सम्पादकीय

महंगी और धर्मसंकट


पेट्रोल-डीजल और ईंधन गैसकी निरन्तर बढ़ती कीमतोंसे जहां आम जनताकी मुश्किलें बढ़ी हैं वहीं सरकार भी धर्मसंकटमें पड़ गयी है। महंगी और धर्मसंकट यद्यपि अलग-अलग विषय हैं लेकिन सरकारका धर्मसंकटमें पडऩा इस बातका प्रमाण है कि वह न केवल काफी चिन्तित है अपितु इस महंगीसे उसकी भी परेशानी बढ़ गयी है। इससे उबरनेके लिए पिछले दिनों केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने पेट्रोल और डीजलको वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के दायरेमें लानेका महत्वपूर्ण सुझाव दिया था और यह भी कहा था कि इससे पेट्रोलियम उत्पादोंपर करोंमें एकरूपता आयेगी और इसके मूल्य भी कम होंगे। अहमदाबादमें भारतीय प्रबन्ध संस्थानके छात्रोंके सवालोंके जवाबमें निर्मला सीतारमणने स्वीकार किया कि पेट्रोलियम उत्पादोंकी बढ़ी कीमतोंसे हम काफी चिन्तित हैं और उपभोक्ताओंको इससे राहत मिलनी चाहिए। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या केन्द्र सरकार अपने शुल्कमें कटौती करेगी तब उन्होने कहा कि इस सवालने तो मुझे धर्मसंकटमें डाल दिया है। शनिवारको भी उन्होंने एक कार्यक्रममें कहा था कि करोंमें कटौतीका प्रश्न धर्मसंकटमें डालनेवाला है। भारतीय रिजर्व बैंकके गवर्नर शक्तिकांत दासने भी गुरुवारको मुम्बईमें चेम्बर आफ कामर्सको सम्बोधित करते हुए कहा कि केन्द्र और राज्य दोनोंके राजस्वपर खासा दबाव है। ऐसेमें पेट्रोलियम पदार्थोंपर करोंकी कटौती आसान नहीं है। कीमतें बढऩेसे महंगीपर असर पड़ रहा है। पेट्रोल-डीजल महंगा होनेसे उत्पादकतापर सीधा प्रभाव पड़ता है। लागत बढऩेसे महंगी दर प्रभावित होती है। पेट्रोलियममंत्री धर्मेन्द्र प्रधानकी दलील है कि उत्पादक देश दाम बढ़ा रहे हैं। इसलिए देशमें पेट्रोल-डीजलके दाम बढ़ रहे हैं। इससे उपभोक्ता सीधे प्रभावित होते हैं। अब प्रश्न उठता है कि उपभोक्ताओंको कैसे राहत दी जाय। इसके लिए कौनसे कदम उठाये जायं जिससे ईंधनकी कीमतोंमें कमी आ सके। इस दिशामें सरकारको दृढ़ इच्छाशक्तिसे सोचना और कुछ करना होगा। धर्मसंकटमें सरकार है लेकिन जनता भी गम्भीर आर्थिक संकटमें आ गयी है। जनताको इससे उबारना ही सबसे बड़ा राष्ट्रधर्म है। राष्ट्रधर्मका दायरा बहुत व्यापक है लेकिन वर्तमान स्थितियोंमें जनताको राहत देना ही सबसे बड़ा धर्म है। करोंमें कटौती करके ही इसे पूरा किया जा सकता है।

तलाकका आधार

सुप्रीम कोर्टने शुक्रवारको एक सैन्य अधिकारीका उसकी पत्नीसे तलाक मंजूर करते हुए कहा कि जीवनसाथीके खिलाफ मानहानिसे जुड़ी शिकायतें और उसकी प्रतिष्ठाको ठेस पहुंचाना मानसिक क्रूरता है। इस आधारपर सुप्रीम कोर्टने सेनाके अधिकारीको उसकी पत्नीके खिलाफ तलाकके केसमें डिक्री प्रदान की है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस ऋषिकेश रायकी पीठने पतिकी याचिका स्वीकार करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालयका फैसला निरस्त कर दिया और तलाककी डिक्री देनेके फैमिली कोर्टके फैसलेको बहाल कर दिया। सुप्रीम कोर्टने कहा कि उच्च न्यायालयका टूटे रिश्तेको मध्यम वर्गकी विवाहित जीवनका हिस्सा कहना गलत है। यह मामला निश्चित तौरपर पत्नी द्वारा पतिके प्रतिकी गयी क्रूरताका है और पति इस आधारपर तलाक पानेका अधिकारी है। कोर्टने कहा कि जब पतिने पत्नी द्वारा लगाये गये आरोपोंके चलते जिंदगी और करियरमें बुरा असर झेला है तो पत्नीको उसके कानूनी नतीजे झेलने होंगे। वह सिर्फ इसलिए नहीं बच सकती कि किसी भी अदालतने आरोपोंको झूठा नहीं ठहराया है। इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट एक मामलेकी सुनवाईके दौरान कहा था कि किसी व्यक्तिके विवाहेतर संबंध और उसकी पत्नीका संदेह हमेशा ऐसी मानसिक क्रूरता नहीं होती, जिसे आत्महत्याके लिए उकसानेका प्रावधान माना जाये, लेकिन यह तलाकका आधार हो सकता है। पतिको उसके माता-पितासे अलग रहनेके लिए मजबूर करना अत्याचार है और यह तलाकका आधार हो सकता है। इस मामलेमें बहुत शिक्षित जीवनसाथीने अपने साथीपर आरोप लगाये, जिससे उसके करियर और प्रतिष्ठाको अपूर्णीय क्षति पहुंची। जब किसीकी अपने सहयोगियों, वरिष्ठों और समाजमें प्रतिष्ठा खराब हुई हो तो उस प्रभावित व्यक्तिसे इस आचरणको माफ करनेकी अपेक्षा नहीं की जा सकती। पत्नीका यह कहना न्यायोचित नहीं है कि उसने सभी शिकायतें अपने वैवाहिक जीवनको बचानेके लिए की थी। गलत पक्ष वैवाहिक रिश्ता जारी रहनेकी अपेक्षा नहीं कर सकता। पतिका उससे अलग रहनेकी मांग करना न्यायोचित है। इस मामलेमें पति एमटेककी डिग्रीके साथ सैन्य अधिकारी था और पत्नी पीएचडी डिग्रीके साथ गवर्नमेंट पीजी कालेजमें पढ़ाती थी। शादीके एक साल बादसे ही दोनों अलग रह रहे हैं। पतिने कहा कि उसकी पत्नीने उसके खिलाफ बहुत-सी शिकायतें कीं, उसपर आरोप लगाये जिससे उसकी प्रतिष्ठा और करियरको नुकसान पहुंचा। पत्नीका यह व्यवहार मानसिक क्रूरता है इसलिए उसे तलाक दिया जाये। जबकि पत्नीने याचिका दाखिल कर कोर्टसे दाम्पत्य संबंधोंकी पुनस्र्थापनाकी मांग की। फैमिली कोर्टने मामलेके तथ्य और सुबूतोंको देखते हुए पतिकी तलाक अर्जी मंजूर कर ली थी। लेकिन हाईकोर्टने फैमिली कोर्टका तलाक देनेका फैसला पलट दिया था और पत्नीकी दाम्पत्य संबंधोंकी पुनस्र्थापनाकी मांग स्वीकार कर ली थी।