिंसिपल

(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। राज्य के अंगीभूत महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति भी बिहार राज्य विश्वविद्यालय  सेवा आयोग से होगी। अंगीभूत महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के माध्यम से करने के लिए ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम, 2017’ के प्रावधानों में संशोधन किया गया है।

यह संशोधन ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2021’ के माध्यम से किया गया है। राजपत्र (गजट) में प्रकाशन के साथ ही ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय  सेवा आयोग (संशोधन) अधिनियम, 2021’ लागू हो गया है।

संशोधित अधिनियम के प्रस्तावना में कहा गया है कि ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2017 (बिहार अधिनियम 14, 2017) एवं पटना विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2017 (बिहार अधिनियम 15, 2017) के माध्यम से राज्य के विश्वविद्यालयों के अंतर्गत संचालित महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य कोशिक्षक की श्रेणी में समाहित कर लिया गया है। राज्य के विश्वविद्यालयों के अंतर्गत शिक्षकों की नियुक्ति हेतु बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम, 2017 अधिनियमित है।

अत: बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम में शिक्षक की परिभाषा के तहत महाविद्यालयों के प्रधानाचार्य को समाहित किया जाना आवश्यक है।’ इसके मद्देनजर बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम, 2017 में संशोधन किया गया है।

आपको बता दूं कि इसके पहले महाविद्यालयों के प्रधानाचार्यों की नियुक्ति विश्वविद्यालय चयन समिति के माध्यम से किये जाने की व्यवस्था थी। लेकिन, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अधिनियम, 2017 में संशोधन के साथ ही यह अधिकार विश्वविद्यालयों से छिन गया है।

विश्वविद्यालयों से छिना थर्ड ग्रेड के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार

राज्य के विश्वविद्यालयों एवं अंगीभूत महाविद्यालयों में तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी बदल गयी है। बदली हुई प्रक्रिया में तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति का अधिकार भी विश्वविद्यालयों से छिन गया है।

विश्वविद्यालयों एवं अंगीभूत महाविद्यालयों में तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति अब राज्य सरकार द्वारा निर्धारित आयोग की अनुशंसा के आलोक में कुलपति द्वारा विधिवत प्रक्रिया के तहत की जायेगी। तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए संबंधित आयोग को अधियाचना भेजने के पूर्व राज्य सरकार से विश्वविद्यालय अनुमति प्राप्त करेगा।

इसके लिए ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 (बिहार अधिनियम 23, 1976) में संशोधन किया गया है। यह संशोधन ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021’ के माध्यम से किया गया है। राजपत्र (गजट) में प्रकाशन के साथ ही ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021’ लागू हो गया है।

हालांकि, यह अभी तय नहीं है कि किस आयोग के माध्यम से विश्वविद्यालयों एवं अंगीभूत महाविद्यालयों में तृतीय वर्ग के कर्मचारियों की नियुक्ति होगी। आयोग का निर्धारण राज्य सरकार करेगी।

अब 10 साल तक एक ही कॉलेज में रह सकेंगे प्रिंसिपल

राज्य के विश्वविद्यालयों के अंगीभूत महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों को अब पांच वर्षों का और कालावधि विस्तार मिल सकेगा। इससे एक प्रधानाचार्य अब एक अंगीभूत महाविद्यालय में दस वर्ष तक बने रह सकेंगे।राज्य के विश्वविद्यालयों के अंगीभूत महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों के लिए पांच वर्षों के एक ही कालावधि की व्यवस्था लागू थी।

लेकिन, पांच वर्षों  की दूसरी कालावधि के लिए ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 (बिहार अधिनियम 23, 1976) में संशोधन किया गया है। यह संशोधन ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021’ के माध्यम से किया गया है। राजपत्र (गजट) में प्रकाशन के साथ ही ‘बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2021’ लागू हो गया है।

नये प्रावधान के मुताबिक एक महाविद्यालय के प्रधानाचार्य के पदस्थापन की अवधि अधिकतम पांच वर्षों की होगी, परंतु विश्वविद्यालय द्वारा गठित समिति के कार्य निष्पादन मूल्यांकन के आधार पर इस कालावधि को अधिकतम पांच वर्ष की दूसरी कालावधि के लिए बढ़ाया जा सकेगा।