सम्पादकीय

संसदमें हंगामेसे नहीं बनेगी बात


राजेश माहेश्वरी 

संसदका मानसून सत्र सोमवारसे शुरू हो गया। सत्रका पहला दिन पूरी तरह हंगामेकी भेंट चढ़ गया। विपक्षने प्रधान मंत्रीको नये मंत्रिमंडलतकका परिचय भी नहीं कराने दिया। वहीं दूसरे दिन भी हंगामेसे शुरुआत हुई और सदनको स्थगित करना पड़ा। यह हालात तब हैं जब स्वयं प्रधान मंत्री जो सदनके नेता हैं, कह चुके हैं कि सदस्य तीखेसे तीखे सवाल पूछें, सरकार हर सवालका जवाब देगी। वहीं सत्रके दूसरे दिन लोकसभा स्पीकरने भी हंगामा कर रहे सदस्योंको कहा कि सरकार हर सवालका जवाब देनेको तैयार है। बावजूद इसके हंगामा कम नहीं हुआ और कार्यवाहीमें बाधा पैदा की गयी। विपक्ष संसदमें हंगामा करनेको शायद अपनी जीत मान रहा हो, लेकिन सचाई यह है कि विपक्षकी असली जीत संसदमें मुद्दे उठाने और बहस करनेमें है। कोरोना महामारीके समय संसदका मानसून सत्र चलना अपने आपमें बड़ी बात है। ऐसेमें विपक्षका यूं हंगामा करके संसदका बहुमूल्य समय खराब करना कहांकी समझदारी कहा जायगा। देखा जाय तो विपक्षके पास अपने सवालोंके जरिये सरकारको घेरनेके लिए मुद्दोंकी कमी नहीं है।

कोरोना महामारी, किसान आंदोलन, मंहगी, पेट्रोल-डीजलकी बढ़ती कीमतें, बढ़ती बेरोजगारी, कोरोनाकी तीसरी लहरकी आशंकाके बावजूद टीकाकरणका लक्ष्यसे पीछा रहना, राजद्रोह कानूनपर सर्वोच्च न्यायालयका कड़ा रुख और जम्मू-कश्मीरमें विधानसभा चुनाव आदि ऐसे विषय हैं जिनपर सरकारको रक्षात्मक किया जा सकता है। जैसे तमाम मुद्दे हैं, जिनपर सरकारसे तीखे सवाल पूछे जाने चाहिए। लेकिन विपक्ष तो अपनी जिम्मेदारीसे बचते हुए इधर-उधरके मुद्दोंपर शोरगुल कर असली मुद्दोंको उठानेसे न जाने क्यों बच रहा है। सत्रके पहले दिन फोन जासूसी मामलेका शोर खूब सुनायी दिया। हालांकि खबरें यही कहती हैं कि पेगाससके जरिये जासूसी करनेकी कोशिश की गयी और यह स्पष्टï नहीं कि इसमें सफलता मिली या नहीं, लेकिन विपक्ष अपनी सुविधाके लिए इसी निष्कर्षपर पहुंचा कि चुनिंदा लोगोंके मोबाइल फोनकी जानकारी हासिल की गयी अथवा उनकी बातें गोपनीय रूपसे सुनी गयीं। बेहतर हो कि इस मामलेको उछालनेवाले पहले इस बारेमें सुनिश्चित हो लें कि जासूसी की गयी या नहीं? इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसे मुद्दों मानूसन सत्रमें उठाकर सिर्फ राजनीति चमकायी जा सकती है, इससे देशकी जनताका भला नहीं किया जा सकता, यह विपक्षको समझना चाहिए। लेकिन राजनीति और एजेण्डेके तहत इसी मुद्देपर विपक्ष संसदका समय तो गंवा ही रहा है, वहीं जनहितके मुद्दोंको भी नहीं उठा रहा है। २०१४ में मोदी सरकार बननेके बादसे ये देखनेमें आया है कि विपक्ष या तो सदनको चलने नहीं देता या फिर विरोध स्वरूप उठकर बाहर चला जाता है। उसके ऐसा करनेसे सरकारको आसानी हो जाती है। इसलिए जितना भी समय मिले उसका वह चर्चाके लिए उपयोग करे तो अपनी बात देशके सामने रखते हुए सरकारको घेर सकता है। हंगामेंके कारण सदन स्थगित हो जानेसे विपक्षके तीर तरकशमें ही रखे रह जाते हैं। यही बहिर्गमनके साथ होता है जो संसदीय प्रणालीमें विरोध प्रदर्शनका बहुत ही प्रचलित तरीका रहा है किन्तु जरूरतसे ज्यादा उपयोग होनेसे वह असरहीन होकर रह जाता है। लोकसभामें मोदी सरकारके पास भारी बहुमत होनेसे सदनको चलते रहने देनेमें ही विपक्षका फायदा है। राज्यसभामें भी भले ही सत्ता पक्षके पास अब भी पूर्ण बहुमत नहीं है किन्तु विपक्षमें तालमेल न होनेसे सरकार अपना काम आसानीसे निकाल ले जाती है। सदनके संचालनमें फ्लोर मैनेजमेंट नामक शब्दका काफी प्रयोग होता है। सामान्यत: यह काम सत्ता पक्ष करता है लेकिन मौजूदा परिस्थितियोंमें जब विपक्षके कमजोर होते जानेसे आम जनमानस भी चिंतित है तब सदनके सुचारू रूपसे चलते रहनेके लिए उसको गंभीरतासे प्रयास करना चाहिए क्योंकि संसद ही वह मंच है जहां कही गयी कोई भी बात देश ही नहीं दुनियामें भी सुनी जाती है।

विपक्षकी ओरसे उठाये गये मुद्दोंकी महत्तासे इनकार नहीं, लेकिन प्रधान मंत्रीको अपने मंत्रियोंको सदनसे परिचित करानेका अवसर दिया जाना चाहिए था, क्योंकि यह एक परम्परा है और संसदको अपनी परम्पराओंके पालनके प्रति प्रतिबद्ध रहना चाहिए। दुर्भाग्यसे ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा स्पीकर ओम बिरलाने कहा, ‘परम्पराओंको न तोड़ें। आप लंबे समयतक शासनमें रहे हैं। आप परम्पराको तोड़कर सदनकी गरिमाको कम नहीं करें। इस सदनकी गरिमाको बनाये रखें। प्रधान मंत्री सदनके नेता हैं और फेरबदलके बाद मंत्रिपरिषदका परिचय करा रहे हैं। आप सदनकी गरिमाको बनाये रखें।Ó बावजूद इसके विपक्ष हंगामा करता रहा। देखा जाय तो इस परम्पराके निर्वहनके बाद विपक्ष अपनी बात कहता तो कोई देर या अंधेर होनेवाली नहीं थी। मंत्रियोंका परिचय नहीं होने देनेपर प्रधान मंत्रीने भी विपक्षी दलोंको आड़े हाथ लिया। कोविड-१९ महामारीके प्रकोपसे भारतका संसद भी अछूता नहीं रह पाया है। संसदके पिछले तीन सत्रोंको बीचमें ही समाप्त करना पड़ा जबकि इस महामारीके कारण २०२० का पूरा शीतकालीन सत्र रद कर देना पड़ा था। संसदका यह सत्र अत्यंत महत्वूपर्ण है। जिसे विपक्ष हंगामेकी भेंट चढ़ाकर बर्बाद करनेपर तुला है।

मानसून सत्रमें सरकार आधा दर्जन अध्यादेश, नौ लंबित बिल और कमसे कम १५ नये बिल लानेकी तैयारी कर रही है। सरकार डीएनए प्रौद्योगिकी, माता-पिता और वरिष्ठï नागरिकोंके कल्याणके लिए प्रस्तावित कानून, राष्टï्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान और न्यायाधिकरण सुधारसे जुड़े विधेयक पारित करवानेकी कोशिश करेगी। साथ ही समुद्री सहायता और नेविगेशन विधेयक, बाल संरक्षण प्रणालीको मजबूत करनेके लिए विधेयक पारित करनेका प्रयास भी किया जायगा। नये विधेयकोंमेंसे एक विवादास्पद आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक है जो उस अध्यादेशकी जगह लेगा जिसमें रक्षा उत्पादन इकाइयोंमें हड़तालपर प्रतिबंध लगाया गया है। यह माना जा सकता है कि आज विपक्षकी संख्या कम है। लेकिन विपक्षमें बैठे नेताओंको संख्याबलमें कमीसे हताश हुए बिना उन दिनोंसे प्रेरणा लेनी चाहिए जब विपक्षके मुठ्ठीभर नेता पं. नेहरु और इंदिरा गंाधी जैसे ताकतवर प्रधान मंत्रीको झुकनेपर मजबूर कर देते थे। आजके दौरकी संसदमें विपक्षी खेमेसे ऐसा कोई भाषण बीते सालोंमें नहीं सुनाई दिया जिसे लोग याद रख सकें। मौजूदा सत्र उस दृष्टिïसे विपक्षके लिए एक अच्छा अवसर है, अपनी साख और धाक जमानेका। यदि वह इसमें चूक गया तब जनताके मनमें उसे लेकर व्याप्त निराशा और बढ़ती जायेगी और जब सरकार हर सवालका जवाब देनेकी बात कर रही है तो विपक्ष सरकारको कटघरेमें खड़ा क्यों नहीं कर रहा।