सम्पादकीय

महंगीपर काबू पाना आवश्यक


डा. गौरीशंकर राजहंस      

कोरोना महामारीके दौरान अर्थशास्त्रियोंका यह अनुमान था कि महामारीके समाप्त होते-होते अर्थव्यवस्थापर बहुत बुरा असर पड़ेगा। परन्तु इतना बुरा असर पड़ेगा इसकी किसीने कल्पना भी नहीं की थी। आजकी तारीखमें भारतकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी है और बड़ेसे बड़ा अर्थशास्त्री भी दावेके साथ यह नहीं कह सकता है कि महामारीके पहले भारतकी जो अर्थव्यवस्थाकी स्थिति थी वैसी स्थिति कब पटरीपर उसी हालतमें आयगी? थोक महंगी दर १२.९४ प्रतिशतके सर्वोच्च स्तरपर पहुंच गयी है। खुदरा महंगी दर भी रिजर्व बैंक द्वारा खींची गयी छह प्रतिशत दरकी लक्षमण रेखा पार कर गयी है। कोई दावेके साथ नहीं कह सकता है कि थोक महंगी और खुदरा महंगीकी दरोंमें कब और कितनी कमी आयगी?

निष्पक्ष रूपसे विचार करनेसे पता लगता है कि यह कमर तोड़ महंगी मुख्यत: पैट्रोल-डीजलकी लगातार बढ़ती हुई कीमतोंके कारण हुई है। जब पैट्रोल और डीजल, खासकर डीजलके माल वाहनोंके किरायेके दाम बढ़ जाते हैं और कोई भी माल वाहन मालिक अपनी जेबसे तो पैसे भरकर माल ढुलाई नहीं करेगा। इस कारण जिस सामानकी ढुलाई इन डीजल वालनोंसे होती है उनके किरायेके दाम रातोंरात बढ़ते रहते हैं। इस बीच खाने-पीनेके सामान और मैनुफैक्चरिंगके सामानपर महंगीकी जोर दार मार पड़ी है। यह अर्थशास्त्रका पुराना नियम है कि यदि खुदरा महंगी बढ़ेगी तो लोगों द्वारा उपभोक्ता वस्तुओंकी मांग घटेगी। ऐसी स्थितिमें किसी भी सरकारके लिए बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्थाको पुन: पटरीपर लाना असंभव हो जाता है। सच यह है कि भारतमें यही हो रहा है। आम जनता निराश और परेशान है। उसे समझमें नहीं आ रहा है कि यह महंगी उन्हेें कहां ले जाकर छोड़ेगी? जाने माने अर्थशास्त्रियोंका कहना है कि जिस तरहसे खुदरा महंगीकी दर बढ़ रही है उससे रोजमर्राकी उपभोक्ता वस्तुओंकी मांग कम होनेपर उत्पादन बुरी तरह प्रभावित होगा। शहरोंकी अपेक्षा गांवमें लोगों द्वारा उपभोक्ता वस्तुओंकी मांग ज्यादा कम हो रही है। उनके पास पैसेका बहुत अभाव है। इसीलिए वह रोजमर्राकी उपभोक्ता वस्तुओंको नहीं खरीद पा रहे है। इसीलिए इन वस्तुओंके दाम दिनों-दिन बढ़ते जा रहे है। कई विश्वस्त सर्वेमें पाया कि थोक महंगीकी दरमें ८० प्रतिशततककी वृद्धि होनेसे उत्पादन गतिविधियां प्रभावित हो गयी हैं। दुपहिया वाहन, कार तथा ट्रक आदिका उत्पादन, इन वाहनोंकी मांग नहीं होनेके कारण बुरी तरह गिर गया है और किसीको यह बात समझमें नहीं आ रही है कि इनकी मांग पहलेकी तरह कब होगी।

कोरोनाकी दूसरी लहरके कारण विकास दर बुरी तरह प्रभावित होगी, यह आशंका तो पहले ही की जा रही थी। परन्तु पिछले दो महीनेमें बेराजगारीकी दर बुरी तरह बढ़ गयी है। जो प्रवासी मजदूर शहरोंमें फैलनेवाले कोरोनाके डरसे अपने गांव चले गये थे वह भी डरके मारे अपने गांवसे वापस शहर नहीं लौटना चाहते। क्योंकि आये दिन टीवी चैनलोंपर समाचार आ रहे हैं कि कोरोनाकी तीसरी लहर शीघ्र आनेवाली है और ऐसा बताया जा रहा है कि यह तीसरी लहर पहलेकी कोरोना लहरोंसे बहुत अधिक घातक होगी। डरके मारे प्रवासी मजदूर वापस शहर लौटनेमें हिचकिचा रहे हैं। उधर गांव-देहातमें मनरेगाके अलावा रोजगारके साधन नहीं है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात आदि राज्योंके उद्यमी मजदूरोंको कई आकर्षण दे रहे हैं कि वह अब कामपर लौट आयें। परन्तु यह प्रवासी मजदूर अनिश्चयके माहौलसे डरे हुए हैं उनका मानना है कि जान है तो जहान है। इन मजदूरोंके अभावमें ज्यादातर कारखाने बन्द पड़े हैं।

उधर पेट्रोल और डीजलके दाम दिनों-दिन बढ़ते जा रहे हैं। खबर है कि गत छह सप्ताहमें पेट्रोल और डीजलके दाम २४ बार बढ़े और कोई निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता है कि इनकी कीमतोंका कहां जाकर बढऩा रुकेगा। यह डीजल और पेट्रोलके दाम तो व्यापारी बढ़ाते हैं और उनका कहना वाजिब भी है क्योंकि कच्चे तेलकी कीमतोंमें अंतरराष्ट्रीय स्तरपर वृद्धि हो रही है। फिर कोई भी राज्य सरकार पेट्रोल और डीजलपर टैक्स लगाना कम नहीं कर रही है। इधर खबर है कि दिल्ली जैसे शहरमें हजारों टन अनाज सड़ रहा है। कोई अनाजको उठानेवाला नहीं है। जिन व्यापारियोंके पास यह अनाज रखा है उनका कहना है कि यह अनाज प्रवासी मजदूरोंके लिए था जो अपने घर चले गये हैं, अब अनाजको लेनेवाला कोई नहीं है। ऐसी स्थितिमें अनाजकी जब भारी कमी है तो हजारों टन अनाजको सड़ते देखकर सरकारको कोई रास्ता अवश्य निकालना चाहिए। सस्ते दामोंमें इस अनाजको गरीब लोगोंमें बांट देना चाहिए। कुल मिलाकर स्थिति काफी उलझी हुई है और कोई निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता है कि इस कमर तोड़ महंगीसे कब मुक्ति मिलेगी? लोग भगवानके भरोसे बैठे हुए हैं और ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि इस महामारीका अन्त हो और इस बेलगाम महंगीसे देशको मुक्ति मिले।