Latest News सम्पादकीय साप्ताहिक

महाशक्तियोंकी खुलती पोल


 

मानी जाती हैं। इन्हें अपनी ताकतपर घमंड है। थोड़ा बहुत नहीं, बहुत ज्यादा घमंड है। इसी घमंडमें की गयी गलतियां इनकी शक्तिकी पोल खोलनेमें लगी हैं। पिछले लगभग एक डेढ़ सालमें स्पष्ट हो गया कि ये कितना भी दंभ भरें इनमें छोटेसे छोटे देशसे लड़नेतककी ताकत नहीं है। एक साल पहले अमेरिका अफगानिस्तानसे जिस तरह दुम दबाकर भागा, वह पूरी दुनियाने देखा। यहां अपनी सेनाके लिए एकत्र शस्त्र भी साथ अमेरिकी सेना नहीं ले जा सकी। उन्हें अफगानिस्तानमें काबिज होनेवाले तालिबानके लिए छोड़ दिया गया। शस्त्र ही नहीं लड़ाकू विमान और दुनियाके सबसे उन्नत हैलिकाप्टर भी अपनी सेनाके साथ अमेरिका नहीं ले जा सका। अफगानिस्तानसे भागनेसे पूरे विश्वमें उसकी छवि सबसे ज्यादा खराब हुई। उसकी विश्वसनीयताको बड़ी आंच पहुंची।
एक और विश्व शक्ति रूसने अपने नजदीकी और बहुत छोटे देश यूक्रेनपर लगभग छह माह पूर्व हमला किया। उसके टैंक और तोप पूरी शक्तिसे यूक्रेनपर कब्जा करनेके लिए बढ़े। रूसने खूब मिसाइल दागीं। हमला करते समय ही लगा था कि वह हफ्ते-दस दिनमें यूक्रेनको तबाह कर देगा। उसे चुटकियोंमें मसल देगा। और अपनी विजय पताका फहरा देगा। रूसको यूक्रेनसे युद्ध करते छह माहसे ज्यादा बीत गये। उसकी सेनाएं वहां कुछ भी न कर सकीं। अब पता चला है कि उसकी सेनाएं वापस हो रही हैं। दुनियाकी एक बड़ी शक्तिको एक छोटे देशसे लड़ते छह माहसे ज्यादा हो गये। वह महाशक्ति रूस मु_ीभर आबादीके देश यूक्रेनको परास्त नहीं कर सका।
चीन दुनियाकी तीन बड़ी ताकतोंमेंसे एक है। उसके पास विशाल सेनाके साथ ही हैं महाविनाशक हथियार। काफी समयसे वह ताइवानपर कब्जा करनेकी कोशिशमें है। चीनके कई बार विरोध जतानेके बावजूद अमेरिकी कांग्रेसकी स्पीकर नैंसी पेलोसीके ताइवान पहुंचनेके बाद चीनके रवैयेसे लगा कि वह ताइवानको सबक सिखाकर ही रहेगा। ताइवानके समुद्री क्षेत्रमें उसका सैन्याभ्यास भी कुछ ऐसा ही बता रहा था। किंतु वह उछल-कूदकर रह गया। अखाड़ेसे बाहर ही उछल-कूद की। बर्दाश्तकी सीमा निकलती देख इतना जरूर हुआ कि अपनी सीमामें आये चीनी ड्रोनको ताइवानने मार गिराया। अपना ड्रोन मार गिराये जानेके बाद भी भी महाशक्ति बना चीन चुप्पी साधे रहा। अब अमेरिकाने ताइवानके मामलेमें अपनी नीति साफ कर दी है। अमेरिकाके बाइडेन प्रशासनने हालमें कहा है कि यदि चीन, ताइवानपर हमला करता है तो उसकी सेना ताइवानकी मदद करनेको उतरेगी। बाइडेन प्रशासनने इस बार संकेतमें ही अपनी नीतिको साफ किया है। अमेरिकाका अभी पूरी तरहसे पक्ष स्पष्ट नहीं था। यूक्रेनके बारेमें भी अमेरिका और नाटो देश ऐसा ही कह रहे थे किंतु रूसके यूक्रेनपर हमलेके बाद वे चुप्पी साध गये। कहने लगे कि उनके सीधे युद्धमें उतरनेसे युद्ध सीमित न रहकर विश्व युद्धमें बदल जायगा। हालांकि वे यूक्रेनको शस्त्र और सैन्य उपकरण लगातार दे रहे हैं।
अबतक ताइवानके बारेमें भी चीनका यही मानना था। अफगानिस्तानसे वापसीके समयसे वह ताइवानसे कह रहा था कि अमेरिका अपने वायदेपर खरा नहीं उतरा। अफगानिस्तान और उसकी जनताको अधरमें छोड़कर वहांसे भाग आया। अब अमेरिकाके यह स्पष्ट कर देनेपर कि ताइवानपर हमला होनेकी हालतमें उसकी सेना ताइवानकी मदद करेगी। चीनने अपने रुखको स्पष्ट कर दिया है। उसका पारा एकदमसे आसमानसे जमीनपर आ गया। ऐसी पल्टी मारी कि सोचा भी नहीं जा सकता। उसका ताजा बयान आया है कि वह ताइवानको शांतिके साथ चीनमें मिलानेका पक्षधर है। वह शाक्ति प्रयोग करना नहीं चाहता। पुरानी कहावत है कि दुशमन तभीतक ताकतवर है, जबतक आप चुप हैं, उसकी गलत बातका उत्तर नहीं देते, जिस दिन उत्तर देनेपर आ जायंगे, सामनेवाला आपके हौसले देख खुद पीछे हट जायगा।