सम्पादकीय

मस्तिष्कीय संरचना


श्रीराम शर्मा

दुनिया वैसी है नहीं जैसी कि हम उसे देखते हैं। सच तो यह है कि संसारके समस्त पदार्थ कुछ विशेष प्रकारके परमाणुओंकी भागती-दौड़ती हलचल मात्र है। हमारी आंखोंकी संरचना और मस्तिष्कका क्रियाकलाप जिस स्तरका होता है, उसी प्रकारकी वस्तुओंकी अनुभूति होती है। हमारी आंखें जैसा कुछ देखती हैं, आवश्यक नहीं दूसरोंको भी वैसा ही दिखें। दृष्टिके मंद, तीव्र, रुग्ण, निरोग होनेकी दशामें दृश्य बदल जाते हैं। एकको सामनेका दृश्य एक प्रकारका दिखता है तो दूसरेको दूसरी तरहका। बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती, हर मनुष्यके स्रावोंमें कुछ न कुछ रासायनिक अंतर रहता है जिसके कारण एक ही खाद्य पदार्थका स्वाद हर व्यक्तिको दूसरेकी अपेक्षा कुछ न कुछ भिन्न प्रकारका अनुभव होता है। यूं नमक, शक्कर आदिका स्वाद मोटे रूपसे खारी या मीठा कहा जा सकता है परन्तु निरीक्षण किया जाय तो प्रतीत होगा कि इस खारीपन और मिठासके इतने भेद-प्रभेद हैं जितने कि मनुष्य। किसीका स्वाद किसीसे पूर्णतया नहीं मिलता, कुछ न कुछ भिन्नता रहती है। यही बात आंखोंके संबंधमें है आंखोंकी संरचना और मस्तिष्ककी बनावटमें जो अंतर पाया जाता है उसीके कारण मनुष्य दूसरेकी तुलनामें कुछ न कुछ भिन्नताके साथ ही वस्तुओं तथा घटनाओंको देखता है। मनुष्यों और पक्षियोंकी आंखोंकी सूक्ष्म बनावटको देखता है। मस्तिष्कीय संरचनामें काफी अंतर है इसलिए वे वस्तुओंको उसी तरह नहीं देखते जैसे कि हम देखते हैं। उन्हें हमारी अपेक्षा भिन्न तरहके रंग दिखाई पड़ते हैं। रूसकी पशु प्रयोगशालाने बताया है कि बैलको लाल रंग नहीं दिखता, उनके लिए सफेद और लाल रंग एक ही स्तरके होते हैं। इसी तरह मधुमक्खियोंको भी लाल और सफेद रंगका अंतर विदित नहीं होता। पक्षियोंको लाल, नीला, पीला और हरा यह चार रंग ही दिखते हैं। हमारी तरह वह न तो सात रंग देखते हैं और न उनके भेद-उपभेदोंसे ही परिचित होते हैं। ठीक इसी प्रकार हरी घासकी हरीतिमा सबको एक ही स्तरकी दिखाई नहीं पड़ेगी। किंतु हमारी भाषाका अभी इतना विस्तार नहीं हुआ कि इस माध्यमसे हर व्यक्तिको जैसा सूक्ष्म अंतर उस हरे रंगके बीच दिखाई पड़ता है उसका विवरण बताया जा सके। यदि अंतर-प्रत्यंतरकी गहराईमें जाया जाय तो स्वाद और रंगके अंतर बढ़ते ही चले जायंगे और अंतत: यह मानना पड़ेगा कि जिस तरह हर मनुष्यकी आवाज, शकल और प्रकृतिमें अंतर होता है उसी प्रकार रंगोंकी अनुभूतिमें भी अंतर रहता है। स्वादके संबंधमें भी यही बात है। गंधमें भी यही अंतर रहेगा। सुनने और छूनेमें भी हर व्यक्तिको दूसरेसे भिन्न प्रकारका अनुभव होता है। यह भिन्नता बहुत ही सूक्ष्म स्तरकी होती है, परन्तु होती अवश्य है।