सम्पादकीय

 बड़ी उपलब्धि


रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संघटन (डीआरडीओ) ने सोमवारको प्रात: दस बजकर ५५ मिनटपर ओडिशाके बालासोरमें डाक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वीपसे परमाणु क्षमतासे लैस अगली पीढ़ीकी मिसाइल अग्नि-पीका सफल परीक्षण कर राष्ट्रका गौरव बढ़ाया है। यह एक बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता एक हजारसे दो हजार किलोमीटर है। यह सतहसे सतहपर मार करनेवाली मिसाइल है, जो एक हजार किलोग्राम वजनका पेलोड या परमाणु शस्त्र ले जा सकती है। डबल स्टेजवाली मिसाइल अग्नि-१ की तुलनामें यह हल्की और अधिक पतली है। अब अग्नि-पी मिसाइल अग्नि-१ की जगह लेगी। भारतने पहली बार १९८९ में मध्यम दूरीकी बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-१ का परीक्षण किया था। अबतक अग्नि श्रृंखलाकी पांच मिसाइलोंका सफलतापूर्वक विकास और परीक्षण किया जा चुका है। अग्नि प्राइम मिसाइल दो स्टेज और सालिड फ्यूलपर आधारित है और इसे एडवांस रिंग-लेजर गायरोस्कोपपर आधारित जड़त्वीय नेविगेशन सिस्टमसे निर्देशित किया जायगा। इससे सड़क और मोबाइल लांचर दोनोंसे फायर किया जा सकता है। यह मिसाइल सभी पैमानोंपर सटीक पायी गयी है। इसे तैयार करनेमें वैज्ञानिकोंने अथक परिश्रम किया है। ऐसे वैज्ञानिकोंपर देशको गर्व है। यह राष्ट्रकी बड़ी उपलब्धि है और इसके माध्यमसे पूरी दुनियामें भारतकी क्षमताके सन्दर्भमें मजबूत सन्देश गया है। इससे देशकी सैन्य क्षमता बढ़ी है। साथ ही उन देशोंकी बेचैनी भी बढ़ेगी जो भारतके प्रति कुटिल दृष्टिïकोण रखते हैं। सीमापर पड़ोसी देशोंकी ओरसे बढ़ते खतरों और चुनौतियोंको देखते हुए ऐसे मिसाइलका सफल परीक्षण आवश्यक हो गया था। यह विलक्षण क्षमताकी मिसाइल है और इसका निशाना भी बहुत सटीक है। इसके विकाससे डीआरडीओकी गौरवशाली उपलब्धियोंमें एक नया अध्याय जुड़ गया है। उम्मीद है भविष्यमें भी डीआरडीओ इसी प्रकार उपलब्धियोंका सिलसिला बनाये रखेगा। डीआरडीओ कोरोना कालमें भी देशवासियोंकी सेवामें अग्रणी रहा। दवाओंके उत्पादन और अस्पतालोंके निर्माणमें डीआरडीओने उल्लेखनीय सेवाएं की, जो सदैव स्मरणीय रहेगा। ऐसे विशिष्टï संस्थानपर देश और देशवासियोंको गर्व होना स्वाभाविक है। अग्नि-पी मिसाइलके सफल परीक्षणसे विश्वमें भारतकी साख और बढ़ेगी।

शिकंजेमें अलगाववादी

जम्मू-कश्मीरमें स्थिरता और शान्तिबहालीके लिए कृतसंकल्पित केन्द्र सरकारके कठोर निर्णयको सख्तीसे लागू किये जानेके फलस्वरूप वहांके सामाजिक परिदृश्यपर असर दिखने लगा है। आपरेशन आल आउटने आतंकवादियोंकी कमर तोड़ दी जो पाकिस्तानके मिशन कश्मीरके लिए बड़ा झटका साबित हुआ। रही-सही कसर अनुच्छेद ३७० के खत्म होनेके साथ पूरी हो गयी। इस अनुच्छेदके निष्प्रभावी होनेके बाद वहांकी परिस्थितियोंमें व्यापक बदलाव आया है। इसके चलते एक ओर जहां आतंकी गतिविधियोंमें कमी आयी वहीं दूसरी ओर अलगाववादियोंकी दुकानें भी लगभग बंद हो चुकी हैं। पिछले दो सालमें आतंकवाद और अलगाववादपर जमकर प्रहार हुआ है जिसका असर सामने आने लगा है। राजनीतिक उठापटकके बीच अब अलगाववादी पूरी तरह अलग-थलग पड़ गये हैं। घाटीमें कभी जिनकी एक आवाजपर लोग घरोंसे बाहर निकल आते थे और सुरक्षाबलोंपर हमलावर हो जाते थे वहीं अब उनकी आवाज पूरी तरह बेअसर है। राजनीतिक दलोंने बदली परिस्थितिकी नजाकत भांपते हुए अलगाववादियोंका राग अलापना बंद कर दिये हैं। पाकिस्तानकी शहपर जम्मू-कश्मीरकी राजनीतिमें दखल देनेवाले हुर्रियत कांफ्रेंस समेत अलगाववादी गुटोंकी घाटीमें प्रासंगिकता खत्म करने और उनकी जड़ोंपर प्रहार करनेका अभियान पूरी तरह सफल रहा। राष्टï्रीय जांच एजेंसी, प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआईका संयुक्त रूपसे आतंकवादी नेताओंके वित्तीय स्रोत और आतंकियोंकी फण्डिंगपर शिकंजा कस चुका है, जिससे अलगाववादियोंके हाथ-पांव सुस्त पड़ गये हैं। जम्मू-कश्मीरमें शीघ्र चुनाव करानेके लिए केन्द्र सरकार दृढ़संकल्पित है। इसके लिए परिसीमनकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पहलेका परिसीमन आबादीके अनुपातमें नहीं हुआ था। नये परिसीमनका दूरगामी असर पड़ेगा जो घाटीकी राजनीतिको प्रभावित करेगा। सरकारको स्थानीय लोगोंका भरोसा जीतना होगा, लेकिन अलगाववादकी भाषा बोलनेवालोंके खिलाफ कोई रियायत नहीं होनी चाहिए।