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बंगाल के ‘भद्रलोक’ में सेंध लगाने की कोशिश में भाजपा


कोलकाता. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election 2021) के रण में भारतीय जनता पार्टी, सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस को मजबूत चुनौती दे रही है. इसके लिए भाजपा गांव के साथ-साथ शहरी इलाकों के मतदाताओं पर भी अपनी छाप छोड़ना चाहती है. बंगाल के ‘भद्रलोक’ वर्ग यानी जेंटलमैन क्लास तक अपनी पहुंच बनाने के लिए भाजपा दो अहम बातों का इस्तेमाल कर रही है. भाजपा, ‘भद्रलोक’ तक यह संदेश पहुंचाने में सफल होना चाहती है वह भी मौजूदा सरकार के कुशासन का शिकार हैं और निकट भविष्य में सीमाओं के माध्यम से घुसपैठ का खामियाजा ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों को उठाना पड़ सकता है.

बंगाल का शहरी क्षेत्र परंपरागत रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ रहा है, लेकिन मौजूदा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी शहरी मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश कर रही है. भाजपा जोर देकर कह रही है कि यह वर्ग भी ‘टीएमसी के कुशासन से अछूता नहीं’ है और अब उन्हें भाजपा एक विकल्प दे रही है, ऐसे में वह सीएम के तौर पर ममता बनर्जी से समझौता ना करें.

प्रधानमंत्री के तस्वीरों वाले पोस्टर्स का अंबार
भाजपा के बड़े नेताओं ने कोलकाता के पॉश साल्ट लेक सिटी क्षेत्र को कवर करने वाली गृह मंत्री अमित शाह की रैली में भाग लिया. इसके साथ ही भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजरहाट न्यू टाउन में ‘बौद्धिक बैठक’ की. इस दौरान News18 ने देखा कि बीजेपी शहरी मतदाताओं को क्या संदेश पहुंचाना चाहती है. बीते एक हफ्ते में बीजेपी ने कोलकाता में प्रधानमंत्री के तस्वीरों वाले पोस्टर्स का अंबार लगा दिया है.वहीं न्यू टाउन में, नड्डा ने कहा कि बंगाल में बौद्धिक खोज और चर्चा बंद हो गई है. बीजेपी अध्यक्ष ने दावा किया कि ‘जहां विचार रुक जाते हैं, वहां समाज का विकास रुक जाता है. आप वशीभूत हो चुके हैं इसलिए आप अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पा रहे हैं. हम बंगाल में कानून का शासन लाना चाहते हैं. यह सभी के लिए मददगार होगा. उन्होंने कहा कि ‘बंगाल में प्रशासन का राजनीतिकरण किया गया और पुलिस का अपराधीकरण किया गया.

शहरी मतदाताओं से अपील करने के लिए शहरों में भाजपा द्वारा कई बुद्धिजीवियों की बैठक और सड़क रैलियां शुरू की गई हैं, जिन्हें 34 वर्षों से वामपंथी शासित राज्य में दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित माना जाता है. प्रगतिशील मतदाता माना जाने वाला शहरी ‘भद्रलोक’ वर्ग लंबे समय से वाम दलों के साथ था. साल 2011 में उनमें से एक बड़ा वर्ग टीएमसी में चला गया और भाजपा की दक्षिणपंथी राजनीति का आलोचक बना रहा.