सम्पादकीय

तेलसे अर्जित धनका सदुपयोग हो


डा. भरत झुनझुनवाला

उम्मीद थी कि भारतमें पेट्रोलका दाम लगभग ७० से ७५ रूपये प्रति लीटर ही रहेगा। लेकिन अपने देशमें पेट्रोलका दाम ९० से सौ रूपये प्रति लीटर हो गया है जो कि प्रथम दृष्टया अनुचित दिखता हैण्। वर्तमानमें तेलके ऊंचे दामको समझनेके लिए कोविडके प्रभावको समझना होगा। हुआ यह है कि बीते वर्ष जून माहमें कोविड संकटके कारण तमाम देशोंने लाकडाउन लगा दिये थे जिससे यातायात और उद्योग ठप्प हो गये थे और विश्व बाजारमें कच्चे तेलकी मांग काफी गिर गयी थी। यहांतक कि कई तेल कम्पनियोंने जिस तेलको जहाड़ोंपर भर रखा था उसे वह शून्य मूल्यपर भी बेचनेको तैयार थे, ताकि जहाजको खाली किया जा सके और जहाजको खड़े रखनेका डैमरेज न पड़े। तब अपने देशमें भी आयातित कच्चे मालका दाम कुछ कम था। बताते चलें कि कुछ तेलका आयात तत्काल बाजार भावपर किया जाता है लेकिन अधिकतर तेलका आयात लम्बी अवधिके समझौतोंके अंतर्गत किया जाता है जिनके अंतर्गत आयत किये गये तेलका मूल्य तात्कालिक बाजार भावसे प्रभावित नहीं होता है। इसलिए यदि बाजारमें तेलका भाव शून्य हो गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि शून्य मूल्यपर भारत मनचाहे मात्राका तेल खरीद सके।

यदि भारत कुछ तेल शून्य मूल्यपर खरीदता भी है तो भी लम्बी अवधिके समझौतोंके अंतर्गत पूर्वमें निर्धारित मूल्योंपर तेलको खरीदते रहना पड़ेगा। फिर भी बीते वर्ष कोविड संकटके समय भारत द्वारा खरीदे गये तेलके मूल्यमें गिरावट आयी थी। तब भारत सरकारने तेलपर वसूल किये जानेवाले एक्साइज डयूटीको बढ़ा दिया। जैसे यदि कच्चे तेलका दाम दस रुपये कम हुआ तो सरकारने उसी दस रुपयेका तेलपर टैक्सको बढ़ा दिया। फलस्वरूप जब विश्व बजारमें तेलके दाम गिर रहे ठेस तो भारतमें तेलके दाममें गिरावट नहीं आयी और तेलका दाम पूर्ववत ७० से ७५ रूपये प्रति लीटरका बना रहा। लेकिन बीते तीन माहमें विश्व बाजारमें तेलके दाम पुन: बढऩे लगे और आज यह पुराने ६५ रूपये प्रति बैरलपर आ गये हैं। लेकिन सरकारने इस अवधिमें तेलपर वसूल किये जानेवाले टैक्समें कटौती नहीं की और टैक्सकी उंची दर कि बरकरार रखा जिस कारण आज अपने देशमें पेट्रोलका दाम ९० से सौ रुपया प्रति लीटर हो गया है। कहा जा सकता है कि विश्व बाजारमें तेलके दाममें गिरावटका सरकारने टैक्स बढऩेके अवसरके रूपमें उपयोग किया है।

तेलके ऊंचे दामके कई लाभ हैं जिनपर ध्यान देना चाहिए। फल यह कि तेलके ऊंचे दामका प्रभाव मुख्यत: ऊपरी वर्गपर पड़ता है। अपने देशमें तेलके मूल्यका ऊपरी और कमजोर वर्गोंपर अलग-अलग प्रभावके आंकड़े मुझे उपलब्ध नहीं हुए हैं। लेकिन अफ्रीकाके माली नामक देशके आंकड़ोंके अनुसार यदि तेलके मूल्यकी वृद्धिसे २० प्रतिशत ऊपरी वर्गको एक रुपया अधिक अदा करना पड़ता है तो निचले २० प्रतिशत वर्गको केवल छह पैसे। यानी ऊपरी वर्गपर तेलके बढ़े हुए मूल्योंका सोलह गुना प्रभाव अधिक पड़ता है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि तेलका प्रभाव आम आदमीपर पड़ता है, बल्कि यह कहना उचित होगा कि तेलके ऊंचे मूल्योंका विरोध करनेके लिए उपरी वर्ग द्वारा निचले वर्गको ढालके रूपमें उपयोग किया जा रहा है। तेलके ऊंचे मूल्यका दूसरा लाभ यह है कि देशमें तेलकी खपत कम होगी। एक अध्ययनमें पाया गया कि तेलके दाममें यदि दस प्रतिशतकी वृद्धि होती है तो खपतमें ०.४ प्रतिशतकी ही मामूली गिरावट आती है। यद्यपि खपतमें यह गिरावट कम ही है फिर भी इसे नजन्दाज नहीं किया जा सकता है। लम्बे समयमें यह गिरावट अधिक होगी क्योंकि लोगोंके लिए अपने घरोंपर सोलर पैनल लगाना लाभप्रद हो जायेगा। तेलकी खपत कम होनेसे हमारे आयात कम होंगे और हमारी आर्थिक सम्प्रभुता सुरक्षित रहेगी। ज्ञात हो कि अपने देशमें खपत किये गये तेलमें ८५ प्रतिशत तेलका आयात होता है। इसलिए हम यदि आयातित तेलकी खपत कम करते हैं तो हमें आयात भी कम करने होंगे, हम दूसरे देशोंपर परावलंबित नही होंगे।

तेलके ऊंचे मूल्योंका तीसरा लाभ पर्यावरणका है। खपत कम होनेसे तेलसे उत्सर्जित कार्बनकी मात्रा कम होगी जिससे धरतीके तापमानमें वृद्धि कम होगी और अपने देश समेत सम्पूर्ण विश्वमें बाढ़ और सूखे जैसी आपदाएं कम होंगी। चौथा और संभवत: प्रमुख लाभ यह है कि कोविड संकटके दौरान सरकारका वित्तीय घाटा बहुत बढ़ गया है इसलिए सरकारको जनतापर टैक्स लगाकर इस घाटेकी पूर्ति तो करनी ही पड़ेगी। प्रश्न सिर्फ यह बचता है कि सरकार तेलपर टैक्स लगाकर अपने घाटेकी भरपाई करेगी या फिर कपड़े और कागजपर लगाकर। मैं समझता हूं कि कपड़े और कागज जैसी आवश्यक एवं उपयोगी वस्तुओंके स्थानपर तेलपर अधिक टैक्स वसूल करना ही उचित होगा। विशेषकर इसलिए कि तेलपर टैक्स वसूल करनेका बोझ आम आदमीपर कम और समृद्ध वर्गपर ज्यादा पड़ेगा।

तेलके ऊंचे मूल्य सही हों तो भी सरकारकी आलोचना इस बिंदुपर की जानी चाहिए कि तेलके ऊंचे दामोंसे अर्जित रकमका उपयोग तेलकी खपतको और कम करनेके लिए किया जाय जैसे सौर ऊर्जाको बढ़ावा दिया जाय अथवा सार्वजनिक यातायात जैसे बसों, मेट्रो आदिमें सुधार किया जाय जिससे कि आनेवाले समयमें हम तेलकी खपतको और भी कम कर सकें। दूसरी आलोचना यह कि तेलसे अर्जित रकमका उपयोग सरकारी खपतको पोषित करनेके स्थानपर निवेशके लिए किया जाय तो तेलके ऊंचे दाम अन्तत: देशके लिए लाभकारी होंगे। यदि ऊंचे दामसे अर्जित रकमका उपयोग नये सरकारी दफ्तरोंको बनानेके लिए किया गया तो यह बढ़े हुए दाम हानिप्रद हो जायेंगे।