सम्पादकीय

चीनी सैनिकोंकी वापसी


पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियन्त्रण रेखाके नजदीक चीनके सैनिकोंकी वापसीकी कोशिशें तेज हो गयी हैं। उम्मीद है कि इसमें शीघ्र ही सफलता मिलेगी। दोनों देशोंके बीच तनाव समाप्त करनेके लिए सीमापर शान्ति अति आवश्यक है। दोनों देशोंके सैन्य कमाण्डरोंकी बैठकके बाद स्थिति साफ हो रही है कि हालात सामान्य बनानेके लिए अब चीनको अपने सैनिकोंकी वापसी करनी ही होगी। पूर्वी लद्दाखमें वास्तविक नियन्त्रण रेखापर देवसांग, हाट स्प्रिंग, गोगरा जैसे अग्रिम मोरचोंपर अभी जिस प्रकार चीनकी फौज जमी हुई थी उससे दोनों देशोंके बीच सम्बन्धोंमें कटुता स्वाभाविक थी। फिलहाल ताजा घटनाक्रमके मद्देनजर दोनों देशोंके बीच न सिर्फ शान्ति स्थापित होगा, बल्कि विकासकी राह भी बनेगी। हालांकि उपरोक्त मोरचोंपर भारतने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और चीन भी भारतकी शक्तिको समझ रहा है। देवसांग और दौलत बेग ओल्डीमें भारतने पन्द्रह हजार सैनिकोंकी जब तैनाती की तो चीनको यह समझते देर नहीं लगा कि यह १९६५ वाला नहीं, बल्कि नया भारत है जो दुश्मनके पर कतरनेको आतुर है। इसके बावजूद भारतने संयम बनाये रखा और आवश्यकता पडऩेपर ही जवाबी काररवाई की। हालांकि अब पैंगोंग झील इलाकेमें टकराव समाप्त हो गया है और दूसरे इलाकोंसे चीनी सैनिकोंकी वापसीको लेकर भारतने चीनपर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। भारतकी दृढ़ नीतिके आगे चीनको झुकना पड़ा है। हालांकि चीनपर भरोसा करना स्वयंपर प्रहार करना होगा। इसलिए निश्चय ही सम्पूर्ण क्षेत्रमें वास्तविक नियन्त्रण रेखापर भारतको अपनी सैन्य स्थिति अब भी मजबूत बनाये रखनेकी आवश्यकता है। दरअसल भारत द्वारा २००३ में तिब्बतको स्वायत्तशासी अंग स्वीकार कर लेनेके बाद कूटनीतिक स्तरपर दोनों देशोंके सम्बन्धोंके बीच जो बदलाव आया चीन उससे भी भागना चाहता है और तिब्बतसे लगे भारतीय लद्दाख क्षेत्रपर नजरें गड़ाये रहता है। इसकी वजह यह भी है कि लद्दाखका ही एक बहुत बड़ा भाग १९६२ से उसके कब्जेमें है जो ३८ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रका है। विस्तारवादी चीन सीमा रेखाके बारेमें अलग-अलग अवधारणाएं होनेका बहाना बना कर भारतीय क्षेत्रोंमें घुसनेका प्रयास करता रहता है। साथ ही दोनों देशोंके बीच स्पष्टï सीमांकनका न होना सीमा विवादका कारण तो है ही साथ ही चीनकी चालाकी और धोखेकी प्रवृत्तिने भी विवादों एवं संघर्षोंको जन्म दिया है। हालांकि भारतकी विवेकपूर्ण नीति एवं समझ-बूझ ही लद्दाख क्षेत्रमें हालिया विवादको सुलझानेमें सहायक रही। परन्तु चीन जिस प्रकार विस्तारवादी नीतिपर अपने कदम बढ़ा रहा है उससे विवेकपूर्ण कदमकी उम्मीद करना बेकार है। अत: चीनके साथ वार्ता भी उसीकी भाषामें होनी चाहिए। हालांकि अब चीन समझ चुका है कि भारत उसके किसी भी काररवाईका मुंहतोड़ जवाब देनेके लिए तैयार है इसलिए वह भी भारतसे किसी प्रकार सामनेसे टकरावको टालना ही बेहतर समझ रहा है।

सुरक्षाबलोंको कामयाबी

जम्मू-कश्मीरमें सुरक्षाबलोंने २४ घण्टेके अन्दर अपने साथीकी शहादतका बदला लेते हुए अल-बदरके तीन आतंकियोंको शुक्रवार तड़के कामपोरा (पुलवामा) में हुई भीषण मुठभेड़में मार गिराया। फिलहाल आतंकियोंको शरण देनेवालेको भी गिरफ्तार कर लिया गया है। इससे पहले आतंकियोंने पांच ग्रामीणोंको बंधक बनाया था जिससे वह ग्रामीणोंका सहारा लेकर फरार हो सके। परन्तु सुरक्षाबलोंने सूझबूझके साथ सभीको मुक्त करा लिया। पिछले कुछ समयसे जम्मू-कश्मीरमें आतंकी संघटनोंमें बेचैनी है क्योंकि सुरक्षाबलोंकी चौकसीसे बड़ा फर्क आया है। पहले जहां हमला करनेके बाद आतंकी संघटन बच निकलते थे वहीं, अब भारतीय सुरक्षा बलोंकी ओरसे जवाबी हमलेकी तीव्रताका सामना करना पड़ता है। हालांकि स्लीपर सेल अब भी वहां सक्रिय हैं परन्तु अब पूर्वकी स्थिति नहीं है। पुलवामा हमलेके बाद सीआरपीएफके चालीस जवानोंकी शहादतके बाद अब सुरक्षाबल किसी भी प्रकारका कोई मौका नहीं छोड़ रहे। चौकसी एवं निगरानीका दायरा बढ़ानेके साथ अब किसी भी आतंकी घटनाको अंजाम देनेके पहले सुरक्षाबल तेजीसे काररवाई करते हैं। सुरक्षाबलोंकी तत्परतासे आतंकियोंमें दहशत व्याप्त है। इसी क्रममें जब भाजपा नेताकी हत्या की गयी तो सुरक्षाबलोंने अविलम्ब काररवाई करते हुए आतंकियोंको मौतके घाट उतार दिया। इधर बीच नये तरीकेसे आतंकियोंने अपने पैर पसारने शुरू किये हैं। चूंकि अनुच्छेद ३७० की समाप्तिके बाद स्थानीय नागरिक भी अब आतंकियोंको पनाह देनेमें हिचकिचाते हैं इसलिए भी आतंकवादकी कमर टूट रही है। इतना तो तय है कि जम्मू-कश्मीर और समूचे सीमाई क्षेत्रमें भारतीय सुरक्षाबलोंकी चौकसी और निगरानीका जो स्तर है, उसमें आतंकी संघटनोंका पांव जमाना सम्भव नहीं है। परन्तु भारतीय सुरक्षाबलोंके सामने अब भी आतंकी संघटनोंकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। लेकिन अत्यधिक चौकसीने आतंकवादियोंके हौसलोंको अवश्य ही पस्त किया है।