सम्पादकीय

समरस समाज आवश्यक


राघवेन्द्र सिंह      

समान नागरिक संहिताको इसलिए भी आगे बढ़ाना चाहिए क्योंकि इससे समाजमें कई समस्याओंका निराकरण होगा तथा हमारा समाज अधिक एकजुट दिखेगा। संविधानके भाग-४ में राज्यके नीति निदेशक सिद्धान्तोंका ब्यौरा है। संविधानके आर्टिकल-३६ से ५१ तकके जरिये राज्यको कई सुझाव दिये गये हैं। इनमें उम्मीद जतायी गयी है कि राज्य अपने नीतियां तय करते समय इन नीति निदेशक तत्वोंका ध्यान रखेंगें। इन्हींमेंसे आर्टिकल-४४ राज्यको सही समयपर सभी धर्मोंके लिए समान नागरिक संहिता बनानेका निर्देश देता है। आसान शब्दोंमें समझें तो समान नागरिक संहिता यानी यूनीफार्म सिविल कोड, यानी देशके सभी नागरिकोंके लिए एक जैसा काम है। राजीव गांधी जब देशके प्रधान मंत्री थे तब एक प्रकरण शाहबानों सुर्खियोंमें छाया रहा था, जिस विषयपर देशकी सर्वोच्च न्यायालयने कहा था कि एक समान नागरिक संहिता परस्पर विरोधी विचारधारावाले कानूनोंके प्रति असमान निष्ठïाको हटाकर राष्टï्रीय एकताके उद्देश्यकी पूर्ति करनेमें मदद करेगें। कानून सबसे लिए समान तथा सब कानूनके लिए समान यह वर्तमान समयकी एक जीवन्त लोकतन्त्रकी बुनियादी आवश्यकता है।

सम्पत्ति विवाद, बंटवारेसे लेकर अन्यके सम्बन्धमें वैकल्पिक व्यवस्थाओंकी मौजूदगी न सिर्फ देशके विधिक न्यायिक ढांचेके लिए लम्बे समयसे बड़ी चुनौती बनी है, बल्कि यह संविधानके कई महत्वपूर्ण प्राविधानोंको भी उसी तरह लागू करनेमें भी बाधक है। इन टिप्पणियोंके साथ दिल्ली हाईकोर्टने देशभरके विभिन्न मंचोंसे उठ रही समान नागरिक संहिताको लागू करनेकी सिफारिश की तथा देशकी सरकारको इस विषयमें आवश्यक कदम उठानेके निर्देश भी दिये। जिस तलाककी अर्जीपर चर्चाके दौरान न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंहकी पीठने कहा कि भारतीय समाज बड़ी तेजीसे समरूप हो रहा है। जाति, धर्मकी दूरियां समाप्त हो रही हैं। विभिन्न समुदायों, जनजातियों, जातियों तथा धर्मोंके लोगोंकी शादी, तलाकके लिए कानूनी अड़चनोंसे जूझनेके लिए मजबूर होनेकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। वैसे तो वर्तमानमें अधिकतर हमारे देशके कानून, सिविल मामलोंमें एक समान नागरिक संहिताका पालन करते ही हैं। जैसे- भारतीय अनुबन्ध नियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, सम्पत्ति हस्तान्तरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम तथा साक्ष्य अधिनियम। वैसे तो समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की अवधारणाका विकास भारतमें तब हुआ जब ब्रिटिश सरकारने वर्ष १८३५ में अपनी रिपेार्ट प्रस्तुत की थी जिसमें अपराधों, सुबूतों और अनुबन्धों जैसे विभिन्न विषयोंपर भारतीय कानूनके संहिताकरणमें एकरूपता लानेकी आवश्यकतापर बल दिया था। हालांकि उस समय मुस्लिम, ईसाई तथा पारसी लोगोंके लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनोंकी व्यवस्था थी।

हमारे देशके विभिन्न न्यायालयोंमें समय-समयपर कानूनमें समरूपता लानेके लिए अपने निर्णयोंमें कहा है कि सरकारको एक समान नागरिक संहिता अवश्यक सुनिश्चित करनेकी दशामें एक ईमानदार प्रयास करना चाहिए। चाहें १८८५ का शाहबानोंका प्रकरण हो या १९९५ का सरला मुग्दल वाद, वास्तविकता भी यही है। हमारे देशके संविधान निर्माताओंने उसके मूलमें धर्मनिरपेक्षता तथा समानताको अंदरतक बैठाया था, लेकिन अलग-अलग कानूनीकी व्यवस्थाएं कहीं न कहीं उसको मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं। समाजको अलग-अलग कानून कहीं न कहीं किसी न किसीसे वास्तवमें बेईमानी करते नजर आते हैं। बहुपत्नी विवाह हो या तीन तलाक हालांकि अब वह समाप्त हो गया है, लेकिन समाजके किसी वर्गका अलग कानून दूसरेका अलग ऐसा कहांतक न्याय संगत है, विचारणीय है।

इसी विषयपर एक बार फिर दिल्ली हाईकोर्टने सरकारका ध्यान आकृष्टï किया तथा कानून बनानेको आदेशित किया। आगे आनेवाले समयमें देशकी सरकारको बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने होंगे, क्योंकि वास्तविकता तो यह भी है इस विषयका लाभ राजनीतिक गिद्ध लेनेके फिराकमें बैठे हैं इसकी सम्भावना तब और भी बढ़ जाती है जब अगले वर्ष उत्तर प्रदेश था पंजाब सरीखे प्रदेशोंमें विधानसभा चुनाव होनेको हैं। हमारी सरकारको परस्पर विश्वास निर्माणके लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, जिससे समाजके किसी वर्गको यह न लगे कि कहीं न कहीं उनके साथ अन्याय हो रहा है या जबरन उनपर समान नागरिक संहिता थोपे जानेका वातावरण बनाया जा रहा है। भारतीय समाज इस संहितामें ढलनेके लिए पूरी तौरपर एकदम तैयार है। बेतहर होगा कि हमारे देशकी सरकार दिल्ली हाईकोर्टके विचारोंको गम्भीरतासे ले और समान नागरिक संहितापर एक सार्थक बहसके लिए मसौदा तैयार करे। एक तर्क यह भी है कि गोवामें उक्त कानून लागू है वहां इस कानूनसे कभी किसीको कोई परेशानी नहीं हुई, आखिर देशके एक राज्यमें यह कानून पूरी तौरपर लागू हो तथा व्यवस्थित काम कर सकता है तो शेषमें क्या परेशानी हो सकती है, यह एक यक्ष प्रश्न है। आज इस विषयपर उन लोगोंको जवाब देना चाहिए जो अपने तुष्टïीकरणकी राजनीतिके चलते इस कानूनके खिलाफ खड़े होकर शोर मचानेवाले हैं।