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भारत की विकास यात्रा-6 : दुनिया का बैकऑफिस बनी देश की आईटी इंडस्ट्री,


नई दिल्ली, । साइंस और रिसर्च के लिए अनुदान देने वाली कंपनी फास्ट ग्रांट और पेमेंट प्लेटफॉर्म स्ट्राइप के सीईओ पैट्रिक कोलिजन ने कुछ महीने पहले एक ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोब, आईबीएम, पालो आल्टो नेटवर्क्स और ट्विटर के सीईओ भारतीय हैं। कोलिजन की बात का समर्थन करते हुए टेस्ला कंपनी के सह-संस्थापक और निवेशक एलन मस्क ने भी कहा कि ‘भारतीय टैलेंट का अमेरिका और दुनिया को फायदा मिल रहा है।’

इन बयानों के बरअक्स देखें तो तीन दशक पहले किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि दुनिया की शीर्ष दस आईटी कंपनियों (ब्रांड वैल्यू के लिहाज से) में चार भारत की होंगी। किसी के ख्याल में यह बात भी नहीं होगी कि भारतीय कंपनियां अमेरिका में लोगों को नौकरी दे रही होंगी और वहां की सिलिकन वैली में कुल वर्कफोर्स का 6% भारतीय होंगे। दुनिया की शीर्ष टेक्नोलॉजी कंपनियों के सबसे ऊंचे पदों पर भारतीयों को देखना काफी सुखद है। इसे मेधा का चमत्कार ही कहेंगे कि आज सिलिकन वैली के 15% स्टार्टअप के कर्ताधर्ता भारतीय हैं।

देसी टैलेंट की बदौलत 1991 में भारत की जीडीपी में सिर्फ 0.4% योगदान करने वाली आईटी इंडस्ट्री आज 8% योगदान कर रही है। इसके दबदबे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत के कुल मान्यताप्राप्त स्टार्टअप्स में से लगभग 12% आईटी सर्विसेज के हैं। 1974 में टीसीएस की स्थापना के साथ भारत से सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट की शुरुआत हुई थी, आज इस सेक्टर की वजह से भारत को दुनिया का बैकऑफिस कहा जाता है।

चार भारतीय कंपनियां टॉप 10 में

ब्रांड फाइनेंस की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की टॉप 10 आइटी कंपनियों में भारत की चार कंपनियां टीसीएस, इन्फोसिस, एचसीएल और विप्रो भी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, “विदेशी कारोबार बढ़ने से टीसीएस तेजी की राह पर है। यह साल कंपनी के लिए और फायदेमंद साबित हो सकता है।” रिपोर्ट में टीसीएस की ब्रांड वैल्यू 15 अरब डॉलर बताई गई है। 26 अरब डॉलर की ब्रांड वैल्यू के साथ एसेंचर शीर्ष पर है। दूसरे स्थान पर आइबीएम की ब्रांड वैल्यू 16.1 अरब डॉलर है। टीसीएस ने आइबीएम से अपने अंतर को काफी कम कर लिया है। 8.4 अरब डॉलर की ब्रांड वैल्यू के साथ इन्फोसिस चौथे स्थान पर है। तीन साल में 29% से ज्यादा की बढ़त के साथ इन्फोसिस ‘सबसे तेजी से बढ़ता आइटी ब्रांड’ बन गई है। आठ अरब डॉलर के साथ कॉग्निजेंट पांचवें स्थान पर है। एचसीएल सातवें, विप्रो नौवें और टेक महिंद्रा 15वें स्थान पर हैं।

 

उदारीकरण से मिली गति

भारत में आईटी सेक्टर का जन्म 1970 के दशक में हुआ, लेकिन उदारीकरण से इस सेक्टर को गति मिली। 1992-93 में इस सेक्टर का जीडीपी में हिस्सा 0.4% था जो अब 8% से ज्यादा हो गया है। यह सेक्टर रोज सफलता की नई इबारत लिख रहा है। इंडस्ट्री बॉडी नेस्कॉम ने 2022 की शुरुआत में कहा था कि यह सेक्टर 15.5% की रफ्तार से दौड़ रहा है। यानी भारतीय इकोनॉमी की तुलना में इसकी गति दोगुनी है। टेलियो लैब्स के सीईओ अमित सिंह कहते हैं कि 1991 के बाद हुए उदारीकरण ने देश में आईटी इंडस्ट्री के लिए कई संभावनाओं के द्वार खोले। नई तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, ब्लॉकचेन, क्वींटम कंप्यूटिंग, एनएफची और मेटावर्स आदि ने परंपरागत बैंकिंग, मेडिसिन, एग्रो इंडस्ट्री और कई क्षेत्रों में जैसे क्रांति ही ला दी। फाइनेंशियल पैकेज का सीधे अकाउंट में ट्रांसफर, हेल्थकेयर में नए इनोवेशन और तमाम उपलब्धियों ने आईटी इंडस्ट्री को नई ऊंचाईयां दी। हम दुनिया में सबसे बड़े फोन निर्माता में से एक है।

इस बात का समर्थन करते हुए नैस्कॉम के वाइस प्रेसिडेंट और हेड ऑफ पब्लिक पालिसी आशीष अग्रवाल बताते हैं, “इस सेक्टर का आकार 100 अरब डॉलर पहुंचने में 45 साल लगे। 2013-14 में इंडस्ट्री ने इस स्तर को छुआ था। पर अगला 100 अरब डॉलर जुड़ने में सिर्फ 7 साल लगे।”

भारत से सर्विसेज का जो एक्सपोर्ट होता है उसका 52% यह सेक्टर ही करता है। 2021-22 में भारतीय आईटी कंपनियों की निर्यात से आय 17.2% फीसदी बढ़कर 178 अरब डॉलर हो गई, और इनका घरेलू बाजार 10% फीसदी बढ़कर 49 अरब डॉलर का हो गया।

महिलाओं का बढ़ता दबदबा

आईटी उन चुनिंदा सेक्टर में है जिनमें महिलाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं। इस सेक्टर में करीब 50 लाख लोग काम करते हैं, जिनमें 20 लाख बीते दस सालों में जोड़े गए हैं। इस सेक्टर में 18 लाख महिलाएं हैं। अगर कहा जाए कि यह महिलाओं को सबसे अधिक रोजगार देने वाला सेक्टर है तो अतिशयोक्ति न होगी। हाल के वर्षों में नए कर्मचारियों में 44% फीसदी से ज्यादा महिलाएं रही हैं।

तरक्की में नॉलेज का मिला फायदा

आईआईटी बाम्बे के प्रोफेसर राजेश झेले कहते हैं, जब विदेश में कोई भारत के बारे में बात करता है तो उसके दिमाग में सॉफ़्टवेयर और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग आती है। पर आखिर हम यहां तक पहुंचे कैसे? दरअसल, इस तरक्की में हमारे माता-पिता का बड़ा योगदान है। उनका एक ही ध्येय होता है कि हमारा बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बने और उसकी अंग्रेजी अच्छी हो। इसी चाहत ने भारत में बड़ी संख्या में इंजीनियर और प्रोफेशनल तैयार किए हैं और मौका मिलते ही हम आईटी सेक्टर में छा गए। गणित और विज्ञान की अच्छी नॉलेज ने हमें सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में आगे बढ़ाया।

झेले के मुताबिक हमने हमेशा कम संसाधन में अपनी प्रतिभा के दम पर कामयाबी हासिल की है। आधार की कामयाबी भी इसकी एक मिसाल है, क्योंकि 140 करोड़ की आबादी में आज करीब सबके पास आधार है। आज पूरे देश में इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्टफोन है। यूपीआई से पैसा भेजना काफी आसान हो गया है। सभी फॉर्च्यून 500 कंपनियों का ऑफिस भारत में है और हर कोई भारत से जुड़ना चाहता है।

75 हजार से अधिक स्टॉर्टअप्स का देश

डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) ने 75 हजार से अधिक स्टार्टअप्स को मान्यता दी है। खास बात यह है कि शुरुआती दस हजार स्टार्टअप को 808 दिनों में मान्यता मिली थी, वहीं लेटेस्ट 10 हजार स्टार्टअप केवल 156 दिनों में खड़े हो गए। यानी प्रति दिन 80 से अधिक स्टार्टअप्स को मान्यता मिल रही है जो दुनिया में सबसे अधिक है। कुल मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स में से 12% आईटी सर्विसेज में, 9% हेल्थकेयर और लाइफ साइंसेज में, 7% शिक्षा में, 5% व्यावसायिक और वाणिज्यिक सेवाओं में और 5% कृषि क्षेत्र में हैं।

ईज माई ट्रिप डॉट कॉम के सीटीओ नेमिष सिन्हा कहते हैं, “कई स्टॉर्टअप्स ने शानदार प्रदर्शन किया है। अनेक यूनीकॉर्न बन चुके हैं। ये रोजगार की संभावनाएं पैदा करने के साथ देश की तरक्की में बड़ा योगदान कर रहे हैं।” वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार मई में भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 100 को पार कर गई थी। नेस्कॉम का आकलन है कि 2025 तक देश में 200 यूनिकॉर्न होंगे। टेलियो लैब्स के सीईओ अमित सिंह कहते हैं कि मेक इन इंडिया के तहत रोजाना नए इनोवेशन हो रहे हैं जो हमारी पहचान दुनिया में सशक्त कर रहे हैं। हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस दौरान में हम डिजिटल डिवाइड की खाई को पूरी तरह पाटने के काफी करीब पहुंच चुके हैं। कैलाश सत्यार्थी के शब्दों में भारत भले ही 100 परेशानियों का देश हो, लेकि न ये करोड़ों हल का भी देश है।

अगले 10 वर्षों में विकास का मॉडल

1. ग्लोबल डिलीवरी मॉडल : भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बिजनेस पर फोकस करते हुए ग्लोबल डिलीवरी सेंटर बढ़ा रही हैं। टीसीएस ने पिछले साल यूके में 1500 टेक्नोलॉजी कर्मचारियों की नियुक्ति करने की बात कही थी। इसे देखते हुए भारतीय सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट इंडस्ट्री के 2025 तक 100 अरब डॉलर का हो जाने का अनुमान है।

2. डाटा एनोटेशन बाजार और लेबलिंग हब : वर्ष 2020 में भारत का डाटा एनोटेशन मार्केट 25 करोड़ डॉलर का था। आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस की बढ़ती मांग के कारण इस बाजार के 2030 तक 7 अरब डॉलर का होने की उम्मीद है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन के अनुसार क्लाउड कंप्यूटिंग, सोशल मीडिया और डाटा एनालिटिक्स आईटी कंपनियों को ग्रोथ के नए अवसर प्रदान कर रही हैं।

3. विदेशी निवेश आकर्षित करने वाला सेक्टर : कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर सेक्टर ने भारत में एफडीआई का फ्लो बढ़ाया है। आईबीईएफ की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2000 और दिसंबर 2021 तक इस इंडस्ट्री में 81.31 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। मांग को देखते हुए आगे भी इस सेक्टर में विदेशी निवेश का फ्लो बने रहने की उम्मीद है।

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4. मॉडर्न क्लाउड का डिप्लॉयमेंट : मई 2021 में आईबीएम ने आईआईटी खड़गपुर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु जैसे टॉप-11 शिक्षण संस्थानों के साथ करार किया। यह करार क्वांटम कंप्यूटिंग के क्षेत्र में ट्रेनिंग और रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए है। 2021 में ही टीसीएस ने वेविन और इरिक्सन के साथ पार्टनरशिप की है। यह भारत में क्लाउड आधारित रिसर्च और डेवलपमेंट के लिहाज से की गई है।

भारतीय आईटी सेक्टर की चुनौतियां

सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी : राजेश  झेले का मानना है कि भारत में अगली बड़ी क्रांति सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में होगी। सेमीकंडक्टर इंटीग्रेटेड चिप सिलिकॉन से बनाई जाती है जो रेत से मिलता है। उनका कहना है कि अगर हम चिप बनाने में आगे बढ़े और चिप डिजाइन से लेकर फेब्रिकेशन की क्षमता भारत के पास आ जाती है, तो यह एक बड़ा सपना पूरा होने जैसा होगा।

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डिजिटल ट्रस्ट मजबूत करना जरूरी

ईज माई ट्रिप के सीटीओ नेमिष सिन्हा मानते हैं कि डाटा समय की मांग है। इसमें संभावनाएं बढ़ी हैं। आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस में भी भारत पर काफी काम हो रहा है। सिन्हा के अनुसार डिजिटल ट्रस्ट को मजबूत करना होगा। लोगों का भरोसा जीतना किसी भी इंडस्ट्री के लिए सबसे जरूरी होता है। इस इंडस्ट्री पर लोगों की निर्भरता अधिक है, ऐसे में जिम्मेदारी भी अधिक बन जाती है।

पर्सनलाइज्ड एक्सपीरियंस की चुनौती

नेमिष बताते हैं कि आज के दौर में यूजर के लिए पर्सनलाइज्ड एक्सपीरियंस एक बड़ी चुनौती है। हमारे पास इंटरनेट यूजर का बहुत बड़ा आधार है। सभी कंपनियां इस पर अपने तरीके से काम कर रही हैं। इस व्यवस्था को लगातार बेहतर और प्रक्रियागत बनाने की जरूरत है।

साइबर हमले से सुरक्षा

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि आजादी के समय भारत में आईटी का नामोनिशान नहीं था। दुनिया में पश्चिमी देशों में काफी काम हो रहा था। 80 के दशक में भारत में काम शुरू हुआ। डॉटकॉम बूम के बाद भारत ने तेजी पकड़ी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2023 में हम चीन की आबादी से ज्यादा हो जाएंगे। हम दुनिया की सबसे बड़ी ई कॉमर्स मार्केट होंगे। कोविड एक तरह से अभिशाप था पर उसने आईटी को काफी बढ़ाया। देश के लोग बड़ी तेजी से डिजिटल से जुड़े। डिजिटल गर्वेनेंस को लेकर सरकार की नीतियां भी काफी सकारात्मक है। आने वाले कुछ सालों में आईटी के क्षेत्र में काफी तेजी से बढ़ने वाला राष्ट्र होगा। आधुनिक तकनीक पर काफी काम हो रहा है। भारत स्वतंत्रता के 100 साल पूरे करेगा उस समय तक भारत विकसित देश बन चुका होगा। साथ ही इसमें आईटी सेक्टर की बड़ी भूमिका होगी।

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे ने बताया कि 2020 में भारत में साइबर अटैक के 13 लाख मामले आए। यानी हम रोजाना करीब साढ़े तीन हजार और हर घंटे औसतन 150 साइबर हमलों का सामना करते हैं। आपदा के समय हर तरह से साइबर क्राइम में बढ़ोतरी हुई है। चाहे रिसर्च लैब हो या कॉरपोरेट हाउस, सबके सामने नए तरह के रैनसमवेयर आये हैं। ऐसे में साइबर सुरक्षा को मजबूत करने की चुनौती है।