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SCO Summit: मोदी और पुतिन की मुलाकात के क्‍या हैं मायने, एक्‍सपर्ट व्‍यू


नई दिल्ली, : रूस यूक्रेन युद्ध और ताइवान में जंग जैसे हालात के मध्‍य चीन-रूस के नेतृत्‍व वाले शंघाई सहयोग संगठन की 15 सितंबर को उज्‍बेकिस्‍तान के समरकंद शहर में शिखर बैठक हो रही है। इस आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े गठबंधन की दो दिवसीय बैठक में भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी भी हिस्‍सा लेंगे। एससीओ की इस बैठक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिस गर्मजोशी से मुलाकात हो रही। उससे चीन और अमेरिका की किरकिरी हो सकती है। दोनों प्रमुख नेताओं की मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब पाकिस्‍तान की एफ-16 की मदद को लेकर भारत अपनी आपत्ति दर्ज करा चुका है। दोनों नेताओं की इस मुलाकात पर अमेरिका और चीन की पैनी नजर है। खास बात यह है कि पुतिन और मोदी की मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब अमेरिकी विरोध के बावजूद भारत रूस से एस-400 मिसाइल सिस्‍टम खरीद रहा है। यहां बड़ा सवाल यह है कि भारत के लिए अमेरिका ज्‍यादा उपयोगी है या रूस ज्‍यादा अहम है। आइए जानते हैं कि रक्षा और सामरिक रूप से भारत के लिए रूस और अमेरिका दोनों क्‍यों उपयोगी है। शीत युद्ध और उसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में किस तरह का बदलाव आया है। आइए जानते हैं कि भारत की रक्षा नीति क्‍या है।

भारत-रूस संबंध शीत युद्ध के समय और उसके बाद

विदेश मामलों के जानकार प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि शीत युद्ध के पूर्व और उसके बाद भारत का दोनों देशों के साथ संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ के साथ भारत के मधुर संबंध थे। उस दौरान भारत और अमेरिका के बीच रिश्‍ते उतने मधुर नहीं थे। शीत युद्ध के बाद अंतरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में बड़ा फेरबदल हुआ है। इसका असर देशों के अंतरराष्‍टीय संबंधों पर भी पड़ा है। शीत युद्ध के खात्‍मे के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। मौजूदा अंतरराष्‍ट्रीय परिदृश्‍य में क्षेत्रीय संतुलन में बड़ा फेरबदल हुआ है। इसके चलते दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। भारत और अमेरिका के संबंधों को इसी क्रम में देखा जा सकता है।

भारत-रूस सहयोग को ‘मेक इन इंडिया’ से जोड़ा

प्रो. पंत का कहना है कि भारत की आजादी के बाद से दोनों देशों के बीच मधुर संबंध रहे हैं। रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, औद्योगिक तकनीकी और कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के विकास में रूस का बड़ा अहम योगदान रहा है। वैश्विक राजनीति और कई महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका के समक्ष रूस एक सकारात्मक संतुलन स्थापित करने में सहायता करता है। उन्‍होंने कहा कि भारत और रूस के संबंध शुरुआत से ही बहुत ही मजबूत रहे हैं, परंतु किसी भी अन्य साझेदारी की तरह समय के साथ इसमें कुछ सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई है। वर्तमान में भारत और रूस के साझा हितों को देखते हुए रक्षा क्षेत्र में भारत-रूस सहयोग को ‘मेक इन इंडिया’ पहल से जोड़कर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा दी जा सकती है। हाल ही में रूस सरकार द्वारा किसी उत्पाद या उपकरण की बिक्री के बाद भारतीय उपभोक्ताओं को अतिरिक्त पुर्जों के लिए मूल उपकरण निर्माता से सीधे संपर्क करने की अनुमति प्रदान की गई है। यह दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

रणनीतिक संबंधों की प्रगति में एक बड़ी बाधा

भारतीय रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस का सहयोग बहुत ही अहम है और लंबे समय से भारतीय रक्षा क्षेत्र में आवश्यक हथियार, तकनीकी आदि के एक बड़े भाग का आयात रूस से किया जाता है। रूस से प्राप्त होने वाले हथियारों और अन्य आवश्यक उपकरणों की लागत का अधिक होना एक चिंता का विषय रहा है। महत्त्वपूर्ण पुर्जों और उपकरणों की आपूर्ति में होने वाली देरी की समस्या रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, जो रूस के साथ व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों की प्रगति में एक बड़ी बाधा है।

भारत-रूस संबंधों में चीन फैक्‍टर

1- हाल के वर्षों में भारत ने अपने सामरिक हितों को देखते हुए रक्षा क्षेत्र से संबंधित अपने आयात को रूस तक सीमित न रख कर इसे अमेरिका, फ्रांस के साथ विकेंद्रीकृत करने का प्रयास किया गया है। साथ ही हाल के वर्षों में चीन के साथ सीमा पर तनाव में वृद्धि के कारण भारत और अमेरिका की नजदीकी बढ़ने से भारत-रूस संबंधों में दूरी बनने की आशंकाएं बढ़ने लगी थी। फ‍िलहाल रूस के साथ भारत का कोई भी बड़ा मतभेद नहीं रहा है।

2- उधर, चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों का इतिहास बहुत ही पुराना है, परंतु वर्ष 2014 से रूस के विरुद्ध अमेरिकी दबाव के बढ़ने से रूस, चीन के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए विवश हुआ। चीन-रूस संबंधों में आई मजबूती का एक और कारण खनिज तेल की कीमतों की अस्थिरता तथा चीनी खपत पर रूस की बढ़ती निर्भरता को भी माना जाता है। हालांकि, कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दोनों देशों में भारी मतभेद भी देखे गए हैं। जैसे- चीन क्रीमिया को रूस का हिस्सा नहीं मानता है और रूस दक्षिण चीन सागर में चीनी अधिकार के दावे पर तटस्थ रूख अपनाता रहा है।