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भारत से उड़ते जा रहे भारतीय यूनिकार्न, चौतरफा हो रहा नुकसान;


भारत को अपने स्टार्टअप्स पर देश के सकल घरेलू उत्पाद में अहम योगदान देने के लिए गर्व है। हमारे यूनिकार्न (एक अरब डालर से अधिक पूंजी वाले स्टार्टअप्स) हमारे प्रतिस्पर्धा की ईष्र्या का कारण हो सकते हैं, लेकिन यह जानकर हमारी खुशी कम ही रह जाती है कि उनमें से कई अब भारतीय नहीं रहे। इनमें से अधिकांश स्टार्टअप्स हमसे दूर हो गए हैं। अर्थात फ्लिप हो चुके हैं। जैसे-दो भारतीय लड़कों ने फ्लिपकार्ट बनाया, जिसका बाजार मूल्य 20 बिलियन डालर के बराबर हो गया। पहले फ्लिपकार्ट के प्रमोटर भारत से दूर हुए और अपनी कंपनी को सिंगापुर में पंजीकृत कर लिया। बाद में कंपनियों के समूह को वालमार्ट को बेच दिया।

क्या होती है फ्लिपिंग : यहां फ्लिपिंग का मतलब एक लेनदेन है, जहां एक भारतीय कंपनी एक विदेशी क्षेत्रधिकार में एक अन्य कंपनी को पंजीकृत करती है, जिसे बाद में भारत में सहायक कंपनी की होल्डिंग कंपनी बना दी जाती है। भारतीय कंपनियों के लिए सबसे अनुकूल विदेशी क्षेत्रधिकार सिंगापुर, अमेरिका और ब्रिटेन हैं। ‘फ्लिप’ का एक तरीका शेयर स्वैप है। इसके तहत भारतीय प्रमोटरों द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय होल्डिंग कंपनी को शामिल करने के बाद घरेलू कंपनी के शेयरधारकों द्वारा रखे गए शेयरों की विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरों के साथ अदला-बदली की जाती है। परिणामस्वरूप घरेलू कंपनी के शेयरधारक विदेशी होल्डिंग कंपनी के शेयरधारक बन जाते हैं। गौरतलब है कि सैकड़ों भारतीय यूनिकार्न या तो फ्लिप हो गए हैं या विदेशी हो गए हैं। हालांकि उनमें से अधिकांश का परिचालन यानी कार्य क्षेत्र और प्राथमिक बाजार भी भारत में ही है। लगभग सभी ने भारतीय संसाधनों (मानव, पूंजीगत संपत्ति, सरकारी सहायता आदि) का उपयोग करके अपनी बौद्धिक संपत्ति (आइपी) विकसित की है।