सुरिंदर खोसला, किला लाल सिंह (गुरदासपुर)। भारत-पाक सीमा पर बसे डेरा बाबा नानक में चार मार्च से वार्षिक चोला साहिब के पवित्र मेले को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इसमें पंजाब व भारत से ही नहीं, देश-विदेश से भी काफी संख्या में संगत मेले में पहुंच चोला साहिब के दर्शन दीदार कर अपनेआप को सौभाग्यशाली महसूस करती है।
इतिहासकारों के मुताबिक श्री गुरु नानक देव जी जब भाई मरदाना के साथ मक्का की यात्रा के दौरान उस वक्त इस्लामी तालीम के केंद्र बगदाद पहुंचे, वहां पर रह रहे पीर, मौलवी, राफिक, विद्वान अपने अहंकारवश खुद से बड़ा किसी को भी ज्ञानी व विद्वान नहीं समझते थे। वहां जब श्री गुरु नानक देव जी का इनसे भगवान, धर्म व रूहानियत के बारे में विचार-विमर्श हुआ तो सभी गुरु नानक देव जी से इतने प्रभावित हुए कि वे गुरु जी को खुदाई रहबर मानकर उनका बेहद मान सम्मान करने लगे।
श्री हरिमंदिर साहिब जी की सेवा करते बलख बुखारे के एक सिख भाई तोता राम जी ने इतनी श्रद्धा भाव से सेवा की कि गुरु जी ने प्रसन्न होकर यह पवित्र चोला भाई तोता राम जी को सिखी के प्रचार करने के लिऐ सौंप दिया।अपने आखिरी समय भाई तोता राम जी ने उस पवित्र चोले की बेअदबी के डर से उसे एक पहाड़ी गुफा के अंदर छिपाकर उस गुफा के आगे एक पत्थर रख दिया। समय गुजरता गया और श्री गुरु नानक देव जी के बेदी वंश की नौवीं पीढ़ी के बाबा काबली मल्ल जी को सपने में गुरु जी ने दर्शन दे इस पवित्र चोले को गुफा के भीतर से लाने का संदेश दिया।
बाबा काबली मल्ल जी गुरु जी के आदेश पर आखिर उस गुफा के द्वार पर पहुंच गए, जहां गुफा में चोला साहिब रखा हुआ था। जब उन्होंने गुफा के द्वार के आगे पत्थर हटाने की चेष्टा की, मगर वे असफल रहे। इस पर बाबा जी ने हौसला ना छोड़ा और बाबा जी जपुजी साहिब का पाठ करने लगे। पाठ करके अरदास करने के पश्चात जब जल के छींटे उस पत्थर पर मारे तो गुरु जी की अपार कृपा से वह पत्थर खुद ही वहां से हट गया।