सम्पादकीय

बुजुर्गोंको मुफ्त टीका


देशमें कोरोना वायरसके खिलाफ मजबूत और सफल लड़ाईके क्रममें केन्द्र सरकारने एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। टीकाकरणका बड़ा अभियान पहलेसे ही चल रहा है। इसका तीसरा चरण एक मार्चसे प्रारम्भ होने जा रहा है। इसमें ६० वर्षसे अधिक उम्रवाले बुजुर्गों और ४५ वर्षसे अधिक उम्रवाले उन लोगोंको टीका लगाया जायगा, जो गम्भीर बीमारियोंसे ग्रसित हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीकी अध्यक्षतामें बुधवारको हुई मंत्रिमण्डलकी बैठकमें टीकाकरणके सन्दर्भमें जो निर्णय किये गये हैं, उनमें दो बातें विशेष रूपसे महत्वपूर्ण है। पहली बार इसमें निजी आस्पतालोंको भी शामिल किया गया है लेकिन वहां टीका लगवानेपर सरकारकी ओरसे निर्धारित शुल्क देना होगा। सरकार शुल्ककी घोषणा शीघ्र ही करेगी, जबकि सरकारी अस्पतालोंमें बिना किसी शुल्कके टीके लगाये जायंगे। कुल ३० हजार अस्पतालोंमें टीके लगाये जायंगे, जिनमें बीस हजार निजी और दस हजार सरकारी अस्पताल शामिल होंगे। तीसरे चरणमें कुल २७ करोड़ लोगोंको टीके लगानेका लक्ष्य रखा गया है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीकोंमेंसे विकल्प चुननेका भी अधिकार रहेगा। सरकारका मानना है कि दोनों ही टीके सुरक्षित और प्रभावशाली हैं। वरिष्ठï नागरिकोंको अपनी उम्रका प्रमाणपत्र भी देना होगा। टीका लगानेके लिए बुजुर्गोंको कोविन प्लेटफार्मपर पंजीकरण भी कराना होगा। केन्द्र सरकारने नि:शुल्क टीकाकी व्यवस्था कर राहतकारी निर्णय किया है। इससे वरिष्ठ नागरिकोंको कोई आर्थिक बोझ नहीं उठाना होगा। कोरोनाके खिलाफ जंगको जीतनेमें इस निर्णयसे काफी सहायता मिलेगी। इन दिनों कुछ राज्योंमें संक्रमण भी बढ़ रहा है। इसलिए विशेष सतर्कता और सावधानी बरतनी होगी। स्वास्थ्य मंत्रालयने गुरुवारको जो आंकड़े उपलब्ध कराये हैं उसके अनुसार पिछले २४ घण्टोंमें देशमें १६,७३८ संक्रमित पाये गये और १३८ लोगोंकी मृत्यु हुई। आंकड़ोंमें वृद्धि चिन्ताकी बात है। वैज्ञानिकोंने अपने अध्ययनसे जो निष्कर्ष निकाला है, वह और भी चिन्ताजनक है। देशमें कोरोना वायरसमें सात हजारसे ज्यादा बार बदलाव देखा गया है। यदि ढिलाई बरती गयी तो वायरस ज्यादा संक्रमण फैलानेवाला रूप धारण कर सकता है। यह काफी घातक साबित होगा। इसलिए सुरक्षा सम्बन्धी मानकोंका सख्तीसे पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। कुछ राज्योंमें ढिलाई बरतनेके कारण ही वहां स्थिति काफी खराब हो रही है। इससे सतर्क रहनेकी जरूरत है।

जानलेवा अन्धविश्वास

वैज्ञानिक युगमें अन्धविश्वासकी कुप्रथा आधुनिक भारतके लिए कलंक है। धार्मिक अन्धविश्वास और कट्टïरता हमारी प्रगतिमें जहां बहुत बड़ी बाधा बना हुआ है, वहीं मानवताके लिए गम्भीर खतरा है। लोगोंमें भय एवं अन्धविश्वासका लाभ धोखेबाज उठाते हैं। ये आम आदमी ही नहीं शिक्षित लोगोंको भी भूत-प्रेत, राहु-केतु आदिका भय दिखाकर उनसे तंत्र-मंत्र और पूजा-पाठके लिए लम्बी रकम ऐंठ लेते हैं। गांव ही नहीं, आजकल शहरोंमें भी ऐसे धोखेबाज लोगोंने जाल बिछा रखा है। भूत-प्रेत एवं सभी प्रकारकी बाधाओंको दूर करना आज व्यवसायका रूप ले चुका है। ऐसे धोखेबाजोंकी पोल भी खुलती रहती है फिर भी लोगोंमें जागरूकता न आना अत्यन्त दुखद है। जमीन-जायदाद हड़पनेके लिए किसी गरीब स्त्रीको डायन घोषित कर देना अन्धविश्वासका ऐसा उदाहरण है जिसमें मानवताको ताकपर रखकर गरीबोंके साथ अन्याय किया जाता है। झारखण्डके गुमला जिलेमें हुई घटना इसका ताजा उदाहरण है, जहां डायन विसाहीसे जुड़े अन्धविश्वासने पांच लोगोंकी बलि ले ली। एक ही परिवारके पांच लोगोंकी नृशंस हत्याने समाज और देशमें फैली कुप्रथाको एक बार फिर उजागर किया है। भारतमें ईश्वरको प्रसन्न करनेके लिए नरबलि देनेकी कुप्रथा तो समाप्त हो चुकी है, किन्तु पशुबलिकी प्रथा आज भी बदस्तूर जारी है। अन्धविश्वास हमारे समाजके लिए गम्भीर खतरा है। इसे शिक्षाके सहारे ही लोगोंमें जागरूकता लाकर दूर किया जा सकता है। यह कुप्रथा है, इसे बंद किया जाना ही प्रगतिशील समाजके लिए जरूरी है। लोगोंको सारी चीजोंको विज्ञानसे जोड़कर विचार-विमर्श करके ही किसीपर विश्वास करना चाहिए और उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भाग्यको कोई तांत्रिक नहीं बदल सकता है, वह केवल निर्माताके हाथमें है। अन्धविश्वासके खिलाफ जन-जागरूकता अभियानके साथ लोगोंको शिक्षित करना होगा।