सम्पादकीय

नया श्रम कानून लायेगी सरकार


 डा. भरत झुनझुनवाला 

श्रमको रोजगार देनेकी मूल समस्याओंका वर्तमान लेबर कोडमें हल दिखता नहीं है। लेबर कोडमें कुछ प्रावधान श्रमिकोंके पक्षमें है जैसे अल्पकालीन श्रमिकोंको वे सभी सुविधाएं उपलब्ध करानेका प्रावधान किया गया है जो कि स्थायी श्रमिकोंको उपलब्ध हैं। दूसरी तरफ उद्योगोंको बंद करनेके लिए पूर्वमें सौ श्रमिकोंसे अधिकवाले कारखानोंको सरकारसे अनुमति लेनी पड़ती थी अब इस सीमाको बढ़कर तीन सौ श्रमिक कर दिया गया है। यानी सौसे तीन सौ श्रमिकोंवाले उद्योग अब बिना सरकारकी अनुमतिके कारखानोंको बंद कर सकेंगे अथवा श्रमिकोंकी छटनी कर सकेंगे। यद्यपि ये प्रावधान श्रमिकोंको सहूलियत देनेमें सहायक और सही दिशामें है लेकिन इनसे रोजगार उत्पन्न करनेकी मूल समस्याका निवारण होता नहीं दिख रहा है।

उद्यमी निवेश करता है तो उसे निर्णय लेना होता है कि किसी कार्यको करनेके लिए वह मशीनका उपयोग करेगा अथवा श्रमिक काण् जैसे डबलरोटी बनानेका कारखाना लगाना हो तो डबलरोटीको स्वचालित मशीनसे बनाया जाय अथवा पुरानी भट्टीमें। उद्यमीका उद्देश्य अपनी उत्पादन लागतको कम करना होता है। मशीन और श्रममें वह मशीनको चयन करेगा यदि मशीन सस्ती पड़ती है और श्रमिकका उपयोग तब करेगा यदि श्रमिक सस्ता पड़ता है जैसे सब्जी मंडीमें आलूका दाम कम होनेपर लोग आलू ज्यादा खरीदते हैं और आलूका दाम अधिक होनेपर टमाटर या अन्य सब्जी अधिक खरीदते हैं और यदि मंडीके विक्रेता आलूके दामको आपसी संघटन बनाकर ऊंचा कर दें जैसे तय कर लें कि आलूको ५० रुपये प्रति किलोकी दरसे कममें नहीं बेचेंगे तो खरीददारकी प्रवृत्ति बनेगी कि आलूके स्थानपर दूसरी सब्जीका उपयोग करे और आलू विक्रेताको नुकसान हो सकता है। इस प्रकार कृत्रिम रूपसे किसी भी वस्तुके दामको ऊंचा करनेसे उसकी मांग कम हो जाती है। यही बात श्रम बाजारपर लागू होती है। यदि कानूनके माध्यमसे श्रमके मूल्यको अधिक कर दिया जाय जैसा कि न्यूनतम कानून वेतनके अंतर्गत किया जाता है तो श्रमका दाम बढ़ जाता है और उद्यमीकी प्रवृत्ति होती है कि श्रमके स्थानपर मशीनका उपयोग अधिक करे। वर्तमान लेबर कोडमें न्यूनतम वेतन कानूनको संशोधित नहीं किया गया है इसलिए रोजगार उत्पन्न होनेमें यह व्यवधान जारी रहेगा। श्रमका दाम कम हो तो भी उद्यमी द्वारा श्रमका उपयोग करना अनिवार्य नहीं है। कम दामपर भी उद्यमीको तय करना पड़ता है कि वह मशीनका उपयोग करेगा या श्रमका। यदि श्रमिक कुशल है और निर्धारित समयमें अधिक उत्पादन करता है तो उद्यमीकी रुचि श्रमिकको रोजगार देनेकी होगी। अपने देशमें समस्या यह है कि श्रमिकोंको बिना कारण बताये बर्खास्त करनेकी उद्यमीको छूट नहीं है। यदि कोई श्रमिक अकुशल है अथवा काम कम करता है तो उससे काम लेना उद्यमीके लिए लोहेके चने चबाने जैसा हो जाता है। श्रमिकोंको अकसर बर्खास्त किये जानेका भय नहीं होता है। किसी उद्यमीने मुझे बतया कि जब वह अपने किसी अकुशल श्रमिकको कहता था कि यदि आपने काम कि रफ्तार नहीं बढ़ायी तो आपको बर्खास्त करना होगा तो श्रमिकका उत्तर था कि हां आप हमें बर्खास्त कर दीजिये, हम घरमें रहकर अपना काम करेंगे और लेबर कोर्टमें वाद दायर करेंगे, यदि हम जीत गये तो ठीक है वरना घरपर तो काम कर ही रहे थे। इस प्रकार श्रमिकोंसे काम लेना बहुत कठिन हो जाता है। यदि श्रमिक संघटित और आक्रामक हो जाते हैं तो उनसे काम लेना और अधिक कठिन हो जाता है। जैसे आजसे ३० वर्ष पूर्व मुंबईमें तमाम कपड़ा मिलें थी। दत्ता सामंतके नेतृत्वमें अनेक आन्दोलन हुए जिसका परिणाम हुआ कि यह सभी मिलें आज महाराष्ट्रसे हटकर गुजरातमें स्थापित हो गयीं। कारण कि मुंबईमें श्रमिकोंसे कार्य लेना अति दुष्कर हो गया था। कमोबेश यह बात पूरे देशपर लागू होती है। स्टेट बैंकके एक अध्ययनके अनुसार भारतमें एक श्रमिक औसतन ६४१४ अमेरिकी डालर प्रति वर्षका उत्पादन करता है जबकि चीनमें १६६९८ डालरका। उत्पादकतामें इस अंतरका एक कारण तो मशीन है जैसे यदि श्रमिक स्वचालित मशीनपर काम करता है तो वह एक दिनमें अधिक उत्पादन करता है। चीनमें बड़ी फैक्टरियोंमें बड़ी मशीनोंसे उत्पादन किया जाता है इसलिए श्रमकी उत्पादकता अधिक है। लेकिन साथ ही श्रमकी कुशलताका भी प्रभाव होता है। यदि श्रमिक कुशल है तो वह उत्पादन अधिक करेगा और उद्यमीकी उसको रोजगार देनेकी रुचि अधिक बनती है।

वर्तमान लेबर कोडमें न तो वेतन निर्धारित करनेका उद्यमीको अवसर दिया गया है और न ही श्रमिकको बर्खास्त करनेका। इसलिए श्रमका उपयोग अधिक करनेकी जो मूल जरूरतें थीं उनकी वर्तमान लेबर कोडमें अनदेखी की गयी है। मेरा अनुमान है कि आनेवाले समयमें उद्योगोंमें श्रमका उपयोग कम होता ही जायगा। इस दुरूह परिस्थतिमें सरकारको रोजगार बनानेकी दूसरी नीतियां लागू करनी चाहिए। अपने देशमें बड़ी कम्पनीके लिए ऊर्जा आडिट कराना जरूरी होता है जिससे कि शेयर धारकोंको पता लगे कि उनकी कम्पनीने ऊर्जाका कितना सही उपयोग किया। इसी प्रकार श्रम आडिटकी भी व्यवस्ता की जा सकती है जिससे कि श्रमका उपयोग करनेकी प्रवृत्ति बने। दूसरे, सरकारी ठेकोंमें व्यवस्था की जा सकती है कि अमुक कार्य श्रमिकों द्वारा कराये जायेंगे, न कि मशीन द्वारा। तीसरा, सभी उद्योगोंको श्रम और पूंजी सघन उद्योगोंमें बांटा जा सकता है और पूंजी सघन उद्योगोंपर टैक्सकी दर बढ़ाकर श्रम सघन उद्योगोंपर टैक्सकी दर घटायी जा सकता है। ऐसा करनेसे कम टैक्सकी दरके लालचमें उद्योगोंकी रुचि बनेगी कि वह श्रमका अधिक उपयोग करें। रोजगार सृजनमें वर्तमान श्रम कोड एवं सरकारी नीतियां प्रभावी नहीं हैं।