नई दिल्ली आए रूसी विदेश मंत्री का यह कहना बेहद महत्वपूर्ण है कि भारत रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता कर सकता है। नि:संदेह भारत मध्यस्थ की भूमिका तभी निभा सकता है, जब रूस के साथ यूक्रेन भी इसके लिए सहमत हो। फिलहाल यह कहना कठिन है कि यूक्रेन भारत की मध्यस्थता चाहेगा या नहीं, लेकिन भारतीय नेतृत्व को इसकी संभावनाएं तो टटोलनी ही चाहिए, क्योंकि अभी तक इजरायल, तुर्की आदि ने इस दिशा में जो प्रयास किए हैं, वे नाकाम होते ही दिखे हैं।
रूस और यूक्रेन को सुलह की राह पर लाना एक कठिन काम है, लेकिन यदि भारत को मध्यस्थ बनने का अवसर मिले तो उसे हिचकना नहीं चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के रवैये से यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि उनकी दिलचस्पी युद्ध रोकने में कम, रूस के खिलाफ माहौल बनाने में अधिक है। अमेरिका रूस को खलनायक साबित करने के साथ ही इस कोशिश में भी जुटा है कि भारत सरीखे जो देश यूक्रेन संकट को लेकर तटस्थ रवैया अपनाए हुए हैं, वे उसके पाले में खड़े हों।