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पाक‍िस्‍तान में फंस गई भारत की मुन्‍नी, 40 साल बाद वायरल क‍िया वीड‍ियो


मुरादाबाद  अपनों की दगा ने मुन्नी को बुसरा बना दिया। भारत में जन्मी पर पाकिस्तान ने नया नाम द‍िया। एक नया ठौर और जिंदगी के नए मायने। बुसरा बनी मुन्नी पाकिस्तान तो पहुंची ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जरिए, लेकिन अपने हिम्मत, जोश और परिस्थिति से लड़ने की दृढृ इच्छा शक्ति ने उसे 40 साल बाद एक नई राह दिखा दी। अपनों के दगा की वजह से बर्बाद हुई एक जिदंगी, जिसने मां खोया, पिता खोया, बहन खोया और भाई के लिए तड़पती रही। पर मन में उम्मीद की किरण भी थी। 40 साल तक पाकिस्तान के कराची की गलियाें में जिंदगी गुजार तो दी, लेकिन भारत के प्रति प्रेम, अपने रिश्तेदारों से मिलने की आस कायम रही। संचार क्रांति ने राह दिखाई तो इंटरनेट मीडिया के जरिए वायरल दर्द से भरा बुसरा का वीडियो आखिरकार उसके घर वालों तक पहुंच ही गया।

40 साल से अपनी बहन को भूल चुके भाई के आंख से आंसू निकल पड़े। जिस बहन के गुम होने पर वह उसे भूल चुके थे आज वह मोबाइल की स्क्रीन पर दिख गई। वाटसअप कालिंग के जरिए भाइयों ने बहन से बात की। कुछ मिनट की बातचीत में बहन ने 40 साल के दर्द को बयां कर दिया। आज से तकरीबन 40 साल पहले 1981 में सम्भल के सरायतरीन के मुहल्ला हिझडान में मोहम्मद छिद्दन अपनी पत्नी मुनीजा, बड़ी बेटी भूरी, छोटी बेटी मुन्नी, बेटे मुन्ना उर्फ इस्लाम, अकरम व बाहर आलम के साथ रहते थे। बच्चे छोटे थे पिता पर सारी जिम्मेदारी थी। सींग की कंघी बनाकर जो मिलता उससे परिवार चलाते रहे और बच्चों को पढ़ाते भी रहे। 1981 में इनकी छाेटी बेटी मुन्नी जो महज 16 से 17 साल की थी, अचानक से गायब हो गई। पिता ने बहुत तलाशा लेकिन पता नहीं चला। सम्भल से मुरादाबाद और दिल्ली तक तलाश जारी रखी। पर न बेटी मिली न ही कोई सुराग। पिता को यह भी मालूम नहीं चल पाया कि उसके साथ दगा करने वाले भी अपने ही है। बेटी के जाने के तकरीबन 16 साल बाद 1997 में उनका इंतकाल हो गया। मुनीजा भी बेटी की उम्मीद छोड़ चुकी थीं। 2004 में उनका भी इंतकाल हो गया। इसी बीच में बहन भूरी की भी मौत हो गई और बचे तीन भाई अपने परिवार के साथ आज सरायतरीन में पिता के कामकाज को संभालने में जुटे हैं। बुधवार को जब भाई इस्लाम, अकरम व बहार आलम ने मुन्नी से बात की तो भाइयों की आंखें भर आईं। बहन को भी आज भी सब कुछ याद है। दरबार वाले मोड़ से चौथे नंबर पर अपना घर तो रास्ते की तंग गलियों की 40 साल पुराने एक-एक किस्से। भाइयों को भी पूरा भरोसा हो गया और बहन ने कुछ ही मिनटों की बातचीत में 40 साल की कसक पूरी कर ली।