सम्पादकीय

राजनीतिका भयावह चेहरा


विष्णुगुप्त    

अब मुनव्वर राणाको भी डर लगने लगा। दरअसल मुनव्वर राणाने कहा है कि उत्तर प्रदेशमें योगी आदित्यनाथ सरकारकी वापसी होती है तो वह उत्तर प्रदेश छोड़कर चले जायंगे। इससे पहले शाहरुख खानको देशकी राजनीतिमें नरेंद्र मोदीकी सक्रियता मात्रसे डर लगने लगा था। नरेंद्र मोदीकी देशकी राजनीतिमें आहट मात्रसे शाहरुख खानको भारतमें अपना भविष्य जोखिम पूर्ण लगने लगा था। शाहरुख खानने तब बयान दिया था कि यदि नरेंद्र मोदी देशके प्रधान मंत्री बनते हैं तो वह देश और हिंदी फिल्मजगतको छोड़कर चले जायंगे। जबकि उस समय नरेंद्र मोदी या भाजपाके किसी भी बड़े या छोटे नेताने शाहरुख खानको डरानेवाले बयानतक नहीं दिये थे और न ही शाहरुख खानके फिल्मी व्यापार और अभिनयपर रोक लगानेकी कोशिश की थी। दूसरे अभिनेता आमिर खान है। आमिर खान और उनकी तत्कालीन बीवी किरण रावको भी भारतमें डर लगने लगा था। आमिर खानकी तत्कालीन बीवी किरण रावने अपने बयानमें मुनव्वर राणा और शाहरुख खानकी कहानी दोहराई थी। किरण राव तलाकके बाद भी अब भी भारतमें डर लगता है या नहीं, यह सब मालूम नहीं है।

बड़ा प्रश्न यह है कि जब ऐसे लोग अमान्य होने लगते हैं तो फिर इन्हें भारतमें क्यों नहीं डर लगता है, भारत इनके लिए खतरनाक देश क्यों नहीं होता है, इनके लिए भारत मुस्लिमविरोधी देश क्यों नहीं होता है, इन्हें हिंदू सांप्रदायिक क्यों नहीं लगते, इन्हें असहिष्णुता जैसे शब्द क्यों नहीं प्रिय होते। जब ये गुमनाम होते हैं, जब ये ख्यातिहीन होते हैं, जब ये संघर्ष करते रहते हैं तो फिर इन्हें संप्रदायिकताका डर नहीं होता है, इन्हें भारतमें ही अपना भविष्य दिखने लगता है, भारतकी संस्कृति और भारतकी धर्मनिरपेक्षतासे इन्हे प्यार होता है। यदि मुनव्वर राणाकी शायरीका हिंदू समर्थक नहीं होते, हिंदुओंकी विभिन्न श्रेणियोंमें मुनव्वर राणाकी शायरी स्वीकार नहीं होती, इन्हें मुस्लिम मानसिकतासे ग्रसित करार देकर खारिज कर दिया गया होता तो क्या यह इतनी बड़ी हस्ती होते। मुनव्वर राणाकी उत्तर प्रदेश छोडऩेके बयानको कोई सुधतक न लेता। इसी तरह शाहरुख खानकी कहानी है। शाहरुख खानकी ख्यातिमें हिंदुओंके योगदानको खारिज करना गलत है। शाहरुख खानकी फिल्में देखनेवाले भी सौमें ९० हिंदू हैं। यदि हिंदू शाहरुख खानकी फिल्में बायकाट कर देते तो क्या शाहरुख खानकी फिल्में हिट होती और शाहरुख इतनी बड़ी हस्ती बनते। कदापि नहीं है। आमिर खान सत्यमेव जयते सीरियलमें हिंदू संस्कृतिका अपमान और घृणा उत्पन्न करते हैं, हिंदू संस्कृतिमें उन्हें सिर्फ बुराइयां ही दिखती हैं उससे आमिर खानकी हिंदू विरोधी मानसिकताको कैसे खारिज किया जा सकता है। दहेज और तलाकको लेकर हिंदू धर्मकी आलोचना सत्यमेव जयते सीरियलमें करते हैं और हिंदू धर्ममें तलाकपर भी प्रवचन देते हैं। परन्तु खुद दो हिंदू पत्नियोंको तलाक दे देते हैं। तीन तलाकसे महिलाकी जिंदगीको बर्बाद कर देना, हलाला जैसी पीड़ा, त्रासदी, उत्पीडऩके खिलाफ बोलना नहीं, सत्यमेव जयते और फिल्मका विषय न बनाना क्या मुस्लिमपरस्त मानसिकताका परिचायक नहीं है। डरकी मानसिकतासे पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी पीडि़त है उन्हें भी भारतमें डर लगता है, मुसलमानोंके लिए भारत एक खतरनाक देश है परन्तु हामिद अंसारी जैसे लोग कश्मीरसे भगाये गये हिंदुओं, असममें आदिवासियोंकी जमीन बलपूर्वक कब्जा करनेवाले मुस्लिम घुसपैठिये, पश्चिम बंगालमें हिंदुओंका कत्लेआम पलायन,  मुसलमानोंकी आबादी बढ़ाओ आदिमें इन्हें कोई बुराई नजर नहीं आती हैं।

नरेंद्र मोदीकी सत्ताके सात साल हो गये, इस दौरान नरेंद्र मोदीकी सरकारने शाहरुख खान, आमिर खान, हामिद अंसारी और मुनव्वर राणापर कौन-सी उत्पीडऩ की है, कौन-सा बदला लिया है। ये लोग कहते हैं कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है परन्तु इस तथ्य क्यों दबा दिया जाता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश क्यों है। भारत धर्मनिरपेक्ष देश इसलिए है कि यहांपर बहुलता हिंदुओंकी है। जिस दिन हिंदुओंकी बहुलता नष्ट हुई, मुस्लिम जनसंख्या तीस प्रतिशतसे ऊपर हुई उस दिन भारत कभी भी धर्मनिरपेक्ष देश नहीं रहेगा। नरेंद्र मोदीके प्रधान मंत्री बननेके बादसे भारत छोड़ देनेकी घोषणा करना, भारतको खतरनाक देश बताना डर लगनेकी अफवाह उड़ाना, खतरनाक राजनीतिक प्रवृत्ति है। लक्ष्य राजनीति होती है। अपनी राजनीतिक ख्याति चमकानी होती है। इसे न तो भारतकी छविको बहुत ज्यादा नुकसान होता है और न ही मोदी सरकारपर कोई आफत विपत्ति आती है। बहुत बड़े अभियानों और लंछानोंके बावजूद नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधान मंत्री बननेमें सफल हुए। ऐसे आरोपोंसे मोदीकी छवि धूमिल नहीं होती। संदेश जाता है कि ऐसी मुस्लिमपरस्त हस्तियां मोदीको देखना नहीं चाहती, इसीलिए बेबुनियाद मनगढ़ंत और अफवाह  ग्रसित आरोप जड़ती हैं।