पटना

बिहारशरीफ: स्मार्ट सिटी के फंड का दुरुपयोग नहीं तो और क्या?


      • टिकुली पर तालाब पर करोड़ों का खर्च कर इसे स्मार्ट बनाना रहा या फिर कंक्रीट पत्थरों का स्ट्रक्चर निर्माण कराना
      • स्मार्ट सिटी में खर्च की जा रही राशि यह दिखाता है कि शहर को स्मार्ट बनाने के बजाय इस प्रोजेक्ट में प्राप्त राशि को सिर्फ खर्च करना है

बिहारशरीफ (आससे)। बिहारशरीफ नगर निगम को स्मार्ट सिटी का दर्जा प्राप्त है। कई वर्षों से यह शहर स्मार्ट सिटी में गिना जा रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है इस शहर का कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत कोई योजना पूरी नहीं हो सकी है। कई ऐसी भी परियोजनाएं है, जिसे छः महीने में बनकर तैयार होना था, लेकिन साल से अधिक बीत गया और अभी निर्माण के नाम पर कभी काम होता है तो कभी किये हुए कार्यों को हटाया जाता है। ऐसे ही योजनाओं में एक है स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत बन रहे बिहार क्लब के सामने स्थित टिकुलीपर तालाब का।

बिहार क्लब के सामने स्थित टिकुलीपर तालाब कभी आकर्षण का केंद्र था। बाद में इसमें मवेशी धोया जाने लगा। कई बार अलग-अलग योजनाओं से इस तालाब का जीर्णोद्धार किया गया, लेकिन परिणाम वहीं निकला ढाक के तीन पात वाला।

पिछले वर्ष स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत टिकुली पर तालाब को स्मार्ट तालाब बनाने की पहल शुरू की गयी। इसके तहत तालाब के जीर्णोद्धार के साथ ही इसके चहारदीवारी निर्माण, सीढ़ी निर्माण आदि का प्रावधान किया गया। दिल्ली स्थित एक कंपनी जेएम इंफो टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को इस तालाब के जीर्णोद्धार का कार्य एजेंसी तय किया गया। 4.14 करोड़ की लागत से इस एजेंसी को सुभाष पार्क के अलावे टिकुलीपर तालाब के जीर्णोद्धार का कार्य सौंपा गया। निर्धारित समय बीत गया,  लेकिन तालाब का निर्माण नहीं पुरा हुआ।

खास बात यह है कि पिछले दिनों इस तालाब का घेराबंदी किया गया। इतनी ऊंची घेराबंदी की गयी कि सड़क से गुजरने वाले लोगों को यह एहसास होने लगा कि यह कोई जेल तो नहीं। बाद में शायद इसका एहसास नगर निगम प्रशासन को हुआ। अब फिर से नया प्रावधान किया गया और चहारदीवारी को काटने का काम चल रहा है। कटे हुए चहारदीवारी में ग्रिल फिट किया जा रहा है ताकि इससे लोग रूककर झांक सके कि यह तालाब ही है कोई जेल नहीं। जिस प्रकार से घेराबंदी के बीच खिड़कीनुमा वेंटिलेटर दिया गया है इससे आते-जाते लोगों को सहज तालाब का दीदार तो नहीं हो पायेगा। लोगों को पास में लगे बोर्ड पढ़कर वेंटिलेटर में जाकर झांकना होगा तब उन्हें पता चल सकेगा कि यह कोई तालाब है।

शायद करोड़ों खर्च कर स्मार्ट तालाब बनाने का उद्देश्य यह रहा होगा कि आते-जाते लोग सहजता पूर्वक तालाब को देखें और शहर की सुंदरता का लोग एहसास कर सकें, लेकिन देखने से यह स्पष्ट लगता है कि आम लोगों के देखने हेतु इसे सुंदर नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का करोड़ों रुपया खर्च करने के लिए इस तरह का प्रोजेक्ट तैयार किया गया है।

भला यह हाल रहेगा स्मार्ट सिटी का तो करोड़ों खर्च कर भी शहर स्मार्ट तो नहीं बन सकेगा। यह अलग बात है कि करोड़ों खर्च कर शहर में कंक्रीट और ईंट-पत्थर का निर्माण जरूर दिख जायेगा।