पटना

बिहारशरीफ: मघड़ा के मां शीतला मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं ने की पूजा-अर्चना


बिहारशरीफ (आससे)। मां शीतला मंदिर मघड़ा में प्रतिवर्ष आयोजित दो दिवसीय शीतलाष्टमी व्रत शुरू हो गया है। सोमवार को भक्तों की अपार भीड़ उमड़ी। भक्तों के उत्साह के आगे कोरोना पर आस्था भारी पड़ा। हजारों श्रद्धालुओं ने मां शीतला मंदिर में अपने शीष नवाये और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की। अतिप्राचीन श्री शीतला माता की मूर्ति का ‘वसिऔरा प्रसाद’ से भक्तजन पूजा-अर्चना कर प्रसाद को ग्रहण किया। रविवार यानि सप्तमी को शीतला भक्त अपने घरों को पवित्र कर सायं भगवती जी की पूजनार्थ प्रसाद बनाया। ‘शीतला कूप’ के जल से निर्मित इस पावन प्रसाद को भक्तों ने अष्टमी के दिन पूजनोपरांत भक्तजन उसे ग्रहण करेंगे।

इस दिन मघड़ा गांव का एक भी घर में चूल्हा नहीं जलाया जायेगा। ‘पर्युषितान्न पानादिक मत्र विद्धितम’ के आधार पर वासी प्रसाद ग्रहण कर सभी लोग माताजी से भोग एवं मोक्ष का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। प्राचीनकाल से यही परंपरा यहां चली आ रही है। इस अवसर पर नालंदा ही नहीं पड़ोसी जिलों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु नर-नारी मां शीतला की पूजा करने यहां पहुंच रहे हैं।

जिसकी सुरक्षा-व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन के अधिकारी कमान संभाल रखे हैं। इस बार कोरोना को लेकर मघड़ा मेला का आयोजन जिला प्रशासन द्वारा रोक लगा दिया गया था। इस कारण बच्चों के लिए झूले आदि मनोरंजन के सामान नहीं लगाये गये थे। ना हीं आसपास खिलौने, चाट-समोसे, श्रृंगार की दुकानें लगायी गयी थी। छोटे-मोटे दुकानें सजी थी।

बताया जाता है कि शीतला माता के श्री विग्रह की आज स्थापना तिथि भी है। भगवान वृष केतू ने स्वयं शीतला माता का श्री विग्रह यहां स्थापित किया है। माता सती के पिता श्री दक्ष प्रजापति के विराट यज्ञ में आत्महूत होने के उपरांत यज्ञ विध्वंस कर भगवान आशुतोष उनके पार्थिव शरीर को कंधे पर उठाकर पागलों की भांति संसार में कार्यभार त्याग कर भ्रमण कर रहे थे। ब्रहमादि देवताओं की प्रार्थना से अभिभूत श्री विष्णु की आज्ञा से सती के शरीर को शिवजी के कंधे से हटाने के लिए श्री सुदर्शन चक्र ने मृतक शरीर पर 107 प्रहार किये थे। खंड-खंड 108 टुकड़ों में माता का अंग कट कर जहां-जहां गिरा शिव कृपा से वहां सिद्धिपीठ बनें। एवं जहां-जहां उनके वस्त्र एवं आभूषण गिरे वहां भी शिव कृपा से कलांतर में मातृ-तीर्थ बने।

मघड़ा में माता का कड़ा (हाथ का कड़ा) गिरा था। महाराज रूपधारी वृषकेतू (शिव) के राज्य में जब भयंकर चेचक महामारी से जनता त्रस्त होने लगी तो महाराजा की पूजा प्रार्थना से स्वप्न में उन्हें माता का दर्शन एवं आदेश प्राप्त हुआ। उनके कानों में देवी का स्वर गूंजा- ‘आंखें खोल नृपराज ! तेरी उपासना से मैं अतिशय प्रसन्न हूं, देख मेरे इस शीतला स्वरूप को देख। पंचनद (पंचाने नदी) की कोख में मेरा कड़ा गिरा है। उसे निकाल मेरे इसी रूप का ‘श्री विग्रह बना मंदिर में’ कड़ा के उपर स्थापित कर वसिऔरा पूजा करके प्राण प्रतिष्ठा कर। तुम्हारे राज्य में जो इस मंदिर में मूर्ति की पूजा कर मेरे उपर चढ़े जल का पान व स्नान करेगा उसे इस महारोग से त्रण मिलेगा। जो मुझे काम, अर्थ, धर्म और मोक्ष की कामना से पूजन करेगा उसे अवश्य ही मेरी कृपा अभिष्ठ की प्राप्ति होगी’। ऐसा कह कर राजा के स्वप्न में मां अंर्तध्यान हो गयी।

मां शीतला राजा को गदहे पर सवार दिखी। बगल में धर्मराज सिंह विराजमान थे। मां के मुकुट के ठीक उपर देवी के नौवों शक्तियां रेखा रूप में उपस्थित थीं। दायीं ओर से सूर्य एवं बायीं ओर से चंद्रमा अपने मजूल में सेवार्थ खड़े थे। नीचे बायें तरफ गणेश जी तथा दायीं तरफ भैरो देव मां की सेवा में उपस्थित थे। मां लाल परिधान में दर्शन दी थी। गुलाब, हुड़हुल की माला मां की गले में सुशोभमान हो रहे थे। चारो भुजाओं में स्वर्ण कलश, नीम की डाली, भष्म की झोली तथा अभय मुद्राचक्र सुशोभित था। माता की वही मूर्ति आज भी मंदिर में भक्तों की आस्था का केन्द्र बनी है। प्रतिवर्ष चैत्र से लेकर अषाढ़ तक की चारो कृष्णपक्ष की अष्टमी में शीतला माता के वसिऔरा पूजा भक्तजन पूरे देश में करते हैं। मघड़ा मंदिर में चारो शीतलाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रात्रि पूजन में मां का विशेष श्रृंगार होता है।

माता का शुद्ध प्रसाद वासी पकवान, मिष्टाण, फल, अकूरा चना एवं अक्षत है। दही के स्नान से माता अति प्रसन्न होती है। शीतला कूप एवं माया तालाब का जल, गंगा जल से माता का पूजन होता है। आजकल भक्तजन अज्ञानतावश ताजा दूध चढ़ाते हैं। विग्रह में घी लगाते हैं, जो सर्वथा अनुचित एवं वर्जित है। क्योंकि माता स्वयं गर्म लहर एवं उसकी पीड़ा से बेचैन है।

अज्ञानता के कारण माता के उपर भक्तजन ताजा नारियल का जल भी नारियल फोड़ कर चढ़ाने लगे हैं। धूप-दीप जलाने लगे हैं जो बिल्कुल अनुचित है। माता वैश्णवी रूपा हैं। यहां ‘जीवन दान’ होता है। उसकी हत्या नहीं। अतएव ‘नारियल वलि हत्या तुल्य अपराध के सदृश्य है।

बताया जाता है कि माता के आशीर्वाद ग्रहण करने की इच्छा से केवल दही-गूड़-बताशा मिला कर एवं जल से स्नान एवं वासी पकवान का भोग ही करें। अन्य संकल्पित जीवन दान इत्यादि संकल्प करा कर वहां चढ़ा दें। नारियल संकल्प कर या तो वहीं दान करें अथवा प्रसाद रूप में अपने घर लेकर आवें। पूजा के दूसरे दिन नारियल तोड़ कर घर में उसका जल छिड़क देने से गृह से सभी रोगादि, भूत-प्रेत बाधा का अंत हो जाता है।