सम्पादकीय

पेगासस जासूसीसे हंगामा


अवधेश कुमार     

पेगासस जासूसीको लेकर तत्कालीन सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसादने अक्तूबर २०१९ में ही बाजाब्ता ट्विटरपर ह्वïाट्सएपसे इसके बारेमें जानकारी मांगी थी। यह अलग बात है कि उसके बाद आगे इसपर काम नहीं हुआ। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि इसरायली कम्पनी एनएसओके पेगासस नामके इस हथियारका दुनियाकी अनेक सरकारें उपयोग करती हैं। पेगाससका कहना है कि वह केवल सरकारी एजेंसियों, सशस्त्र बलको ही पेगासस बेचती है। यह सच है तो जहां भी जासूसी हुई उसके पीछे सरकारी एजेंसियोंकी ही भूमिका होगी। फ्रांसमें इस भंडाफोड़के बाद जांच भी आरंभ हो गया है। हालांकि द गार्जियन और वाशिंगटन पोस्ट सहित विश्वकी १६ मीडिया समूहोंके इस दावेपर प्रश्न खड़ा हो गया है कि उन्होंने संयुक्त जांचमें पेगासस सॉफ्टवेयरसे जासूसी कराये जानेवाले सूचनाका पर्दाफाश किया है। मानवाधिकारकी अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल इसकी अगुआ थी। पहले एमनेस्टीकी ओरसे दावा किया गया था कि एनएसओके फोन रिकॉर्डका सुबूत उनके हाथ लगा है, जिसे उन्होंने भारत समेत दुनियाभरके कई मीडिया संघटनोंके साथ साझा किया था। स्वयंको नॉन प्रॉफिट संस्थान बतानेवाली फ्रांसकी फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनलने दावा किया था कि वह मानवीय स्वतंत्रता और नागरिक समाजकी मददके लिए गंभीर खतरोंका पता लगानेकी कोशिश करता है और उनके जवाब ढूंढ़ता है। इस वजहसे उसने पेगाससके स्पायवेयरका फॉरेंसिक विश्लेषण किया।

एमनेस्टीका बयान था कि उसकी सिक्योरिटी लैबने दुनियाभरके मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारोंके कई मोबाइल उपकरणोंका गहन फॉरेंसिक विश्लेषण किया है। उसके इस शोधमें यह पाया गया कि एनएसओ ग्रुपने पेगासस स्पाईवेयरके जरिये मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारोंकी व्यापक, लगातार और गैरकानूनी तरीकेसे निगरानी की है। फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनलको एनएसओके फोन रिकॉर्डका सुबूत हाथ लगा है, जिसे उन्होंने भारत समेत दुनियाभरके कई मीडिया संघटनोंके साथ साझा किया है। अब मीडियामें उसके बयानमें कहा है कि उसने कभी यह दावा किया ही नहीं कि यह सूची एनएसओसे संबंधित थी। इसके अनुसार एमनेस्टी इंटरनेशनलने कभी भी इस सूचिको एनएसओ पेगासस स्पाईवेयर सूचीके तौरपर प्रस्तुत नहीं किया है। विश्वके कुछ मीडिया संस्थानोंने ऐसा किया होगा। यह सूची कम्पनीके ग्राहकोंके हितोंकी सूचक है। सूचीमें वह लोग शामिल हैं, जिनकी जासूसी करनेमें एनएसओके ग्राहक रुचि रखते हैं। यह सूची उन लोगोंकी नहीं थी, जिनकी जासूसी की गयी। इसमें कहा गया है कि जिन खोजी पत्रकारोंके साथ वह कार्य करते हैं, उन्होंने शुरूसे ही बहुत स्पष्ट भाषामें साफ कर दिया है कि यह एनएसओकी सूचि ग्राहकोंके हितोंमें है। सीधे अर्थोंमें इसका मतलब उन लोगोंसे है, जो एनएसओ ग्राहक हो सकते हैं और जिन्हें जासूसी करना पसंद है।

इसके बाद निश्चित रूपसे पूरी दुनियाको यह विचार करना होगा कि हम एमनेस्टी इंटरनेशनलके पहलेके बयानको सच माने या अब वह कह रहा है सचाई उसमें है। जासूसी हमेशासे गूढ़ रहस्यवाली विधा रही है। अब तो एमनेस्टी इंटरनेशनल और फोरबिडेन स्टोरीजपर केंद्रित जांच होनी चाहिए कि उसने पहले किस कारणसे वह बयान दिया और अब किन कारणोंसे उसने अपना बयान बदला है। वैसे एनएसओने इसे एक अंतरराष्ट्रीय साजिश कह दिया है। भारत सरकार या भारत सरकारसे जुड़ी किसी अन्य संस्था द्वारा उसके सॉफ्टवेयरकी खरीदी संबंधी प्रश्नपर एनएसओका जवाब है कि हम किसी भी कस्टमरका जिक्र नहीं कर सकते। जिन देशोंको हम पेगासस बेचते हैं, उनकी सूची गोपनीय जानकारी है। हम विशिष्ट ग्राहकोंके बारेमें नहीं बोल सकते लेकिन इस पूरे मामलेमें जारी देशोंकी सूची पूरी तरहसे गलत है। एनएसओ कह रही है कि इस सूचीमेंसे कुछ तो हमारे ग्राहक भी नहीं हैं। हम केवल सरकारों और सरकारके कानून प्रवर्तन और खुफिया संघटनोंको बेचते हैं। हम बिक्रीसे पहले और बादमें संयुक्त राष्ट्रके सभी सिद्धांतोंकी सदस्यता लेते हैं। किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रणालीका कोई दुरुपयोग नहीं होता है। उसका यह भी कहना है कि उसके सॉफ्टवेयरका इस्तेमाल कभी भी किसीके फोनकी बातें सुनने, उसे मॉनिटर करने, ट्रैक करने और डाटा इक_ा करनेमें नहीं होता है। यदि पेगासस स्पाइवेयरका इस्तेमाल फोनकी बात सुनने मॉनिटर कर नेट पैक करने या डाटा इक_ा करनेमें होता ही नहीं है तो फिर मोबाइलोंकी जासूसी कैसे संभव हुई।

भारतमें तो तीन सौ सत्यापित मोबाइल नंबरोंकी जासूसी होनेका दावा किया गया है। इनमें नेताओं, सर्वोच्च न्यायालयके न्यायाधीश, वहांके पूर्व कर्मचारीके साथ ४० पत्रकारोंके नंबर भी शामिल हैं। विचित्र बात यह है कि इसमें मोदी सरकारके मंत्रीका भी नंबर है। कोई सरकार अपने ही मंत्रीका जासूसी करायगी। पेगाससका उपयोग दुनियाभरकी सरकारें करती हैं तभी तो २०१३ में सालाना चार करोड़ डालर कमानेवाली इस कम्पनीकी कमाई २०१५ तक १५.५ करोड़ डालर हो गयी। सॉफ्टवेयर काफी महंगा माना जाता है, इसलिए सामान्य संघटन और संस्थान इसे खरीद नहीं पाते। कम्पनीके दावोंके विपरीत २०१६ में पहली बार अरब देशोंमें काम कर रहे कार्यकर्ताओंके आईफोनमें इसके इस्तेमालकी बात सामने आयी। बचावके लिए एप्पलने आईओएस अपडेट कर सुरक्षा खामियां दूर कीं। एक साल बाद एंड्रॉयडमें भी पेगासससे जासूसीके मामले बताये जाने लगे। जैसा हमने ऊपर कहा कैलिफोर्नियाके मामलेमें ह्वïाट्सएपके साथ फेसबुक एमाइक्रोसॉफ्ट और गूगल भी न्यायालय गयी थी। उस समय ह्वïाट्सएपने भारतमें अनेक एक्टिविस्टों और पत्रकारोंके फोनमें इसके उपयोगकी बात कही। यदि पेगासस मोबाइलकी जासूसी करता ही नहीं है तो यह कंपनियां उसके खिलाफ न्यायालय क्यों गयी।  अनेक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह मोबाइल उपयोगकर्ताके मैसेज पढ़ता है, फोन कॉल ट्रैक करता है, विभिन्न एप और उनमें उपयोग हुई जानकारी चुराता है। लोकेशन डाटा, वीडियो कैमरेका इस्तेमाल एवं फोनके साथ इस्तेमाल माइक्रोफोनसे आवाज रिकॉर्ड करता है। एंटीवायरस बनानेवाली कम्पनी कैस्परस्कीका बयान है कि पेगासस एसएमएस, ब्राउजिंग हिस्ट्री, कांटैक्ट और ई-मेल तो देखता ही है फोनसे स्क्रीनशॉट भी लेता है। यह गलत फोनमें इंस्टॉल हो जाय तो खुदको नष्ट करनेकी क्षमता भी रखता है। विशेषज्ञोंके अनुसार इसे स्मार्ट स्पाइवेयर भी कहा गया है क्योंकि यह स्थितिके अनुसार जासूसीके लिए नये तरीके अपनाता है।

निश्चित रूपसे दावे, प्रतिदावे, खंडन आदिके बीच हमारे आपके जैसे आम व्यक्तिके लिए सच समझना कठिन है, बल्कि असंभव है। भारत सरकारने अभीतक इस बातका खंडन नहीं किया है कि वह पेगासस स्पाइवेयरका उपयोग करती है। इसका मतलब है कि पेगासस स्पाइवेयर भारत सरकारके कुछ या सभी एजेंसियोंके पास हैं। देशकी सुरक्षा, आतंकवाद आर्थिक अपराध आदिके संदर्भमें जासूसी विश्वमें मान्य है और इसमें कोई समस्या नहीं है। यह अलग बात है कि निजी स्वतंत्रताके नामपर अनेक कानूनी और राजनीतिक लड़ाइयां लड़ी गयी। भारतमें ही न्यायालयोंके कई फैसले आये। किंतु इसपर सहमति है कि देशकी सुरक्षाका ध्यान रखते हुए किसीपर नजर रखना, उसके बारेमें जानकारियां जुटाना आदि आवश्यक है। दुर्भाग्य है कि कई बार एजेंसियोंके बड़े-बड़े अधिकारी राजनीतिक नेतृत्वके लिए राष्ट्रीय सुरक्षाके नामपर ऐसे लोगोंको भी दायरेमें ले लेते हैं जो राजनीतिक और वैचारिक स्तरपर सरकारके विरोधी हैं। यदि कंपनीके दावेके विपरीत वाकई मोबाइलपर बातें सुनना, मैसेज पढऩा, ट्रैक करना, वहांसे डाटा निकालना आदि इस स्पाइवेयरसे संभव है तो हुआ होगा। लेकिन यदि इसके द्वारा देशकी दृष्टिसे काफी संवेदनशील जानकारियां इक_ी की गयी हैं तो फिर इसको सार्वजनिक करनेके लिए दबाव बढ़ाना किसीके हितमें नहीं होगा। इसमें ऐसा क्या हो सकता है जिससे कमसे कम भारतमें जो तूफान खड़ा हुआ है वह शांत हो तथा अपनी जासूसी किये जानेकी जानकारीपर क्षुब्ध लोग संतुष्ट हो सकें। साथ ही फोरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनलके चरित्र और आचरणको भी ध्यान रखना होगा।