सम्पादकीय

होलीकी उमंगमें गहराती मादकता


हृदयनारायण दीक्षित

होली जन-गण-मनका निरूद्देश्य खेल है। इसका कोई सुव्यवस्थित कर्मकाण्ड नहीं है। प्रकृति अपने उद्भवके समयसे उत्सवधर्मा है। सूर्य आनन्ददाता है। वह उगते समय ऊषा सुंदरी होते हैं। चन्द्रका उगना घटना और घटते-घटते अमावस्या हो जाना प्राकृतिक खेल है। चन्द्रका १५ दिनतक बड़ा होते जाना और पूर्णिमा होना है। वर्षा हेमंत, शरद् शिशिर और ग्रीष्म भी ऐसे ही हैं। प्रकृति सुव्यवस्थित संविधान है। प्रकृति भारतमें माघ मासके शुक्ल पक्षकी पंचमीसे नवयौवना होने लगती है। ऋतुराज बसंत आते हैं। प्रकृतिके सभी रूप रंगोंसे भर जाते हैं। प्रकृति रंग-तरंगसे भर जाती है। इस रंग-तरंगमें प्रकृतिके गाल लाल हो जाते हैं। वह हंसती हुई नृत्य करती है। प्रकृति गंध आपूरित होती है। मनुष्य मदन गंधसे लहालोट होते हैं। ऐसेमें मन बिना गाये नहीं मानता। जो नहीं गा सकते उनके मन भी गीत गायनसे भर जाते हैं। नाचता भी है, भावप्रवण मन। प्रकृति रंग रसिया है। इसकी सुन्दर कायामें सात रंग हैं। वर्षाके समय बादलोंको पार करते हुए प्रकाश किरणें अपने मूलभूत सात रंगोंमें विभाजित हो जाती है। लोक इसे इन्द्र धनुष कहता है। प्रकृतिमें सात रंग हैं तो ध्वनिमें षडज़, ऋषभ, गांधार, धैवत, पंचम, निषाद आदि सात स्वर या सुर। आकाश मंडलकी तारावलीमें सात ऋषि भी माने जाते हैं। इसी तरह सात दिन हैं। सात ग्रह हैं। राहु और केतु छायाग्रह हैं। होलीमें स्वर, रंग आदि सभी सात आयाम एक साथ खिलते हैं। रूप, रस गंध एक साथ। रूपवती राधा और बांसुरीसे सात स्वर निकालनेवाले कान्हा साथ-साथ। भौतिक और आध्यात्मिक मिलन पर्व है होली। अध्यात्म नाचता है। शीतकी विदाई ग्रीष्मका आगमन। शीतका मन होली खेलकर ही जाना चाहता है। ग्रीष्म होलीके उत्सवोंका कारण ठिठका हुआ है। वायुमें गंधका आपूरण है। आमके पेड़ मंजरियोंसे लद गये हैं। होलीमें सबकी उपस्थित है। दिक्ï और कालकी प्रीति शाश्वत है। यह प्रीति होलीकी उमंगमें गहराती है, लेकिन गलमिलोवल संभव नहीं। कोरोनामें दो गजकी दूरीकी मर्यादा है। पहले चेहरेपर पुते रंगसे भाभी जीको पहचानना मुश्किल था। अब मुंहपर मास्क है। पहचान और मुश्किल है। देवर-भाभीका रिश्ता हंसी-ठिठोलीसे भरा-पूरा था। अब ‘भाभी जी घरपर’ हैं। औद्योगिक सभ्यताने होलीका आनन्द घटाया है।

आनलाइन खरीददारी, आनलाइन भुगतान। आनलाइन रंगबाजी। आनलाइन हास्यास्पद हास्य। आनलाइन चैट। बिना परिचयकी प्रीति आनलाइन। आनलाइन हनी ट्रैप। आनलाइन गीत। आनलाइन मीत। मन आनलाइन है। दिल देना या लेना भी आनलाइन है। शुभकामनाएं भी आनलाइन हैं। आनलाइन होना सौभाग्य है। सोचता हूं कि मैं भी आनलाइन हो जाऊं। चैटिंग सीखूं लेकिन होलीके बारेमें हमसे ज्यादा जानकारी गूगलके पास है। मन करता है कि गूगलके मुंहपर होलीका रंग पोत दूं। तमाम सूचनाएं देनेवाला हमारा यार है गूगल। लेकिन उससे मिलन असंभव है। हम सबका मन होलियाना हो रहा है। पहले आतंकवादी बम रखते थे। अब पुलिसवालोंने मुम्बईमें बम रखे हैं। आतंकवादी लज्जित होंगे। पुलिसने उनका अधिकार छीन लिया है।

टीवीपर एक विज्ञापन आता है ‘मेरे पास भी घड़ी है।‘ घड़ी कपड़ा धोनेवाले एक पाउडरका नाम है। एक बड़े अभिनेता विज्ञापनी हंसीमें पाउडरका प्रचार करते हैं। एक अन्य विज्ञापनमें अच्छी मां काक्रोच मारनेकी विशेषज्ञ है। मांकी नजरसे काक्रोच नहीं बच सकता। रोगनिरोधक शक्ति या इम्युनिटी शब्द कोरोनाके हमलेके बाद प्रकट हुआ है। तमाम औषधियां प्रकट हो रही हैं। बूढ़ोंका स्वास्थ खतरेमें बताया जा रहा है। मैं वयोवृद्ध हूं। बूढ़ा नहीं हूं। वयोवृद्ध वृद्ध नहीं होते। वयका अर्थ उम्र है। वयोवृद्ध उम्रसे ही बूढे हैं। टीवी बुढ़ापेसे निबटनेके लिए तमाम तरहके उत्पाद बताता है। होलीकी प्रतिष्ठा नदारद है। होली सांस्कृतिक उत्सव है। भारतके मनका विलास और उल्लास है। यह प्रकृतिके सामगानका मंगल पर्व है। होलीमें लोक अपने छंद गढ़ता है। होली आनन्दका अतिरेक है। अतिरेक शास्त्रीय नहीं होता। होली लोक जीवनका मधु है।

होली प्राचीन भारतीय उत्सव है। कुछ भौतिकवादी विद्वानोंने इसे मित्र या यूनानसे आयातित बताया है। होली जैसा उत्सव बेशक मित्रमें था, यूनानमें भी था। ऐसे क्षेत्रोंसे भारतके व्यापारिक संबंध थे। ऋग्वेदमें पक्षियोंके उडऩेवाले आकाश मार्ग और समुद्री नौका मार्गके उल्लेख हैं। जैमिनिने होलाका पर्वका उल्लेख किया और लिखा कि होलाका सभी आर्योंका उत्सव था। आचार्य हेमाद्रिने भी होलीकी प्राचीनता दर्शायी है। वात्स्यायनके कामसूत्रमें यह बसंतोल्लास क्रीड़ा पर्व है। भविष्य पुराणके अनुसार कृष्णने युधिष्ठिरको बताया कि राजा रघुके पास ढोण्ढा राक्षसीकी शिकायत हुई, यह बच्चोंको तंग करती थी। रघुको ज्योतिषियोंने बताया कि शिव वरदानके अनुसार उसे खेलते बच्चोंसे डरना चाहिए। फाल्गुन पूर्णिमाको लोग-बच्चे हंसे, ताली बजायें तीन बार अग्निके चक्कर लगायें, पूजा करें। अश्लील गीत गायें। ऐसा ही किया गया, वह मर गयी। यहां राक्षसको मारनेके लिए अश्लीलताका मजेदार सदुपयोग है। मन भी कभी-कभी अश्लीलतासे भर जाता है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसे मनका रेचन जरूरी है।

पुराणोंमें इस उत्सवको कई नामोंसे पुकारा गया है कही फाल्गुनी, कहीं बासंती तो कहीं पटवास विलासिनी। होलीसे जुड़ी प्रहलादकी कथा भी है। उत्तर पूर्वमें दैत्यों दानवोंका क्षेत्र पूर्व ईरान, एशियाई, रूसका दक्षिणी पश्चिमी हिस्सा और गिलगिट तब इलावर्त था। बेबीलोनियाकी प्राचीन गुफाओंके भित्ति चित्रोंमें विष्णु हिरण्याक्षसे युद्धरत हैं। हिरण्याक्ष हिरण्याकश्यमका भाई था। प्रहलाद हिरण्याकश्यपका पुत्र था। वह पिताकी दैत्य परम्पराका विरोधी था। तब उसे आगमें झोंका गया, कथाके अनुसार वह बच गया। प्रहलाद भारतीय सत्याग्रही चेतनाका प्रतिनिधि था। ऐसी ही ढेर सारी कथाएं हैं। कथाएं समाज जोड़ती हैं। ऐसी कथाओंके सत्य सांस्कृतिक न्नेत होते हैं। होली मधु अनुभूतिका मधु प्रसाद है। प्रकृतिका यह मधु प्रसाद अखण्ड है। सूर्य उगते हैं, अस्त होते हैं। मास आते हैं, विदा होते हैं। सम्वत्सर, युग और मन्वन्तर आते हैं परन्तु मधु उत्सवोंका मधु कोष रीता नहीं होता। बसंत ऐसा ही मधुकोष लेकर हर साल आता है। होलीका यह मधु पूरे साल चलता है। होली भारतका मन मधुमय करती है। इसीलिए यह लोक-महोत्सव है। यहां राष्ट्रीय एकत्व है और सांस्कृतिक समरसता है। लोक आनन्दकी अनुभूति है। तमाम असम्भवोंका संगम है। होली सबकी प्रीति है, राष्ट्रकी रीति है। भारतकी उमंग और भारतके मनकी रंग तरंग है। होली विश्ववारा भारतीय संस्कृतिका मन आनन्द है। होली गीता गाता नाचता अध्यात्म है।