सदानन्द शास्त्री
महामृत्युंजय मंत्रको लंबी उम्र और अच्छी सेहतका मंत्र कहते हैं। शास्त्रोंमें इसे महामंत्र कहा गया है। इस मंत्रके जपसे व्यक्ति निरोगी रहता है। महामृत्युंजय मंत्रकी उत्पत्तिके बारेमें पौराणिक कथा प्रचलित है। कथाके अनुसार, शिव भक्त ऋषि मृकण्डुने संतानप्राप्तिके लिए भगवान शिवकी कठोर तपस्या की। तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवान शिवने ऋषि मृकण्डुको इच्छानुसार संतान प्राप्त होनेका वर तो दिया परन्तु शिवजीने ऋषि मृकण्डुको बताया कि यह पुत्र अल्पायु होगा। यह सुनते ही ऋषि मृकण्डु विषादसे घिर गये। कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डुको पुत्र रत्नकी प्राप्ति हुई। ऋषियोंने बताया कि इस संतानकी उम्र केवल १६ साल ही होगी। ऋषि मृकण्डु दुखी हो गये। यह देख जब उनकी पत्नीने दु:खका कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बतायी। तब उनकी पत्नीने कहा कि यदि शिवजीकी कृपा होगी तो यह विधान भी वह टाल देंगे। ऋषिने अपने पुत्रका नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया। मार्कण्डेय शिव भक्तिमें लीन रहते। जब समय निकट आया तो ऋषि मृकण्डुने पुत्रकी अल्पायुकी बात पुत्र मार्कण्डेयको बतायी। साथ ही उन्होंने यह दिलासा भी दिया कि यदि शिवजी चाहेंगें तो इसे टाल देंगें। माता-पिताके दु:खको दूर करनेके लिए मार्कण्डेयने शिव जीसे दीर्घायुका वरदान पानेके लिए शिवजी आराधना शुरू कर दी। मार्कण्डेयजीने दीर्घायुका वरदानकी प्राप्ति हेतु शिवजीकी आराधनाके लिए महामृत्युंजय मंत्रकी रचना की और शिव मंदिरमें बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे। समय पूरा होनेपर मार्कण्डेयके प्राण लेनेके लिए यमदूत आये परंतु उन्हें शिवकी तपस्यामें लीन देखकर वह यमराजके पास वापस लौट आये। पूरी बात बतायी। तब मार्कण्डेयके प्राण लेनेके लिए स्वयं साक्षात यमराज आये। यमराजने जब अपना पाश जब मार्कण्डेयपर डाला तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंगसे लिपट गये। ऐसेमें पाश गलतीसे शिवलिंगपर जा गिरा। यमराजकी आक्रामकतापर शिवजी बहुत क्रोधित हुए और यमराजसे रक्षाके लिए भगवान शिव प्रकट हुए। इसपर यमराजने विधिके नियमकी याद दिलायी। तब शिवजीने मार्कण्डेयको दीर्घायुका वरदान देकर विधान ही बदल दिया। साथ ही यह आशीर्वाद भी दिया कि जो कोई भी इस मंत्रका नियमित जाप करेगा वह कभी अकाल मृत्युको प्राप्त नहीं होगा।